Digestive System / पाचन तंत्र
पाचन :- जटिल खाद्य पदार्थों को सरल खाद्य पदार्थों में बदलना पाचन कहलाता हैं ।
जटिल खाद्य पदार्थ | सरल खाद्य पदार्थ |
1 कार्बाेहाइड्रेट | ग्लुकोज |
2 प्राटीन | एमीनो अम्ल |
3 वसा | वसा अम्ल व ग्लिसराॅल |
पाचन तंत्र / Digestive System
मानव मे सुविकसित पाचन तंत्र पाया जाता है जिसे दो भागों में बांटा गया है।
1.आहार नाल 2. सहायक पाचक ग्रंथियाँ
1. आहार नाल (Alimentary canal) :-
यह एक पतली नलीनुमा संरचना होती है। जिसकी लम्बाई लगभग 6 से 7 मीटर होती है। इसमें निम्न भाग पाये जाते है।
A. मुख गुहा (Buccal cavity) :-
यह आहार नाल का सबसे बाहरी भाग होता है। इसमें जीभ,दांत व लार ग्रंथियाँ पायी जाती है। जीभ एक मांसल संरचना होती हैै। जो भोजन में लार को मिलाने का कार्य करती है। और भोजन का स्वाद बताती है। मुख गुहा में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पायी जाती है। जो लार का स्त्राव करती है। लार में टायलिन व लाइसोजाइम एन्जाइम पाये जाते है।
(i) दांत :- मानव गर्तदंती होता है क्योंकि इसके दांत जबड़े उपस्थित गर्त में धंसे रहते है।
दांत कैल्शियम कार्बोनेट के बने होते है। इन पर शरीर के सबसे कठोर पदार्थ इनैमल का आवरण पाया जाता है। मानव के जीवन काल मे दो बार दांत आते है। इसलिए यह द्विबार दंती कहलाता है।
1. अस्थाई दांत – 20 होते है |
2. स्थाई दांत – 32 होते है |
मानव में चार प्रकार के दांत पाये जाते है।
क्रम. सं. | नाम | अस्थाई दांत | स्थाई दांत |
1. | कृंतक – इन्साइजर | 8 | 8 |
2. | रदनक – कैनाइन | 4 | 4 |
3. | अग्र चर्वण्क – प्रीमोलर | 0 | 8 |
4. | चर्वण्क – मोलर | 8 | 12 |
कुल दांत | 20 | 32 |
नोट :- बच्चों में अग्र चर्वण्क (प्रीमोलर) दांत नहीं पाए जाते है |
दंत सूत्र – (1) अस्थाई दांत का – $$ \frac{2102}{2102} \times 2 = 20$$
(2) स्थाई दांत का – $$ \frac{2123}{2123} \times 2 = 32$$
नोट:- मुख गुहा में पाचन के पश्चात भोजन बोलस कहलाता हैं।
जीभ :- यह एक मांसल संरचना है जो भोजन में लार को मिलाने, दांतों की सफाई करने और भोजन का स्वाद का ज्ञान कराने का कार्य करती है |
लार ग्रन्थियाँ :- मुख गुहा में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पायी जाती है |
(अ) सबमैक्सिलरी गले में स्थित होती है अर्थात् जीभ के अंतिम भाग में आधार पर इनसे व्हार्टन नली निकलती है |
(ब) सबलिंगुअल – ये जीभ के नीचे स्थित होती है | इनसे रिविनस नली निकलती है |
(स) पैरोटिड – ये कान के नीचे स्थित होती है | इनसे स्टेनसन नली निकलती है |
लार (Saliva) :- लार ग्रन्थियों से लार – स्रवण स्वायत्त तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित होता है | मनुष्य में लगभग 1.5 लीटर लार प्रतिदिन निकलता है | लार हल्का अम्लीय (pH – 6.8) होता है |वास्तव में लार में दो प्रकार के स्राव होते है –
(i) श्लेष्मी स्राव (mucous secretion) :- जिसका श्लेष्म भोजन को चिकना करता है |
(ii) सीरमी स्राव (serous secretion) :- जिसका टायलिन एंजाइम मंड का पाचन करता है | लार स्रवण प्रतिवर्ती क्रिया होती है | तथा मुख – गुहा में भोजन पहुँचने पर लार निकलना अप्रतिबन्धित प्रतिवर्त होता है | लार में लगभग 99% जल होता है |
लार के कार्य –
- लार का ऐमाइलेज या टायलिन नामक एंजाइम 5% स्टार्च को माल्टोज में अपघटित करता है |
- श्लेष्मा के कारण चबाये हुए भोजन के टुकड़े छोटे पिण्डों या गोलियों के रूप में लसदार होकर निगले ज सकते है |
- जब मुख – गुहा में भोजन नहीं रहता तो लार मुख – गुहा की भीतरी सफाई करता है |
- मनुष्य की लार में लाइसोजाइम नामक एंजाइम मुख – गुहा में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करता है |
लार द्वारा जीभ गीली व लसदार बनी रहती है | जिससे बोलने में सुविधा होती है | (पाचन तंत्र / Digestive System)
B. ग्रसिका(Esophagus) :-यह पतली नलीनुमा संरचना होती है। जो अनैच्छिक पेशीयों की बनी होती है। इसकी आंतरिक भित्ति पर श्लेष्मा ग्रंथी पायी जाती है। जो इसे चिकनी बनाती है।
यह मुखागुहा को आमाषय से जोड़ती हैं। इसमें पाचन की क्रिया नही होती है।
(C) आमाश्य (Stomach) :– यह एक थैलेनुमा संरचना होती है। जिसमे भोजन 3 से 4 घण्टे तक रहता है। सामान्य जानवरों में आमाश्य 4 भागों में बंटा होता है – (1) कार्डिक भाग (2) फंडस भाग (3) पाइलोरिक भाग (4) बॉडी
लेकिन रुमेंट जानवरों में आमाश्य 5 भागों में बंटा होता है (1) कार्डिक भाग (2) फंडस भाग (3) पाइलोरिक भाग (4) बॉडी भाग (5) रुमेन भाग
रुमेंट जानवर वे होते है जो जुगाली (बोगालना , उगालना, जुगाली करना) करते है | (पाचन तंत्र / Digestive System)
आमाशय कि आंतरिक भित्ति में जठर ग्रंथियाँ पायी जाती है। जो जठर रस (आमाशयिक रस / Gastric Juice) का स्त्राव करती है। जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, निष्क्रिय पेप्सिनोजन एंजाइम, प्रोरेनिन एंजाइम, लाइपेज एंजाइम तथा म्सुसिलेज एंजाइम पाये जाते है।
आमाशय में HCl के कार्य :-
1. जीवाणुओं को नष्ट करता है।
2. भोजन को अम्लिय बनाता है।
3. टायलिन एंजाइम को निक्रिय कारता है।
4. निष्क्रिय पेप्सिनोजन एंजाइम को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है।
5. निष्क्रिय प्रोरेनिन को सक्रिय रेनिन एंजाइम में बदलता है |
6. व्यक्त में दूध का पाचन करता है |
पेप्सिन एंजाइम का कार्य – प्रोटीन का पाचन करना |
रेनिन एंजाइम का कार्य – बच्चों में दूध प्रोटीन केसिन को कैल्शियम पैराकेसिनेट में बदलना | यह एंजाइम शिशुओं तथा मवेशियों के बछड़ों में अत्यधिक सक्रिय होता है |
नोट – मनुष्य में रेनिन एंजाइम का स्राव केवल बच्चो में होता है | जो अपनी माँ का दूध पीते है उसके बाद यह नहो स्रावित होता है | वयस्क में इसके स्थान पर HCl दूध का पाचन करता है |
रेनिन एंजाइम का उपयोग पनीर उत्पादन में भी किया जाता है |
आमाशय में पाचन के पश्चात भोजन अर्द्ध तरल अवस्था में आ जाता है। जिसे काईम कहते है।(पाचन तंत्र / Digestive System)
नोट:– यदि लम्बे समय तक आमाषय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) की मात्रा बनी रहे तो व्यक्ति को अतिअम्लता( एसिडिटी ) हो जाती है। जिसके उपचार के लिए सोडियम बाई कार्बोनेट या मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड (मिल्क ऑफ मैग्नीशिया) का उपयोग किया जाता है।
(पाचन तंत्र / Digestive System)
D यकृत (Liver) :- यह हमारे शरीर कि सबसे बड़ी ग्रंथी है। इसके द्वारा पित्तरस का निर्माण किया जाता है। जो पित्ताशय में एकत्रित होता है। पित्तरस में ब्लुरूबिन नामक वर्णक पाया जाता है। जो पित्तरस को पीला बनाता है। पित्तरस ग्रहणी भाग में स्त्रावित किया जाता है । पित्तरस कि प्रकृति क्षारकीय होती है। यह भोजन का इमल्शिकरण करता है।
इमल्शिकरण ( पायसिकरण ) :- वसा को जल में घोलने की क्रिया।
इमल्शन ( पायस ) :- वसा व जल का मिश्रण । दूध इमल्शन का उदाहरण है।
नोट:- पित्तरस में कोई एंजाइम नही पाया जाता है। इसलिए यह भोजन का पाचन नही करता है।
जब यकृत जीवाणु द्वारा संक्रमित हो जाता है। तो यह रूधिर से ब्लुरूबिन वर्णक को ग्रहण करना बंद कर देता है जिससे रूधिर में ब्लुरूबिन वर्णक कि मात्रा बढ़ जाती है। और व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है।
छोटी आंत (Small Intestine) :- यह आहार नाल का सबसे लम्बा भाग होता है। इसे तीन भागों में बांटा गया है।
1. ग्रहणी 2. मध्यांत्र 3. इलियम
1. ग्रहणी (ड्यूडिनम) :- यह आमाशय के पास स्थित U आकार की संरचना हैं। इससे यकृत व अग्नाषय ग्रंथियाँ जुड़ी होती है।
2. मध्यांत्र /जेजुनम :- यह ग्रहणी भाग को शेषांत्र से जोड़ता है |
3. शेषांत्र / इलियम :- इलियम छोटी आंत का सबसे बड़ा भाग होता हैं इसमे भोजन का संपूर्ण पाचन होता है। इलियम की आंतरिक भित्ति पर दीर्घरोम ( पक्ष्माभ ) पाये जाते है। जो पचित भोजन का अवषोषण कर रूधिर में मिला देते है।
स्वांगीकरण :- कोशिकाओं द्वारा पचित भोजन को उपयोग में लेने की क्रिया स्वांगीकरण कहलाती है।
बड़ी आंत :- इसमें पाचन की क्रिया नही होती है। इसमें केवल अपचित भोजन से जल का अवषोषण किया जाता है।
बड़ी आंत को तीन भागों में बाँटा गया है –
(1) अंधनाल (सीकम) :- यह एक अवशेषी अंग है | इससे परिशेषिका (अपेंडिक्स) जुडी होती है | यह भी अब एक अवशेषी अंग है | पहले यह सेल्युलोज के पाचन में सहायता करती थी |
(2) वृहदान्त्र (कोलन) :- इस भाग में अपचित भोजन से जल व खनिजों का अवशोषण किया जाता है |
(3) मलाशय (रेक्टम) :- यह एक थैलेनुमा संरचना होती है। इसमें अपचित भोजन एकत्रित होता है।
गुदा:- यह आहार नाल का अंतिम भाग होता है। इसके द्वारा अपचित भोजन को शरीर से बाहर त्यागा जाता है।
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