Cell Biology / कोशिका विज्ञान (Cytology)
- विज्ञान कि वह शाखा जिसमें कोशिका का अध्ययन किया जाता है। कोशिका विज्ञान Cell Biology कहलाती है।
- कोशिकाः– सजीवों के शरीर कि सबसे सुक्ष्म क्रियात्मक एवं संरचनात्मक इकाई को कोशिका कहते है।
- कोशिका कि खोज:- सन् 1665 ई. में राॅबर्ट हुक नामक वैज्ञानिक ने कोशिका कि खोज काॅर्क के टुकडे में मृत पादप कोशिका के रुप में की थी। जीवित कोशिका कि खोज एण्टोनी वाॅन ल्युवेनहाॅक ने 1674 ई.में तालाब के दूषित जल में जीवाणु के रुप में कि थी। ल्युवेनहाॅक ने मानव शुक्राणु, प्रोटोजोआ तथा लाल रक्त कणिकाओं का भी अध्ययन किया था।
कोशिका का सिद्धांत
यह सिद्धांत सन 1838 – 39 में जंतु वैज्ञानिक थियोडोर श्वान व पादप वैज्ञानिक मैथियास श्लीडन ने प्रतिपादित किया था | जिसके अनुसार सरल जीवों (एक कोशिकीय) से लेकर उच्च श्रेणी के जटिल पादप एवं जंतु सभी का शरीर कोशिकाओं से मिलकर बना होता है | प्रत्येक कोशिकाओं का स्वतंत्र अस्तित्व होता है | और प्रत्येक जीव में कोशिकाऐं एक अभिन्न अंग के रूप में कार्य करती है | यद्यपि श्वान व श्लाइडेन को कोशिका सिद्धांत के खोजकर्ता के रूप में पहचाना जाता है | फिर भी इस सिद्धांत की नींव कुछ पूर्व वैज्ञानिकों जैसे – रॉबर्ट हुक, ल्यूवेन्हॉक, ग्रीयू, वूल्फ इत्यादि ने रखी थी |
विर्चो ने 1855 में कोशिका के सिद्धांत में ” Ominis Cellulae Cellula ” वाक्य जोड़कर उसे आगे बढ़ाया जिसका इस सुझाव के अनुसार नयी कोशिकाओं का निर्माण पूर्ववर्ती कोशिकाओं के विभाजन से होता है | इससे कोशिका सिद्धांत को एक नया आधार मिला कि “वृद्धि और विकास के कारण कोशिकाओं से नव कोशिकाओं का निर्माण होता है | “
कोशिका सिद्धांत की विशेषताएँ –
- कोशिका, जीवों की एक संरचनात्मक इकाई है |
- कोशिका, जीवों में कार्यों की इकाई है |
- सभी कोशिकाएँ, पूर्ववर्ती कोशिकाओं के विभाजन से ही बनती है |
- सभी जीव, कोशिका और उसके उत्पादों से बने होते है |
- कोशिकाएँ ही जीव है |
- किसी भी जीव की क्रियाशीलता, प्रत्येक कोशिका का परिणाम है |
- कोशकाएँ अनुवांशिकता की इकाई है |
- बहु कोशिकीय जीवों में, प्रत्येक कोशिका का एकीकरण करने के साथ, स्वयं का अस्तित्व भी बनाए रखती है |
- कोशिका सिद्धांत का अपवाद:- नवीनतम खोजों के आधार पर कोशिका सिद्धांत पूर्णतः तर्क संगत प्रतीत नहीं होता है। क्योकि सभी जीव एक कोशिकीय नहीं होते है। जैसे – अकोशिकीय प्रोकैरियोट और अन्य कोशिकाऐं जिनमें केन्द्रक एवं कलाबद्ध कोशिकांग नही पाये जाते है। वायरस इसका सबसे बड़ा अपवाद है। इसे सजीव एवं निर्जीव के बीच की योजक कड़ी कहा जाता है।
कोशिका के प्रकार
- कोशिकायें समान्यतः दो प्रकार कि होती है –
1 प्रोकैरियोटिक कोशिका ( अकेन्द्रकीय ):- वे कोशिकाये जिनमें केन्द्रक नहीं पाया जाता है । उन्हें प्रोकैरियोटिक कोशिकायें कहते है जैसे- जीवाणु, अमीबा, नीले हरे शैवाल, माइकोप्लाज्मा आदि।
2 यूकैरियोटिक कोशिकायें ( सुकेन्द्रकीय):- वे कोशिकाये जिनमें केन्द्रक पाया जाता है । उन्हें यूकैरियोटिक कोशिकायें कहते है । जैसेः- सभी उच्च वर्गीय जन्तुओं कि कोशिकायें।
कोशिका का आकार
1. पृथ्वी पर पायी जाने वाली सबसे छोटी कोशिका – माइकोप्लाज्मा गैलीसैप्टिकम PPLO ( PPLO = Pleuropneumonia-Like Organisms)
2. पृथ्वी पर पायी जाने वाली सबसे बड़ी कोशिका -शुतुरमुर्ग का अण्ड़ा (ostrich egg)
3. मानव में पायी जाने वाली सबसे छोटी कोशिका -नर में शुक्राणु व मादा में – अण्डाणु
4. मानव में पायी जाने वाली सबसे बड़ी कोशिका – तंत्रिका कोशिका ( न्यूराॅन )
कोशिका की संरचना
कोशिका कि संरचना को तीन भागों में बांटा गया है-
1. बाह्य आवरण 2. कोशिका द्रव्य 3. कोशिकांग
1. बाह्य आवरण:- कोशिका द्रव्य को चारों ओर से घेरे रहने वाले आवरण को कोशिका का बाह्य आवरण कहलाता है । इसे दो भागों में बांटा गया है।
कोशिका भित्ति(Cell Wall):- यह जन्तु कोशिका में नहीं पायी जाती है। यह पादप कोशिकाओं में सेल्युलोज की तथा कवक में काइटिन कि बनी होती है। यह कठोर एवं मृत आवरण होता है। जो कोशिका को यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। कभी कभी सेल्युलोज विघटित होकर म्युसिलेज बना लेता है। यह गाढ़ा तरल होता है उदाहरण- भिण्डी का फल ।
प्लाज्मोडेस्मेटा:- मध्य पटलिका तथा कोशिका भित्ति की पर्ते व अन्य कोशिकायें छोटे- छोटे छिद्रों द्वारा छिद्रित होती है। जिसके द्वारा कोशिका द्रव्य एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जाता है। जिसे प्लाज्मोडेस्टा ( जीव द्रव्य तंतु ) कहते है।
कोशिका झिल्ली (Cell membren):- यह जन्तु एवं पादप दोनों कोशिकाओं में पायी जाती है। इसे नैगेली एवं क्रैमर ने 1855 में कोशिका कला नाम दिया । तथा प्लोव ने इसे प्लाज्मा कला नाम दिया । यह प्रोटीन एवं लिपिड़ कि बनी होती है। और यह चयनात्मक अर्द्धपारगम्य झिल्ली होती है। इसका सर्वमान्य तरल मौजेक माॅडल 1972 ई. सिंगर एवं निकाॅलसन ने दिया था।
एण्डोसाइटोसिस – पदार्थों को कोशिका झिल्ली से कोशिका के अन्दर ग्रहण करना एण्डोसाइटोसिस कहलाता है।
फेगोसाइटोसिस – ठोस पदार्थों को कोशिका झिल्ली के द्वारा कोशिका में ग्रहण करना ।
पिनोसाइटोसिस – तरल पदार्थों को कोशिका झिल्ली के द्वारा कोशिका में ग्रहण करना ।
2. कोशिका द्रव्य(Cytoplasm):- कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक झिल्ली के मध्य पाये जाने वाले द्रव्य को कोशिका द्रव्य कहते है।
केन्द्रक द्रव्य(Caryoplasm):- केन्द्रक के अन्दर पाये जाने वाले द्रव्य को केन्द्रक द्रव्य कहते है।
जीव द्रव्य(Protoplasm):- कोशिका द्रव्य एवं केन्द्र द्रव्य के मिश्रण को जीव द्रव्य कहते है। पुर्किन्जे तथा वाॅन माॅल ने कोशिका के समस्त जीवित भाग को सम्मिलित रूप से जीवद्रव्य नाम दिया ।
हैक्सले ने जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार कहा है।
3. कोशिकांग:- कोशिका में पायी जाने वाली क्रियात्मक इकाई को कोशिकांग कहते है। कोशिका में निम्नलिखित कोशिकांग पाये जाते है-
अन्तः प्रद्रव्यी जालिका
खोजकर्ता – पोर्टर
कोशिका द्रव्य में पायी जाने वाली जालनुमा संरचना को अन्तः प्रद्रव्यी जालिका कहते है। इसे कोशिका का कंकाल कहते है। यह दो प्रकार का होता है-
(a) चिकनी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Smooth Endo plasmic reticulum S.E.R.)
(b) खुर्दरी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Rough Endo plasmic Reticulum R.E.R ) :- इस पर राइबोसोम पाये जाते है। जो प्रोटीन का निर्माण करते है।
गाॅल्जीकाय/गाॅल्जीउपकरण/गाॅल्जीबाॅड़ी
खोजकर्ता-कैमिलो गाॅल्जी (1898)
यह सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है यह लाल रक्त कणिकाओं , पादपों की चालनी नलिकाओं और प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में नही पायी जाती है। पादप कोशिकाओं व अकोशिकीय प्राणियों के कोशिका द्रव्य में बिखरे पड़े रहते है। इनको डिक्टियोसोम कहते है। इनको कोशिका का ट्रेफिक पुलिस व यातायात प्रबंधक भी कहते है। यह शुक्राणु के एक्रोसोम का निर्माण करता है।
लाइसोसोम
खोजकर्ता – डी ड्यूवे (1955)
लाइसोसोम शब्द का निर्माण दो लैटिन शब्दों से हुआ है। Lyso = नष्ट करना Soma = Body ( काय )। यह केवल जन्तु कोशिकाओं में पाया जाता है। इसमें पाचक रस पाये जाते है। जिन्हे हाइडोलाइटिक एंजाइम कहते है। जो पाचन का कार्य करते है। इसलिए लाइसोसोम अपशिष्ट पदार्थ एवं जीवाणुओं को नष्ट करता है। इसलिए इसे कोशिका का कचरा पात्र कहते है। जब कभी यह कोशिका में फट जाता है तो कोशिका के सभी अवयवो को पचा देता हैं इसलिए इसे आत्मघाती थैली कहते है। ये शुक्राणु के एक्रोसोम के आगे पाये जाते है। और निषेचन की क्रिया में भाग लेते है।
माइटोकाॅण्ड्रिया ( सूत्रकणिका )
खोजकर्ता – कोलिकर
कोलिकर ने इसकी जन्तुओं की पेशीय कोशिकाओं में कि थी और सार्कोसोम नाम दिया था । आल्टमैन ने इसे पादप कोशिकाओं में खोजा और बायोप्लास्ट नाम दिया था और सी. बेण्डा ने इसे माइटोकाॅड्रिया नाम दिया।
यह एक दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है। जिसकी आंतरिक झिल्ली पर अंगुलिनुमा प्रवर्ध पाये जाते है। जिन्हे क्रिस्टी कहते है। इन क्रिस्टी पर कुछ कण पाये जाते है जिन्हे F1 कण कहते है। इन कणों में इलेक्ट्राॅन परिवहन तंत्र (E.T.S.) तथा ऑक्सीडेटिव फास्फोराइलेशन के लिए आवश्यक सभी एन्जाइम पाये जाते है। माइटोकाॅण्ड्रिया में स्वयं का डी. एन. ए. पाया जाता है इसलिए इसे अर्द्धस्वायत शासी कोशिकांग कहते है। वर्तमान में भी पेशीय कोशिकाओं में पाये जाने वाले माइटोकाॅण्ड्रिया को सार्कोसोम कहते है। इसमे क्रैब्स चक्र एवं E.T.S. चक्र के दौरान ATP का निर्माण होता है । इसलिए इसे कोशिका का शक्ति गृह कहते है। यह कोशिका का ताप नियंत्रक बिंदु है।
राइबोसोम
खोजकर्ता – क्लाड, नामकरणकर्ता – पैलेड
यह कोशिका का सबसे छोटा कोशिकांग है। यह झिल्ली रहित कोशिकांग है। यह कोशिका में प्रोटीन का निर्माण करता है इसलिए इसे प्रोटीन की फैक्ट्री तथा कोशिका का इंजन कहते है। यह दो प्रकार का होता है –
1. 70S ribosome:- यह प्रोकैरियोटिक एवं युकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है। इसकी इकाई 50s + 30s है।
2. 80S ribosome :- यह केवल युकैरियोटिक कोशिकोओं में पाया जाता हैं। इसकी इकाई 60s + 40s है। S = स्वेदबर्ग इकाई
लवक
( खोजकर्ता – हैकल) यह केवल पादप कोशिकाओं में पाया जाता है। यह एक दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है। यह तीन प्रकार का होता है –
1 अवर्णी लवक ( ल्युकोप्लास्ट ):- यह पादप के जड़ एवं तने में पाये जाते है। और भोजन के संग्रहण का कार्य करता है।
2 वर्णी लवक ( क्रोमोप्लास्ट ):- यह फूल तथा फल में पाया जाता है। जैसे:- कैरोटीन – लाल, नारंगी रंग का गाजर में , जैन्थोफिल – पीले रंग का फूलों में, लाइकोपिन – टमाटर में, कैप्सिथिन – लाल मिर्च में।
3 हरित लवक ( क्लोरोप्लास्ट ):-
यह दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है। यह कोशिका का सबसे बड़ा कोशिकांग हैं । इसमें भी स्वयं का डी. एन. ए. पाया जाता है इसलिए इसे भी अर्द्धस्वायतशासी कोशिकांग कहते है। इसमें हरे रंग का वर्णक पर्णहरित ( क्लोरोफिल ) पाया जाता है जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करता है । यह सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। अर्थात् यह भोजन का निर्माण करता है। इसलिए इसे कोशिका का रसोइया व हरित लवक को रसोई घर कहते है।
नोटः- तीनो लवक एक दूसरे में परिवर्तित हो जाते है।
रिक्तिका ( रसधानी)
( खोजकर्ता – डुर्जाडिन)
यह पादप कोशिकाओं में पाये जाने वाला एक बड़ा रिक्त एवं मृत भाग है। जो अपशिष्ट पदार्थों का संग्रहण करता हैं। इसका आवरण टोनोप्लास्ट कहलाता है। इामे पाये जाने वाले पदार्थ को कोशिका रस कहते है।
खाद्य धानी:- वह रिक्तिका जो खा़द्य पदार्थों का संग्रहण करती है। खाद्य धानी कहलाती है।
तारक काय (Centrioles)
(खोजकर्ता – वाॅन बेण्डन)
यह समस्त जन्तु कोशिकाओं में केन्द्रक के निकट तारे के समान आकृति मे पाया जाता है। तारककाय का निर्माण केन्द्रिका से होता है। प्रत्येक तारककाय में दो तारककेन्द्र होते है तथा एक दूसरे के लम्बवत रहते है। इसका मुख्य कार्य कोशिका विभाजन के समय तर्कु तन्तुओं का निर्माण करना है। यह शुक्राणु की पूंछ का निर्माण करता है। तथा सूक्ष्म जीवों मे पाये जाने वाले गमन अंगो जैसे कशाभिका व पक्ष्माभ का आधार बिन्दु बनाता है।
केन्द्रक
(खोजकर्ता – राॅबर्ट ब्राउन)
यह कोशिका कि समस्त क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इसलिए इसे कोशिका का मस्तिष्क, प्रबन्धक व नियंत्रक कहा जाता है। केन्द्रक दोहरी झिल्ली युक्त कोषिकांग है जिसकी बाह्य झिल्ली पर राइबोसोम पाये जाते है। केन्द्रक कि उपस्थिति के आधार पर कोशिका के दो प्रकार होते है 1. प्रोकैरियोटिक 2. युकैरियोटिक
केन्द्रक के अन्दर पाये जाने वाले सूक्ष्म धागेनुमा संरचना को क्रोमेटिन कहते है जो कोशिका विभाजन के समय केन्द्रक द्रव्य को अवशोषित कर लेती है। और एक स्पष्ट संरचना का निर्माण करती है जिसे क्रोमोसोम कहते है। मानव कि एक सामान्य कोशिका में क्रामोेसोम ( गुणसूत्र ) कि संख्या 46 या 23 जोड़ी होती है। गुणसूत्र कि खोज स्ट्राॅसबर्गर ने कि थी। तथा इसका नाम वाल्डेयर ने दिया था।
गुणसूत्र दो प्रकार के होते है –
1. अलिंग गुणसूत्र (Autosomes 44 or 22 pair )
2. लिंग गुणसूत्र (Sex chromosome 2 or 1 pair )
नर में 44 + XY व मादा में 44 + XX गुणसूत्र पाये जाते है।
जब युग्मकों का निर्माण होता है। तो अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। जिससे कोषिका में इनकी संख्या आधी हो जाती है। इस प्रकार नर युग्मक (शुक्राणु ) में गुणसूत्रों कि संख्या 22 +X व 22 +Y होती है। तथा मादा युग्मक( अण्डाणु) में गुणसूत्रों की संख्या 22 +X व 22 +X होती है। मानव में लिंग निर्धारण की क्रिया निषेचन के समय होता है।
कोशिका विभाजन
कोशिका विभाजन के बारे मे सबसे पहले रूडोल्फ विर्चो ने बताया था कि प्रत्येक पुरानी कोशिकाओं से नयी कोशिकों का निर्माण होता है। कोशिकाओं में तीन प्रकार का विभाजन होता है –
1. असूत्री विभाजन ( Amitosis ) :-
इस प्रकार का विभाजन उन कोशिकाओं में होता हैं। जिनमें केन्द्रक नही पाया जाता है अर्थात् प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में होता है, इसमें विभाजन कि प्रमुख अवस्थायें प्रोफेज, मेटाफेज,एनाफेज व टीलोफेज नही पायी जाती है।
2. समसूत्री विभाजन ( Mitosis ):-
सबसे पहले माइटोसिस शब्द का प्रयोग डब्ल्यु फ्लेमिंग ने किया था। इस प्रकार का विभाजन कायिक कोशिकाओं में होता है। इस विभाजन के दौरान जनक कोशिका से बनने वाली नयी दोनो पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों कि संख्या जनक कोशिका के समान प्राप्त होती है।
3. अर्द्धसूत्री विभाजन ( Meiosis ):-
अर्द्धसूत्री विभाजन या मियोसिस नाम फार्मर और मुरे ने दिया था। इस विभाजन को न्युनकारी विभाजन भी कहते है क्योंकि इसमें केन्द्रक का दो बार विभाजन और गुणसूत्रों का एक बार विभाजन होता है तथा गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है। इस प्रकार के विभाजन से युग्मकों ( शुक्राणु व अण्डाणु ) का निर्माण होता है।
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