बहुतत्व सिद्धान्त (Multi Factor Theory)
यह सिद्धान्त थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित किया गया। उनकी मान्यता थी कि सामान्य बुद्धि को कई भागों (तत्वों) में विभक्त किया जा सकता है। इन समस्त तत्वों से मिलंकर एक सामान्य तत्व बनता है। थार्नडाइक ने इस सामान्य तत्व के अलावा कुछ मूल तत्व बतायें। इसे बुद्धि का मात्रा सिद्धान्त (Quantity Theory) / “विशिष्ट योग्यता का सिद्धान्त/पमाणुवादी/तथा मात्रात्मक सिद्धान्त” भी कहते है।
इस सिद्धान्त द्वारा बुद्धि में S कारक की 6 विशिष्ट योग्यताओं पर बल दिया गया। ये विशिष्ट योग्यताएं निम्न है।
1. शब्द योग्यता
2. अंक योग्यता
3. दिशा योग्यता
4. तर्क योग्यता
5. स्मृति योग्य
6. भाषण योग्यता
थार्नडाइक ने अपने सिद्धांत में कहा कि एक कार्य को करने के लिए एक विशेष योग्यता कार्य करती है। थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त की तुलना बालू के टीले से की है। इसलिये इसे “बालू का सिद्धान्त” भी कहते है।
इसने अपने सिद्धांत में निम्न चार बातों जोर दिया।
1. स्तर
2. चौडाई
3. क्षेत्रफल
4. गति
थानडाईक ने इस सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए बालू के टीले से तुलना करते हुए कहा कि यदि किसी कार्य का कठिनाई का स्तर कम होगा तो समय भी कम लगेगा और क्षेत्रफल भी कम होगा तथा सीखने की गति तेज होगी। इसके विपरीत यदि कठिनाई का स्तर अधिक है तो क्षेत्रफल भी अधिक होगा और समय अधिक लगेगा तथा सीखने की गति भी धीमी होगी।
नौट- विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में थानडाईक के इस नियम का भी उपयोग किया जाता है। उच्च लेवत के पदों की भर्ती के लिए पाठ्यक्रम का क्षेत्रफल विस्तृत होता है। तथा कटिनाई स्तर भी अधिक होता है। उसकी तैयारी के लिए अधिक समय लगता है। जैसे- राजस्थान प्रशासनिक सेवा (IAS) निम्न लेवल के पदों की भर्ती के लिए पाठ्यक्रम का क्षेत्रफल कम होता है कठिनाई का स्तर कम होता है, जैसे – राजस्थान पुलिस। अतः यदि स्पष्ट है कि यदि हम कठिन कार्य करते जाते है तो हमारी बुद्धि का विकास भी अधिक होता है।