क्रिस्टलक्षेत्र सिद्धांत (CFT)

क्रिस्टलक्षेत्र सिद्धांत (CFT) H. बेथे द्वारा दिया गया था | 

(1) जब लिगेंड केन्द्रीय धातु परमाणु के सम्पर्क में आते है तो केन्द्रीय धातु परमाणु के समान ऊर्जा वाले (समभ्रंश / degenerate) d कक्षक, असमान ऊर्जा वाले कक्षकों में विपाटन संकुल (split) हो जाते है | 

(ii) d कक्षकों का यह विपाटन  संकुल की ज्यामिति पर निर्भर करता है | 

 (iii) d कक्षकों का विपाटन 2 समूहों में होता है | जिनके बीच 10 Dq या Δ का एक निश्चित ऊर्जा अंतर होता है |

(a) t2g  (b) eg

Dq = differential of quanta 

(iv) d कक्षकों का विपाटन निम्न 2 प्रकार से होता है – 

 

(A) अष्टफलकीय संकुल में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन – 

(B) चतुष्फलकीय संकुल में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन – 

 

CFT के अनुप्रयोग 

उपसहसंयोजक यौगिकों में रंग –

  • संक्रमण धातुओं से बने उपसहसंयोजक यौगिक रंगीन इसलिए होते है क्योंकि संक्रमण धातुओं के d कक्षकों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉन दृश्य प्रकाश के एक भाग को अवशोषित करके d – d संक्रमण के कारण उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते है | 
  • अवशोषित प्रकाश के पूरक प्रकाश को परावर्तित या पारगमित करने के कारण उपसहसंयोजक यौगिकों का विशेष रंग दिखाई देता है | 

उदाहरण – 

उपसहसंयोजक यौगिक अवशोषित प्रकाश  उपसहसंयोजक यौगिकों का रंग 
[Co(NH3)5Cl]2+ पीला  बैंगनी 
[Co(NH3)5H2O]3+ नीला – हरा  लाल

CFT की सीमाएँ – 

(i) CFT में धातु व लिगेंड को केवल आवेशित बिन्दु मानकर उनके बीच स्थिर वैद्युत बल की बात की गयी थी | 

(ii) CFT केवल धातु के d कक्षकों के विपाटन की बात करती है जबकि s व p कक्षकों के विपाटन की बात नहीं करती | 

(iii) लिगेंड्स के विपाटन की कोई व्याख्या नहीं की है | 

(iv) संकुलों में π – bond के निर्माण की व्याख्या नहीं की है | 

(v) यह सिद्धांत लिगेंड्स को महत्व नही देता है |  

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