मैस्लो का आवश्यकता पदानुक्रम / maslow hierarchy of needs theory in hindi
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Toggleमैस्लो का जीवन परिचय:
maslow hierarchy मैस्लो का पूरा नाम अब्राहम हेरोल्ड मैस्लो था। जिनका जन्म 1 अप्रैल 1908 ईस्वी को ब्रुकलिन न्यूयॉर्क में हुआ था। माता-पिता से पैदा हुए 7 बच्चों में से सबसे बड़ा मैस्लो ही था। वे सभी यहूदी प्रवासी थे उनके लिए सर्वश्रेष्ठ की उम्मीद कर रहे थे। मैस्लो अपनी शैक्षणिक सफलता के लिए कड़ी मेहनत की। जिसका परिणाम यह हुआ कि वे कई किताबों को पढ़ लिया।
मैस्लो ने 1951 से 1969 तक ब्रांडीस में मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किए हैं। वहीं उनकी मुलाकात कर्ट गोल्डस्टीन से हुई। गोल्डस्टीन द्वारा लिखित पुस्तक ‘द ऑर्गनाइजम थ्योरी ऑफ मोटिवेशन’ 1934 में कहा कि “अगर देखा जाए तो वास्तव में केवल एक ही प्रमुख मानवी प्रेरक होता है जिसे हम आत्मानुभूति या आत्मासिद्धि कहते है बाकी सब प्रथामिक तथा समाजिक प्रेरक होता है” इसी सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए मैस्लो ने अभिप्रेरणा सिद्धांत में आवश्यकताओं के वर्गीकरण तथा क्रम की व्याख्या की है और इन्हें पांच भागों में बांट दिया।
मैस्लो द्वारा लिखित पुस्तक ‘motivation and personality’ और ‘A theory of human motivation’ यह दो प्रसिद्ध इनकी पुस्तकें हैं।
मैस्लो अपने अंतिम वर्ष कैलिफोर्निया में अर्ध्द सेवानिवृत्त में बिताया। कैलिफोर्निया में ही मैस्लो 8 जून 1970 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनकी मृत्यु हो गई |
मैस्लो के अभिप्रेरणा सिद्धांत को और भी अन्य नामों से जाना जाता है-
- पदानुक्रमित आवश्यकताओं का सिद्धांत
- मांग आपूर्ति आवश्यकता का सिद्धांत
- नाभिकीय आवश्यकता का सिद्धांत
- मानवतावादी आवश्यकता का सिद्धांत
- मैस्लो का अभिप्रेरणा सिद्धांत
- मैस्लो का पिरामिड सिद्धांत
मैस्लो का सिद्धांत इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
मैस्लो का अभिप्रेरणा सिद्धांत
मानव जब संसार में जन्म लेता है तो अपने साथ कुछ आवश्यक तत्वों को लेकर जन्म लेता है जो उनके प्राथमिक आवश्यकता होती हैं जैसे भूख, प्यास, नींद आदि लेकिन जैसे-जैसे वे इस संसार में घूलने मिलने लगता है उनकी आवश्यकता और भी बढ़ती जाती हैं मैस्लो आवश्यकता प्रेरकों को को पदानुक्रम में स्थापित किए हैं। जिसे मैस्लो का अभिप्रेरणा का सिद्धांत कहा जाता है। मैस्लो ने 1954 में अभिप्रेरणा का सिद्धांत दिया था। 1959 ईस्वी में संशोधित किया गया था। मैस्लो अपने सिद्धांत की व्याख्या आत्मसिद्धि के आधार पर की है, आत्मा सिद्धि से तात्पर्य व्यक्ति को अपने अंदर छिपी हुई क्षमताओं की पहचान करके उनका ठीक प्रकार से विकास करने की आवश्यकता से हैं। मार्गन, किंग,विस्ज, तथा स्कोलपनर के अनुसार व्यक्ति की अपनी क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता को आत्मासिद्धि कहा जाता है। वास्तव में आत्मसिद्धि की पहचान की आवश्यकता सभी व्यक्तियों में अलग-अलग होती है किसी व्यक्ति के लिए किसी राजनीतिक दल, समुदाय, धार्मिक संस्था अथवा किसी अन्य समूह का नेतृत्व करना हो सकती है।
गोल्डस्टीन महोदय ने केवल आत्मानुभूति को ही महत्वपूर्ण दिया बाकी सभी प्रेरक जैसे हैं भूख, प्यास, नींद, शक्ति, सम्मान, ज्ञान, इच्छा तथा दूसरे प्राथमिक तथा सामाजिक प्रेरक इसी आत्मानुभूति प्रेरक या आत्मासिद्धि को प्राप्त करने के माध्यम है।
लेकिन मैस्लो अपने इस अभिप्रेरणा सिद्धांत में आवश्यकताओं के वर्गीकरण या पदानुक्रम के वर्गीकरण की व्याख्या की है। उनका विचार है कि अभिप्रेरणा में आवश्यकताओं की अनुभूति तथा संतुष्टि निहित होती है। वे मानते हैं कि मानवीय प्रेरक एक क्रम में व्यवस्थित होते हैं तथा ये संख्या में 5 होते हैं। जिस समय विशेष में जो प्रेरक सबसे अधिक उत्तेजना रखता है वह पूरे व्यवहार पर छा जाता है। इस प्रेरक के शांत होने पर दूसरी श्रेणी का प्रेरक जागृत होता है और फिर वह हमारे पूरे व्यवहार पर छा जाता है। इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है मैस्लो का अभिप्रेरणा सिद्धांत या मैस्लो का आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत या मैस्लो का पिरामिड सिद्धांत को इस इस प्रकार से दर्शाया गया है।
मैस्लो का पिरामिड सिद्धांत
१. शारीरिक एवं दैहिक अभिप्रेरणा
२. सुरक्षा की आवश्यकता
३. संबंध एवं स्नेह की आवश्यकता
४. सम्मान की आवश्यकता
५. आत्मासिद्धि की आवश्यकता
मैस्लो ने शारीरिक एवं दैहिक अभिप्रेरणा, सुरक्षा की आवश्यकता एवं संबंध, स्नेह की आवश्यकता इन सभी आवश्यकताओं को निम्न स्तर में रखा है तथा सम्मान की आवश्यकता एवं आत्मासिद्धि की आवश्यकता को उच्च स्तर में रखा हैं साथ ही मैस्लो ने कहा कि जब तक मानव का एक स्तर की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो जाती वह दूसरे आवश्यकता या स्तर पर कदम नहीं रखता है यह सभी क्रमबद्ध या पदानुक्रम चलता है।
मैस्लो ने उपरोक्त प्रेरकों को उनके महत्व के क्रम में त्रिभुजाकार आकृति के माध्यम से स्पष्ट किया है-
१. शारीरिक एवं दैहिक आवश्यकता:
मनुष्य का जब जन्म होता है तब कुछ शारीरिक या बुनियादी आवश्यकताओं की जरूरत होती है उसे ही शारीरिक एवं दैहिक आवश्यकता कहते हैं या फिर वे प्रेरक जो व्यक्ति में बुनियादी आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न होती हैं उन्हीं प्रेरकों को शारीरिक एवं दैहिक अभिप्रेरणा कहते हैं इनकी आपूर्ति के अभाव में मानव शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है तथा उसके अस्तित्व को खतरा होने लगता है। जैसे किसी व्यक्ति को भूख लगने पर भोजन की तलाश करना, प्यास लगने पर पानी इत्यादि। शारीरिक एवं दैहिक आवश्यकता मानव के प्राथमिक आवश्यकता होती है जैसे हवा, भूख, प्यास, नींद, प्रजनन (सेक्स), मलमूत्र त्यागना, आश्रय, कपड़ा इत्यादि मानव की बुनियादी या प्राथमिक आवश्यकता होती है। कोई भी व्यक्ति इन सभी मांगों की पूर्ति होने पर ही वे दूसरी स्तर की आवश्यकताओं के बारे में सोचता है।
२. सुरक्षा की आवश्यकता:
मानव अपनी शारीरिक एवं दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद अपने जीवन की सुरक्षा के बारे में सोचता है तथा ऐसे सभी संभव उपाय करता है जिससे उसके जीवन को कोई खतरा न हो। जैसे सुरक्षित घर, नौकरी की सुरक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित वातावरण इत्यादि। मनुष्य अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिए कई प्रकार के कानून भी बनाता हैं जिससे कि मनुष्य कानून के दायरे में रहकर अपने आप को सुरक्षित रख सके। मानव सुखी जीवन एवं अपने बुढ़ापे तक की सुरक्षा के बारे में सोच कर विभिन्न प्रकार के उपाय जैसे जीवन बीमा,एलआईसी, पैसों की बचत, स्वास्थ्य जैसे विकल्पों को चुनने लगता है। जब मानव को अपना जीवन सुरक्षित लगने लगता है तब वह अगली स्तर के बारे में सोचता है।
३. संबंध एवं स्नेह की आवश्यकता:
मानव जीवन का तीसरा स्तर या आवश्यकता ‘संबंध एवं स्नेह’ है। जब मानव का प्राथमिक या बुनियादी स्तर एवं सुरक्षा आदि मांगे पूरी हो जाती है तब वे दूसरों से संबंध एवं स्नेह आदि आवश्यकताओं के लिए प्रेरित होते हैं। वह समाज से प्रेम, स्नेह, सहानुभूति की अपेक्षा करता है। वह इसी भावना के तहत अपने निकट संबंधियों, पड़ोसियों, मित्रों तथा दूसरे लोगों से मधुर संबंध कायम करता है। वह चाहता है कि वह दूसरे लोगों को स्नेह दे तथा वे भी उसे स्नेह दे। वह ‘Live and let live’ के सिद्धांत में विश्वास रखता है। अर्थात्, या तो व्यक्ति किसी का हो जाए अथवा किसी को अपना बना ले। यही जीवन का सत्य है।
४. आत्म-सम्मान की आवश्यकता:
समाज में मधुर संबंधों के साथ-साथ व्यक्ति अपने अहं तथा आत्म सम्मान को भी बचाए रखने का प्रयास करता है। इसके लिए, वह हर संभव प्रयास करता है क्योंकि आत्म सम्मान की रक्षा में ही उसके जीवन की सार्थकता है। अपमान की जिंदगी वह एक क्षण भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह एक उच्च स्तरीय आवश्यकता है। इसके लिए व्यक्ति शक्ति ग्रहण करना चाहता है स्वामित्व चाहता है नेतृत्व चाहता है तथा स्वतंत्र रहना चाहता है। इस प्रकार की आवश्यकता की संतुष्टि ना होने पर व्यक्ति में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है।
५. आत्मासिद्धि की आवश्यकता:
अंत में व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा होती है कि वह समाज के हित में कुछ योगदान कर सके ताकि लोग उसके मरने के बाद भी उसे याद कर सके। यह योगदान आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक तथा आध्यात्मिक किसी भी रूप में हो सकता है। वह समाज का पथ प्रदर्शक बनना चाहता है जिसे समाज का हित हो समाज का विकास हो। मैस्लो का कहना है कि आत्मानुभूति या आत्मा सिद्धि की आवश्यकता का अर्थ है की एक संगीतज्ञ को संगीत प्रस्तुत करना चाहिए, कलाकार को चित्रकारी करनी चाहिए, तथा कवि को कविता लिखनी चाहिए यदि वह आत्म- संतुष्टि चाहता है तो। अर्थात् एक व्यक्ति को वही होना चाहिये जो वह हो सकता है।
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