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Toggleउपसह संयोजक यौगिक में बंधन
संयोजकता बंध सिद्धान्त –
यह सिद्धान्त पॉलिंग व स्लेटर ने दिया था।
इस सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु निम्न है:-
1) केन्द्रीय धातु परमाणु में अपनी समन्वय संख्या के बराबर रिक्त परमाणु कक्षक उपस्थित होते है जो संकरित होकर आबंधित परमाणु कक्षकों का एक समूह बनाते है |
समन्वय संख्या | संकरण | ज्यामिति |
2 | SP | रेखीय |
4 | SP3 | चतुष्फलकीय |
4 | dsp2 | वर्ग समतलीय |
6 | d2sp3 /sp3d2 | अष्टफलकीय |
(ii) σ आबंध बनाने के लिए केन्द्रीय धातु परमाणु के रिक्त संकरित कक्षक, दाता समूहों के भरे हुए कक्षकों के साथ अतिव्यापन करते है जिससे उपसहसंयोजक बन्ध बनता है |
उपसहसंयोजक यौगिकों की ज्यामिति एवं चुम्बकीय गुण :-
(i) केन्द्रीय धातु परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या ज्ञात करके उसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखते है |
(ii) निम्न ligands के बारे में देखते है –
प्रबल ligands – केन्द्रीय धातु परमाणु के इलेक्ट्रॉन का युग्मन कर देते है | उदाहरण – CO, CN–, NO2–, en, NH3, Py, NCS– etc.
दुर्बल ligands – केन्द्रीय धातु परमाणु के इलेक्ट्रॉन का युग्मन नहीं करते है | उदाहरण – H2O, C2O4—, C2H5OH, OH–, F–, NO3–, Cl–, Br–, I–, etc.
(iii) केन्द्रीय धातु परमाणु के रिक्त कक्षकों में ligands के इलेक्ट्रॉन भरते है |
(iv) भरे कक्षकों के आधार पर संकरण व ज्यामिति ज्ञात करते है |
(iv) संकरण में केन्द्रीय धातु परमाणु द्वारा आंतरिक कोश के d कक्षक {(n-1)d} एवं बाह्य कोश के d कक्षक (nd) प्रयुक्त करने पर क्रमशः निम्न चक्रण संकुल / अंत: कक्षक संकुल एवं उच्च चक्रण संकुल / बाह्य कक्षक संकुल बनते है।
(v) यदि सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित है – प्रतिचुम्बकीय
(vi) यदि सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित नहीं है – अनुचुम्बकीय
(vii) चुम्बकीय आघूर्ण –
यहाँ n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या है |
उदाहरण :-
(i) [Ni(CN)4]2- टेट्रासायनो निकलेट (II)
इसमें Ni परमाणु को ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। CN– के प्रबल लिगैंड क्षेत्र के कारण यह Ni+2 के 3d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन कर देता है। अतः Ni+2 की dsp2 संकरित अवस्था के कारण संकुल की ज्यामिति वर्ग समतलीय है।
VBT की सीमाएँ –
(i) इसमें अनेक पूर्वानुमान है |
(ii) चुम्बकीय आँकड़ों की मात्रात्मक व्याख्या नहीं करता है |
(iii) उप सहसंयोजक यौगिकों के रंगों को स्पष्ट नहीं करता है |
(iv) चतुष्फलकीय व वर्ग समतलीय संरचनाओं का सही अनुमान नहीं लगाता है |
(v) उप सहसंयोजक यौगिकों के उष्मागतिकीय व गतिकीय स्थायित्व की व्याख्या नहीं करता है |
(vi) दुर्बल व प्रबल लिगेंड में सही विभेद नहीं कर पाता है |
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