पदार्थ/द्रव्य / Matter (Best FREE Notes)

हमारे आसपास कि वे सभी वस्तुएँ जो स्थान घेरती है, जिनमें द्रव्यमान एवं आयतन होता है। पदार्थ/द्रव्य / Matter  कहलाती है। जैसे – पुस्तक, पेन, बैग, मेज, लकडी, मोबाईल, जन्तु, पेड़ आदि।

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पदार्थ कि भौतिक अवस्थायें मुख्यतः होती है। लेकिन वर्तमान में पदार्थ की दो अन्य अवस्थाओं कि भी खोज की गई । अब इनकी कुल संख्या 5 है –
1. ठोस अवस्था
2. द्रव अवस्था
3. गैसीय अवस्था
4. प्लाज्मा अवस्था
5. B.E.C. (बोस आइंस्टाइन कण्डनसेट)

 ठोस अवस्था (Solid State) 

  •  इसमें पदार्थ का आकार एवं आयतन निश्चित रहता है।
  •  इनमें पदार्थ के कणों के मध्य अंतराआण्विक आकर्षण बल बहुत प्रबल होता है।
  •  इनमें कणों के मध्य दूरी बहुत कम होती है।
  •  इनमें सम्पीडन का गुण नगण्य के बराबर होता है।
  •  जैसे- पत्थर, ईंट, पुस्तक, मेज, चाॅक, पेन आदि।

 द्रव अवस्था (Liquid State)

  •  इसमें पदार्थ का आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित होता है।
  •  इनमें पदार्थ के कणों के मध्य अंतराआण्विक आकर्षण बल ठोसों से कम होता है।
  •  इनमें पदार्थ के कणों के मध्य दूरी ठोस के कणों से अधिक होती है।
  •  इनमें सम्पीडन ठोस से अधिक होता है।
  •  जैसे – जल, एल्कोहाॅल ।

गैसीय अवस्था (Gaseous State )

  •  इसमें पदार्थ का आकार व आयतन दोनों ही अनिश्चित होते है ।
  •  इनमें पदार्थ के कणों के मध्य अंतराआण्विक आकर्षण बल नगण्य होता है।
  •  इनमें पदार्थ के कणों के मध्य दूरी बहुत अधिक होती है।
  •  इनमें सम्पीडन का मान सबसे अधिक पाया जाता है।
  •  जैसें – हाइड्रोजन गैस, नाइट्रोजन गैस, आॅक्सीजन गैस।

 प्लाज्मा अवस्था / Plasma State

  •  यह पदार्थ कि चैथी अवस्था है।
  •  यह पदार्थ कि आयनित गैसीय अवस्था होती है।
  •  यह एक चमकीली अवस्था है।
  •  इस अवस्था में कण अत्यधिक ऊर्जा वाले और अधिक उत्तेजित होते है।
  •  प्लाज्मा के कारण ही सूर्य, तारों एवं विद्युत बल्व व एल.ई. डी. में चमक होती है।

बोस आइंस्टाइन कण्डनसेट 

  •  यह पदार्थ कि पाँचवी अवस्था है।
  •  सन् 1920 में भारतीय भौतिक वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस ने पदार्थ की पाँचवी अवस्था के लिए कुछ गणनाएँ¦की थी। 
  • उन गणनाओं के आधार पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने पदार्थ की एक नई अवस्था की भविष्यवाणी की, जिसे बोस आइंस्टाइन कण्डनसेट कहते है।
  • सन् 2001 में अमेरिका के एरिक ए. काॅर्नेल, उल्फगैंग केटरले और कार्ल ई. वेमैन को बोस आइंस्टाइन कण्डनसेट की अवस्था प्राप्त करने के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • सामान्य वायु के घनत्व के एक लाखवें भाग जिसने कम घनत्व वाली गैस को बहुत ही कम तापमान पर ठण्डा करने से इसे प्राप्त किया गया।

पदार्थ के प्रकार/ Types of Matter

1. शुद्ध पदार्थ  2. अशुद्ध पदार्थ

1. शुद्ध पदार्थ:– इन्हें दो भागों में बांटा गया है –
(अ) तत्व (ब) यौगिक

2. अशुद्ध पदार्थ:– इन्हे मिश्रण भी कहते है।

तत्व / Elements

  •  राॅबर्ट बायल ने सबसे पहले सन् 1661 में तत्व शब्द का प्रयोग किया तथा फ्रांस के रसायनज्ञ एंटोनी लाॅरेंट लवाइजिए  ने तत्व को परिभाषित किया।
  •  एक ही प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बनें पदार्थ को तत्व कहते है।
  •  अब तक कुल 118 तत्वों कि खोज की जा चुकी है।
  •  इनमें से 92 तत्व प्रक्ृति में पाये जाते है। शेष को प्रयोगशाला में बनाया गया है।
  •  11 तत्व कमरे के ताप पर गैसीय अवस्था में पाये जाते है।
  •  2 तत्व कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में पाये जाते हैं 1. पारा (धातु) 2. ब्रोमीन (अधातु)
  •  गैलियम तथा सीजियम तत्व कमरे के ताप से कुछ अधिक ताप पर द्रव अवस्था में आ जाते है।
  •  तत्वों को तीन भागों में बांटा गया है – 1. धातु 2. अधातु 3. उपधातु

यौगिक / Compound 

वह पदार्थ जिसका निर्माण दो या दो से अधिक तत्वों के एक निश्चित अनुपात में मिलने से होता है। यौगिक कहलाते है। जैसे – जल, साधारण नमक, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, सल्फ्युरिक अम्ल आदि।

मिश्रण / Mixture

वह पदार्थ जिसका निर्माण दो या दो से अधिक तत्वों के एक अनिश्चित अनुपात में मिलने से होता है। मिश्रण कहलाते है। जैसे – नमक का जलीय विलयन, दूध, क्रीम आदि।

मिश्रण एवं यौगिक में अंतर

मिश्रणयौगिक
1. तत्व या यौगिक केवल मिश्रण बनाने के लिए मिलते है। किंतु किसी नए यौगिक का निर्माण नहीं करते है। तत्व क्रिया करके नए यौगिक का निर्माण करते है।
2. मिश्रण का संगठन परिवर्तनीय होता है ।नए पदार्थ का संगठन सदैव स्थायी होता है।
3. मिश्रण उसमें उपस्थित घटकों के गुणधर्मों को दर्शाता है ।नए पदार्थ के गुणधर्म भिन्न होते है।
4. घटकों को भौतिक विधियों द्वारा अलग किया जा सकता है। इस विधियों से अलग नही कर सकते है।

मिश्रण के प्रकार:-
1. समांगी विलयन 2. विषमांगी विलयन

1. समांगी विलयन (Homogeneous Mixture):-

वह मिश्रण जिसके घटक के सभी गुणधर्म एक समान होते है। समांगी मिश्रण कहलाता है। इसे विलयन भी कहते हैै। जैसे – नमक का जलीय विलयन।

विलयन के गुणधर्म –

  •  विलयन एक समांगी मिश्रण होता है।
  •  विलयन के कण अत्यन्त सूक्ष्म होते है। इन्हे नग्न आँखों से नही देख पाते है।
  •  जब विलयन में से प्रकाश को गुजारा जाता है तो विलयन के कण प्रकाश को नहीं फैलाते है।
  • जिससें हमें विलयन में प्रकाश का मार्ग नजर नहीं आता है। अर्थात् हमें टिण्डल प्रभाव व ब्राउनी गति नही नजर आती है।
  •  विलयन के कणों को छान कर प्रथक् नही किया जा सकता है।
  •  विलयन को शांत छोड़ देने पर इसके कण नीचे नहीं बैठते है।
  • जैसे – चीनी का जलीय विलयन, मिश्रधातु, टिंचर आयोडिन (आयोडीन व ऐल्कोहाॅल का मिश्रण), वातयुक्त पेय (जैसे सोड़ा जल, कोक), वायु आदि।

विलयन के घटक –

विलयन के दो घटक होते है – 1. विलेय 2. विलायक

1. विलेय (Solute) :- विलयन का वह घटक जो विलयन के अन्दर कम मात्रा में उपस्थित होता है। एवं दूसरे घटक के अन्दर घुल जाता है। विलेय कहलाता है।
विलयन में विलेय कि संख्या अनंत हो सकती है।
2. विलायक (Solvent):- विलयन का वह घटक जो विलयन के अन्दर अधिक मात्रा में पाया जाता है। एवं दूसरे घटक को अपने अन्दर घोल लेता है। विलायक कहलाता है।
जैसे – नमक के जलीय विलयन में नमक विलेय एवं जल विलायक होता है ।

विलयन के प्रकार –

विलेय एवं विलायक की भौतिक अवस्था के आधार पर विलयन को नौ विभिन्न प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है –

विलयनों के प्रकारविलेयविलायकउदाहरण
1. गैसीय विलयनगैसगैसदो गैसों का मिश्रण, वायु
 द्रवगैस गैस /वायु में जल वाष्प 
 ठोसगैस गैस ठोस का उध्र्वपातन
2. द्रवीय विलयनगैस द्रवसोड़ा जल, अमोनिकृत जल
 द्रवद्रवएल्कोहाॅल व जल का मिश्रण
 ठोस द्रवजल में लवण, जल में शर्करा
3. ठोस विलयनगैसठोस गैसों का ठोस धातु की सतह पर अधिशोषण।
 द्रवठोसपारा जिंक अमलगम
 ठोसठोसमिश्र धातु

2. विषमांगी विलयन (Heterogeneous Mixture):

वह मिश्रण जिसके घटक के सभी गुणधर्म असमान होते है। विषमांगी मिश्रण कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है।
(अ). कोलाइडी विलयन (ब). निलम्बन

(अ) कोलाइडी विलयन :-

  •  यह एक विषमांगी विलयन है।
  •  इसके कणों का आकार 10-7 से 10-5 के मध्य होती है। अतः ये कण नग्न आँखों से दिखाई नही देते है लेकिन इन्हे  सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है।
  •  वास्तविक विलयनों के कणों की तुलना में इनके कणों का आकार बड़ा होने के कारण ये शीघ्रता से विसरित नहीं होते और निलम्बनों की तुलना में इनका आकार छोटा होने से ये गुरूत्व बल से
  • पेंदे में भी एकत्रित नही होते है।
  • इसके घटक टिण्डल प्रभाव एवं ब्राउनी गति प्रदर्शित करते है।

    कोलाइडी विलयन के घटक –

1. परिक्षिप्त प्रावस्था :- वह घटक जो कम मात्रा में पाया जाता है। इसे वितरित अवस्था या आन्तरिक प्रावस्था भी कहते है।

2. परिक्षेपण माध्यम :- वह घटक जो अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसे वितरण या बाह्य प्रावस्था भी कहते है। जैसे – सोने के जलीय विलयन मे सोना परिक्षिप्त प्रावस्था एवं जल परिक्षेपण माध्यम है।

परिक्षेपण अथवा वितरण माध्यम के आधार कोलाइडी विलयनों को निम्न विशिष्ट नाम दिये गये है।

परिक्षेपण माध्यम जल होने पर – हाइड्रोसाॅल
परिक्षेपण माध्यम एल्कोहाॅल होने पर – एल्ककोसाॅल
परिक्षेपण माध्यम बैंजीन होने पर – बैंजोसाॅल
परिक्षेपण माध्यम वायु या गैस होने पर – ऐरोसाॅल

परिक्षेपण माध्यम एवं परिक्षिप्त प्रावस्था के आधार पर कोलाइड तंत्र निम्न प्रकार के होते है –

क्र.स.परिक्षिप्त प्रावस्थापरिक्षेपण माध्यम कोेलाइड तंत्र का नामउदाहरण
1.गैसद्रव झाग या फोमसाबुन विलयन, फटी हुई क्रीम
2.गैसठोस ठोस फोम केक, रबर, सूखे समुद्री झाग
3.द्रवगैसद्रवों के एरोसाॅल दवाइयों का छिड़काव
4.द्रवद्रवपायस या इमल्सनदूध, तेल-जल मिश्रण
5.द्रव ठोस जैल मक्खन, बूअ पाॅलिश, जैम, जैली, पनीर, दही
6.ठोसगैसठोसों के एरोसॅेल धुँआ, धूल
7.ठोस द्रव साॅलसोने का साॅल, स्टार्च पैंटे, गोंद विलयन।
8.ठोस ठोसठोस साॅल खनिज, रूबी ग्लास, विभिन्न रत्न, काले हीरे।

  कोलाइड का वर्गीकरण:-

प्रावस्थाओं के मध्य आकर्षण या बंधुता के आधार पर

(अ) द्रव स्नेही कोलाइड:-

  • जिन विलयनों में परिक्षप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य आकर्षण हो उन्हें द्रव स्नेही कोलाइड कहते है। इनके गुण निम्न है –
  •  इन्हें परिक्षिप्त प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम को सीधे मिश्रित कर प्राप्त किया जा सकता है।
    ये स्थायी होते है।
  •  इनका शीघ्रता से स्कंदन नहीं होता हैं। स्कंदन करने हेतु वि़द्युत अपघट्य मिलाया जाता है।
     ये उत्क्रमणीय होते है। अर्थात् स्कंदन के पश्चात् वाष्पीकरण से ठोस प्राप्त करके विसरण माध्यम में घोलने पर इन्हें पुनः प्राप्त किया जा सकता है।
    उदाहरण – स्टार्च, जिलेटिन, प्रोटीन साॅल।

(ब) द्रव विरोधी कोलाइड:-

  • इन विलयनों में परिक्षेपण माध्यम एवं परिक्षिप्त प्रावस्था के मध्य आकर्षण नहीं पाया जाता है। इसके गुण निम्न है –
  • इन्हें अप्रत्यक्ष विधि, रासायनिक विधि से प्राप्त किया जाता है।
  • ये अस्थायी होते है।
  • ये शीघ्र स्कंदित हों जाते है।
  • ये अनुत्क्रमणीय होते है। स्कंदन के पश्चात् पुनः कोलाइड निर्माण नहीं किया जा संकता है।
  • उदाहरण – धातु, सल्फर अधातु के कोलाइड।
Matter
Matter

परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों के आकार के आधार पर –
(अ) बहुअणुक कोलाइड –

इन कोलाइड पदार्थ के परमाणु या अणु का व्यास 10-7 सेमी से भी कम विलेयता है । परस्पर वान्डरवाल बलों से बंधित होकर कोलाइड कणोें का निर्माण कर देता है ।

(ब) वृहद अणुक कोलाइड – इस प्रकार के कोलाइड बनाने वाले पदार्थ के अणुओं का आकार बड़ा होता है । जब ये परिक्षिप्त प्रावस्था के रूप में घुलकर कोलाइड का निर्माण करते है । तो कणोें का आकार कोलाइड का हो जाता है ।

नोट:-सोने का कोलाइड बैंगनी रंग का होता है। अतः इसे काॅशियस पर्पल कहते है। इसके एवं चांदी के कोलाइड में स्थायीकरण के रूप में क्रमशः जिलेटिन उवं अण्डे़ की जर्दी का उपयोग करते है।

कोलाइड के अनुप्रयोग –

1. कोलाइड औषधियाँ – कोलाइड औषधियों का सरलता से स्वांगीकरण तथा अधिषोषण हो जाने के कारण कोलाइडी औषधियाँ अधिक प्रभावी होती है।
जैसे –

(अ) आर्जिराॅल तथा प्रोटाॅर्जिराॅल – चांदी के रक्षित कोलाइडी विलयन को आर्जिराॅल अथवा प्रोटार्जिराॅल कहते है। जो आँखों की पलको में हुए रोगों के उपचार में प्रयुक्त होता है।

(ब) कोलाइडी स्वर्ण, मैंग्नीज, कैल्सियम, आयरन, तांबा आदि स्वास्थ्यवर्धक टाॅनिक के रूप में काम आते है।

(स) कोलाइडी गन्धक तीव्र कीटाणुनाशक होता हैं

(द) कोलाइडी ऐन्टिमनी काला अजार के उपचार में प्रयुक्त होता है।

2. धूम्र अवक्षेपण – धूम्र वायु में परिक्षिप्त कार्बन कणों का कोलाइडी तंत्र है। इन कार्बन कणों की धूएँ से पृथक करने के लिए विपरीत आवेशी धात्विक प्लेटों के सीधे सम्पर्क में लाकर अवक्षेपित कर लेते है। एवं चिमनी से पिकलने वाली गैसें धूम्र रहित हो जाती है।

3. वाहित मल निष्कासन – जल में परिक्षिप्त मैल के कण ऋणावेशित होते है। और वैद्युत कण संचालन द्वारा पृथक किए जा सकते है ।ये कण ऐनोड पर अवक्षेपित हो जाते है। इस प्रकार प्राप्त अवक्षेप का खाद के रूप में और द्रव का सिचाई के रूप मे उपयोग किया जाता हैै ।

4. रबर व्यवसाय:– रबर जल में उपस्थित ऋणात्मक रबर कणों का पायस है। इसे रबर क्षीर कहते है। इसे उबालने पर प्रोटीन की रक्षक परत जो पा्रकृतिक रूप से कणों को ढ़के रहती है, टूट जाती है। इस प्रकार रबर के कण परिक्षेपण माध्यम में उपस्थित लवणों की अभिक्रिया से अवक्षेपित हो जाते है। अववक्षेपित रबर का गन्धक से उपचार कर वल्कनीकृत रबर बनाते है।

5. जल का शोधन:- अशुद्ध जल में मिट्टी के कण, बैक्टिीरिया आदि उपस्थित होते है। इन कणों पर ऋणावेश होता है। इनकों पृथक करने के लिए जल में फिटकरी मिलाते है।

6. डेल्टा का निर्माण:– नदी का जल अपने साथ रेत के कण तथा अन्य बहुत से पदार्थ निलम्बित अवस्था में ले जाता है। जब नही का जल समुद्र के जल के सम्पर्क में आता है। तो समुद्र जल में एपस्थित अनेक विद्युत अपघट्य नही के जल में उपस्थित कोलाइडी रेत तथा अन्य कणों का अवक्ष्ेपण कर देते है। ये पदार्थ एकत्र होकर डेल्टा का रूप धारण कर लेते है।

7. चर्मशोधन:– चमड़ा धनावेशित प्रोटीन कणों से युक्त कोलाइडी निकाय होता है। टैनिन जल में ऋणोवेशित साॅल बनाता है। जब चमडे को टैनिन में डुबोया जाता है। तो धनावेशित प्रोटीन कणों तथा ऋणावेशित टैनिन कणों का पारस्परिक स्कन्दन हो जाता है। इससे चमड़ा कठोर हो जाता है। इस प्रक्रिया को चर्मशोधन कहते है।

8. फोटेाग्राफी:– फोटोग्राफी प्लेट पर जिलेटिन में सिल्वर ब्रोमाइड के निलम्बन की परत चढ़ी रहती है। जिलेटिन तथा पोटैशियम ब्रोमाइड के विलयन में सिल्वर नाइट्रेट विलयन मिलाने पर सिल्वर ब्रोमाइड के कण जिलेटिन में निलम्बित हो जाते है। जिलेटिन रक्षक कोलाइड का कार्य करता है।

9. कोलाइड वर्षा:– जल वाष्प से संतृप्त वायु के शीतल प्रदेश में जल के कोलाइडी कण बन जाते है। इन कोलाइडी कणों का संघनन होने पर जल की बडी बूंदे बन जाती है। जो गुरूत्वाकर्षण के कारण नीचे गिरने लगती है। कभी – कभी विपरीत आवेशी बादलों के मिलने कारण वर्षा होती है।

10. रक्त का स्कन्दन:- रक्त जल में ऐल्बूमिन जैसे पदार्थोे का कोलाइडी विलयन होता है। इसमें ऋणावेशित कण होते है। रक्त के बहने पर फिटकरी का ताजा विलयन अथवा फेरिक क्लोराइड विलयन डालते है। जिससे उसका Al+3 अथवा Fe+3 आयनों द्वारा स्कन्दन होता है। और रक्त का प्रवाह रूक जाता है।

(ब) निलम्बन:-

  • वह विषमांगी विलयन जिसमें निम्न गुण पाये जाते है। निलम्बन कहलाता है।
  • निलम्बन के कण बहुत बडे़ होते है। जिन्हे नग्न आँखों से देखा जा सकता है।
  • जब प्रकाश को निलम्बन में से गुजारा जाता है। तो इसके कण प्रकाश को फैला देते है। जिससे
  • हमें प्रकाश का मार्ग नजर आता है। जिसे टिण्डल प्रभाव कहते है।
  • यह अस्थायी मिश्रण होता हैै। अर्थात् इसे शांत छोड़ देने पर इसके कण नीचे बैठ जाते है। जिससे निलम्बन समाप्त हो जाता है। निलम्बन के समाप्त होने पर टिण्डल प्रभाव समाप्त हो जाता है।
  • इसके कणोें को छाान कर प्रथक किया जा सकता है।
    जैसे – मिट्टी व जल का मिश्रण।

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