बुद्धि-परीक्षाओं का अर्थ

 

MEANING OF INTELLIGENCE TESTS

 
बुद्धि (Intelligence) को लेकर विद्वानों में अनेक मतभेद हैं। कुछ इसे सामान्य योग्यता भानते हैं तो कुछ नवीन परिस्थितियों में समायोजन। गाल्टन इसे पहचानने तथा सीखने की योग्यता मानता है।
 
जब भी वैयक्तिक भिन्नताओं के मापन पर विचार किया जाता है तो बुद्धि भी उसी संदर्भमें देखी-परखी जाती है। प्रत्येक व्यक्ति में बौद्धिक या मानसिक योग्यता भिन्न होती है। शिक्षा तथा समाज के अन्य क्षेत्रों में बद्धि मापन को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता रहा है।
 
आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान की एक सबसे महत्वपूर्ण देन है- बुद्धि का मापन करने के लिए बुद्धि-परीक्षायें। बुद्धि-मापन का अर्थ है-बालक की मानसिक योग्यता का माप करना । या यह ज्ञात करना कि उसमें कौन-कौन-सी मानसिक योग्यताएँ हैं और कितनी ? प्रत्येक बालक में इस प्रकार की कुछ जन्मजात योग्यताएँ होती हैं। बुद्धि-परीक्षा द्वारा उसकी इन्हीं योग्यताओं या उसके मानसिक विकास का अनुमान लगाया जाता है। ड्रेवर (Drever, Dictionary, p. 141) के शब्दों में हम कह सकते हैं- “बुद्धि-परीक्षा किसी प्रकार का कार्य या समस्या होती है, जिसकी सहायता से एक व्यक्ति के मानसिक विकास के स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है, या मापन किया जा सकता है।”
 

बुद्धि-परीक्षाओं की आवश्यकता

 

(NEED OF INTELLIGENCE TESTS)

 
शिक्षा प्राप्त करने वाले बालकों की योग्यताओं में स्वाभाविक अन्तर होता है। इस अन्तर के कारण सब बालक समान रूप से प्रगति नहीं कर पाते हैं। ऐसी दशा में शिक्षक के समक्ष एक जटिल समस्या उपस्थित हो जाती है। बुद्धि-परीक्षा, बालकों में पाये जाने वाले अन्तर का ज्ञान प्रदान करके शिक्षक को समस्या का समाधान करने में सहायता देती है। ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन (Blair, Jones and Simpson, p. 424) का कथन है-“विद्यालय में बुद्धि-परीक्षाओं का प्रयोग व्यावहारिक कार्यों के लिए और साधारणतया यह ज्ञात करने के लिए किया जाता है कि बालक, विद्यालय के कार्य में कितनी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।”
 

बुद्धि-परीक्षाओं का इतिहास (HISTORY OF INTELLIGENCE TEST)

 
बी. बी. सामन्त (B. B. Samant) के अनुसार भारत के लिए बुद्धि-परीक्षाएँ कोई नई बात नहीं है। वेदों और पुराणों में जहाँ-तहाँ बुद्धि-परीक्षाओं के उल्लेख मिलते हैं। यक्ष और युधिष्ठिर का सम्वाद, बुद्धि-परीक्षा का प्रत्यक्ष उदाहरण है। छात्रों की बुद्धि-परीक्षा के लिये जटिल प्रश्नों, पहेलियों, समस्याओं आदि का प्रयोग किया जाता था। तक्षशिला और नालन्दा विश्वविद्यालयों की अध्ययन-विधियों में बुद्धि-परीक्षाओं का महत्वपूर्ण स्थान था। आज १२ परिस्थिति ऐसी है कि भारत विदेशी विद्वानों द्वारा बनाई गई बुद्धि-परीक्षा की विधियों का प्रयोग से कर रहा है।
 
यूरोप में बुद्धि-परीक्षा की दिशा में 18वीं शताब्दी में कार्य प्रारम्भ किया गया। सर्वप्रथम भारत के समान वहाँ भी शारीरिक लक्षणों को बुद्धि के माप का आधार बनाया गया। उदाहरणार्थ, हम भारत में आज भी सुनते हैं- “छिद्रदन्ता क्वचित् मूर्खाः”, अर्थात् छितरे दाँ वाला कोई-कोई ही मूर्ख होता है। इसी प्रकार स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध विद्वान् लैवेटा (Lavater) ने 1772 में विभिन्न शारीरिक लक्षणों को बुद्धि का आधार घोषित किया। उस समय से बुद्धि के मापन का कार्य किसी-न-किसी रूप में यूरोप में चलता रहा।
 
1879 में विलियम वुण्ट (W. Wundt) ने जर्मनी के लीपज़िग नामक नगर में प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला स्थापित करके बुद्धि-मापन के कार्य को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। इस प्रयोगशाला में बुद्धि का माप, यंत्रों की सहायता से किया जाता था।
 
वुण्ट (Wundt) के कार्य से प्रोत्साहित होकर अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने भी बुद्धि-परीक्षा का कार्य आरम्भ किया। इनमें उल्लेखनीय हैं-फ्रांस में बिने (Binet), इंगलैंड में विंच (Winch), जर्मनी में मैनमान (Menmann) और अमेरिका में थॉर्नडाइक (Thorndike) एवं टर्मन (Terman)। इन मनोवैज्ञानिकों में सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई- बिने (Binet) को, जिसने साइमन (Simon) की सहायता से “बिने-साइमन बुद्धि-मानक्रम” का निर्माण किया। टरमन ने उसमें संशोधन करके उसे ‘स्टैनफोर्ड-बिने-मानक्रम’ का नाम दिया।
 
बुद्धि परीक्षण के क्षेत्र में विश्व के सभी उन्नत देशों में असंख्य परीक्षण बनाये गये हैं। भारत में राज्यों की मनोविज्ञान शालाओं, विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय शिक्षक-प्रशिक्षण अनुसंधान परिषद तथा अन्य अनेक निजी एवं सार्वजनिक संस्थान इस दिशा में सक्रिय हैं।
 

मानसिक आयु व बुद्धि-लब्धि (MENTAL AGE AND INTELLIGENCE QUOTIENT)

 
बुद्धि परीक्षण का आधार मानसिक एवं शारीरिक आयु के मध्य का सम्बन्ध है। बुद्धि परीक्षा के परिणाम बुद्धि-लब्धि के द्वारा दिखाये जाते हैं। बुद्धि-लब्धि मानसिक आयु के अभाव में मापी नहीं जा सकती। अतः मानसिक आयु व बुद्धि-लब्धि की अवधारणा को जानना भी आवश्यक है।
 
1. मानसिक आयु का अर्थ (Mental Age-Meaning)– मानसिक आयु या व्यक्ति की सामान्य योग्यता बताती है। गेट्स एवं अन्ना के  अनुसार- “मानसिक आयु हमें किसी व्यक्ति की बुद्धि-परीक्षा के समय बुद्धि-परीक्षा द्वारा ज्ञात की जाने वाली सामान्य मानसिक योग्यता के बारे में बताती है।”
 
 2. बुद्धि-लब्धि का अर्थ (Meaning of 1. Q.)- बुद्धि-लब्धि, बालक या व्यक्ति की सामान्य योग्यता के विकास की गति बताती है। कोल एवं ब्रूस (Cole and Bruce, p. 135) के शब्दों में- “बुद्धि-लब्धि यह बताती है कि मानसिक योग्यता में किस गति से विकास हो रहा है।”
 
3. बुद्धि-लब्धि निकालने की विधि (Method of Finding L. Q.)– मानसिक आयु का विचार आरम्भ करने का श्रेय बिने (Binnet) को प्राप्त है (देखिए-बिने-साइमन बुद्धि स्केल)। टर्मन (Terman) ने उसके विचार को स्वीकार किया, पर अपने परीक्षणों के आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मानसिक आयु बालक के मानसिक विकास की वृद्धि के बारे में नहीं बता सकती, क्योंकि विभिन्न बालकों में मानसिक विकास की गति विभिन्न होती है। इस गति को मालूम करने के लिए उसने ‘बुद्धि-लब्धि’ के विचार को जन्म दिया। बुद्धि-लब्धि का सूत्र है-
 
 बुद्धि-लब्धि =  (मानसिक आयु / वास्तविक आयु )x 100
   $$ I. Q. = \frac{M.A.}{C.A.}\times 100 $$ 
M.A. = Mental Age = मानसिक आयु 
C. A. = Chronological Age = वास्तविक आयु
उदाहरणार्थ, यदि बालक की मानसिक आयु 10 वर्ष और जीवन या वास्तविक आयु 8 वर्ष है, तो उसकी बुद्धि-लब्धि 125 होगी; जैसे-
 
 $$I. Q. = \frac{10}{8} \times 100 = 125$$ 
 

बुद्धि-लब्धि का वर्गीकरण (Classification of I. Q.) 

 
टर्मन (Terman) ने बुद्धि-लब्धि का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है-
 
 
 
S.N. बुद्धि-लब्धि बुद्धि का प्रकार
1 140 से अधिक
प्रतिभाशाली बुद्धि (Genius)
2 120 से 140 अति श्रेष्ठ बुद्धि (Very Superior)
3 110 से 120 श्रेष्ठ बुद्धि (Superior)
4
90 से 110
सामान्य बुद्धि (Average)
5 80 से 90 मन्द बुद्धि (Dullness)
6 70 से 80 क्षीण बुद्धि (Feeble Mindedness)
7 70 से कम निश्चित क्षीण बुद्धि (Definite Feeble Mindedness)
8 50 से 70 अल्प बुद्धि (Morons)
9 20 या 25 से 50 मूर्ख बुद्धि (Imbeciles)
10 20 या 25 से कम महामूर्ख (Idiots)
 

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