Samprabuta / SOVEREIGNTY / सम्प्रभुता

 

1. निम्नलिखित में से किसने सर्वप्रथम लोकप्रिय सम्प्रभुता की अवधारणा का प्रतिपादन किया ?

 
(a) हॉब्स
 
(b) लॉक
 
(c) रूसो
 
(d) मिल
 
उत्तर-(c)
 
• व्याख्या-रूसो के अनुसार लौकिक सम्प्रभुता का अर्थ यह है कि जनता अन्तिम और सर्वोच्च शक्ति की स्वामिनी तथा सारी शक्तियों का स्रोत है। प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर मिल बाँटकर प्रभुसत्ता का प्रयोग करते हुए नागरिक कहलाता है और कानूनों का पालन करते हुए प्रजा कहलाता है।
 
 

2. निम्नलिखित में से किसने बाह्य सम्प्रभुता व अवधारणा को विकसित किया?

 
(a) ग्रोशियस
 
(b) ओपनहीम
 
(c) जॉन ऑस्टिन
 
(d) बोदाँ
 
उत्तर-(a)
 
• व्याख्या-ह्यगो ग्रोशियस ने बाह्य सम्प्रभुता की अवधारणा का विकास किया तथा कहा कि राज्य अपने सम्बन्धों के संचालन में स्वतन्त्र एवं सर्वोच्च है। इसी बाह्य सम्प्रभुता की अवधारणा ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को दिशा दी।
 
 

3. निम्नलिखित में से किसने कहा, “कानून सम्प्रभु का आदेश है”?

 
(a) ऑस्टिन
 
(b) लास्की
 
(c) बेन्थम
 
(d) एक्वीनास
 
उत्तर-(a)
 
• व्याख्या- जॉन ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक (लेक्चर्स ऑन ज्यूरिस्प्रुडेन्स) 1832 में अपने एकलवादी एवं कानूनी प्रभुसत्ता की विशद् विवेचना की। उन्होंने कहा कि कानून सम्प्रभु का आदेश है तथा यह परम्पराओं एवं रीति-रिवाज पर आधारित नहीं होता है। उनका मानना है कि प्रभुसत्ताधारी का आदेश कानून है और जो आदेश उसके द्वारा नहीं दिया गया वह कानून नहीं है।
 
 

4. प्रभुसत्ता के एकत्ववादी सिद्धान्त का प्रतिपादन निम्नलिखित में से किसने किया?

 
(a) ऑस्टिन
 
(b) लॉक
 
(c) एक्वीनास
 
(d) प्लेटो
 
उत्तर-(a)
 
 
• व्याख्या- जॉन ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक ‘लेक्चर्स ऑन ज्यूरिस्प्रुडेन्स’ 1832 में प्रभुसत्ता के एकलवादी व कानूनी सिद्धान्त की स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि यदि कोई निश्चित श्रेष्ठ व्यक्ति, जो ऐसे ही किसी अन्य श्रेष्ठ व्यक्ति की आज्ञा पालन करने का आदि नहीं है, समाज के बहुत बड़े भाग से अपनी आज्ञा का पालन सहज रूप से करा लेता है तो वह निश्चित श्रेष्ठ व्यक्ति प्रभुसत्ताधारी है और वह समाज राजनीतिक एवं स्वतन्त्र समाज है।
 
 

5. निम्नलिखित में से किसने विधिक और राजनीतिक सम्प्रभुता में विभेद विकसित किया ?

 
(a) बेन्थम
 
(b) डायसी
 
(c) ह्यम
 
(d) मिल
 
उत्तर-(b)
 
 
 
• व्याख्या-डायसी ने विधिक एवं राजनीतिक प्रभुसत्ता में भेद करते हुए कहा है कि वकील द्वारा मान्य कानूनी प्रभुसत्ताधारी के पीछे एक अन्य प्रभुसत्ताधारी होता है जिसके आगे कानूनी प्रभुसत्ताधारी को सिर झुकाना पड़ता है। यह राजनीतिक प्रभुसत्ता होती है जिसकी इच्छा अन्तिम तौर पर नागरिकों को माननी पड़ती है।
 
 

6. सम्प्रभुता का बहुलवादी सिद्धान्त सर्वप्रथम किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया ?

 
(a) लास्की
 
(b) वॉन गियर्क
 
(c) बोदाँ
 
(d) मैकाइवर
 
उत्तर-(b)
 
• व्याख्या- जर्मन विचारक ऑटो वॉन गियर्क (1841-1921) तथा ब्रिटिश विद्वान मैटलैण्ड (1850-1906) को आधुनिक राजनीतिक बहुलवाद का जनक कहा जाता है। इन विद्वानों का मानना है कि प्रत्येक समाज की रचना में अनेक संघों का होना स्वाभाविक है। राज्य न तो इन संघों को जन्म देता है और न ही ऐसे संघ अपने अस्तित्व के लिए राज्य पर निर्भर होते हैं। गियर्क तथा मैटलैण्ड का मत था कि राज्य संस्था को संघों की गतिविधि में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। अन्य बहुलवादी विचारक हैं- विलियम जेम्स, फिगिस, फॉलैट, लिण्डसे, बार्कर, क्रैब, लास्की, कोल, मैकाइवर आदि।
 
 

7. सम्प्रभुता राज्य द्वारा आदेश देने वाली निरंकुश एवं शाश्वत शक्ति है। यह प्रजा और नागरिकों पर विधि द्वारा अनियन्त्रित सर्वोच्च शक्ति है। सम्प्रभुता की यह परिभाषा निम्नांकित में से किसके विचारों से मेल खाती है, वह कौन है?

 
(a) जीन बोदाँ
 
(b) अरस्तू
 
(c) एच.जे. लास्की
 
(d) जे. बेन्थम
 
उत्तर-(a)
 
• व्याख्या-जीन बोदाँ के मत में- प्रभुसत्ता नागरिकों और प्रजाजनों पर प्रयुक्त की जाने वाली वह सर्वोच्च शक्ति है जो कानून द्वारा नियन्त्रित नहीं होती अर्थात् कानून के बन्धन से मुक्त है। उसके अनुसार – प्रभुसत्ता एक राज्य में शासन करने की निरपेक्ष एवं स्थायी शक्ति है।
 
 
 

8. जीन बोदाँ ने सम्प्रभुता की परिभाषा इस प्रकार दी है- “यह नागरिकों और प्रजाजनों पर लागू होने वाली एक ऐसी सर्वोच्च शक्ति है, जो कानून से बाधित नहीं होती।” लेखक के मतानुसार इस परिभाषा का निहितार्थ है-

 
(a) सम्प्रभु सकारात्मक विधि से बाधित नहीं है, किन्तु उच्च विधि के अधीन है
 
(b) सम्प्रभु किसी भी प्रकार की विधि के अधीन नहीं है चाहे वह दैविक तथा प्राकृतिक विधि ही क्यों न हो
 
(c) सम्प्रभु देश के मूल कानून को बदल सकता है
 
(d) सम्प्रभु विधिक दृष्टि से सर्वशक्तिमान और नैतिक दृष्टि से सर्वोच्च है
 
उत्तर-(a)
 
• व्याख्या-जीन बोदाँ (1530-1596) ने प्रभुसत्ता के विचार को धर्मशास्त्र के घेरे से बाहर निकाला। इसका तात्पर्य यह है कि विधिवत प्रशासित प्रत्येक स्वतन्त्र समुदाय में ऐसी कोई शक्ति होनी चाहिए जो चाहे एक व्यक्ति में निहित हो या अनेक में, जिससे विधियों की स्थापना होती है और स्वयं कानून का स्रोत हो। वह कहता है कि राज्य अपने क्षेत्र में रहने वाले सभी नागरिकों और प्रजाजनों पर निरपेक्ष एवं अन्तिम शक्ति रखता है। बोदाँ की प्रभुसत्ता दैवी तथा प्राकृतिक कानूनों से बँधी हुई है।
 
 
 

9. निम्नलिखित में से किसने सम्प्रभुता की यह परिभाषा की है ? “जब एक निश्चित उच्चतर मानव जो अपने समान किसी दूसरे उच्चतर मानव की आज्ञापालन का अभ्यस्त नहीं है और जो समाज के अधिकांश भाग से अभ्यास-जनित आज्ञा प्राप्त करता है, वह उच्चतर मानव उस समाज में सम्प्रभु है और वह समाज राजनीतिक एवं स्वतन्त्र समाज है।”

 
(a) बोदाँ
 
(b) जॉन ऑस्टिन
 
(c) टॉमस हॉब्स
 
(d) हेराल्ड लास्की
 
उत्तर-(b)
 
• व्याख्या- जॉन आस्टिन ने प्रभुसत्ता सम्बन्धी अपने विचार अपनी पुस्तक- ‘लेक्चर्स ऑन ज्यूरिसप्रूडेंस’ में दिये। उन्होंने प्रभुसत्ता का कानूनी या एकलवादी सिद्धान्त दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि समाज में एक निश्चित श्रेष्ठ मानव का होना अनिवार्य है। प्रभुसत्ता असीमित है और वह किसी भी प्रकार के अवरोध सहन नहीं कर सकती।
 

10. “सम्प्रभुता राज्य की सर्वोच्च इच्छा है।” यह कथन है –

(a) ग्रोशस का
(b) विलोबी का
(c) डुग्वी का
(d) बर्गेस का
 
उत्तर-(b)
 
• व्याख्या-विलोबी सम्प्रभुता राज्य की सर्वोच्च इच्छा है। ग्रोशस ऐसे किसी व्यक्ति में निहित सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति जिसके कार्य किसी दूसरे के अधीन न हों और जिसकी इच्छा का कोई उल्लंघन न करे। ग्रोशस ने बाह्य सम्प्रभुता का प्रतिपादन किया। डुग्वी के अनुसार-राज्य की वह शक्ति जिसके बल पर राज्य आदेश देता है। यह राज्य के रूप में राज्य की संगठित इच्छा है। बगेंस के अनुसार – प्रभुसत्ता जनता तथा जनता के सभी संगठनों के ऊपर मौलिक, निरंकुश और असीमित शक्ति है।
 
 

11. लोकप्रिय सम्प्रभुता का विचार किसने दिया ?

(a) बोदाँ
(b) ऑस्टिन
(c) रूसो
(d) ग्रोशस
 
उत्तर-(c)
 
• व्याख्या-जीन जेक्स रूसो (1712-1778) के अनुसार लौकिक या लोकप्रिय प्रभुसत्ता का अर्थ है कि जनता अन्तिम और सर्वोच्च शक्ति की स्वामिनी तथा सारी शक्तियों का स्त्रोत है। जनता का प्रत्येक व्यक्ति, व्यक्तिगत स्तर पर मिल बाँटकर प्रभुसत्ता का प्रयोग करते हुए नागरिक कहलाता है और कानूनों का पालन करते हुए प्रजा कहलाता है।
 
 

12. विश्लेषणोपरान्त ऑस्टिन के सिद्धान्त में सम्प्रभु के पास है-

(a) अधिकार एवं कर्त्तव्य
(b) न तो अधिकार न ही कर्त्तव्य
(c) मात्र अधिकार कर्त्तव्य नहीं
(d) मात्र कर्त्तव्य अधिकार नहीं
 
उत्तर-(c)
 
• व्याख्या- जॉन ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक ‘लेक्चर्स ऑन ज्युरिस्प्रुडेन्स’ में एकलवादी प्रभुसत्ता की अवधारणा का विकास किया है। उनका कहना है कि- सम्प्रभु का आदेश ही कानून है। प्रभुसत्ता असीमित है और वह किसी भी प्रकार का अवरोध सहन नहीं कर सकती। यह सर्वोच्च, अदेय, सर्वव्याप्त तथा एकान्वित शक्ति है।
 
 

13. वैधानिक तथा राजनीतिक सम्प्रभुता के मध्य विभेदीकरण किया गया

(a) जॉन लॉक द्वारा
(b) जॉन ऑस्टिन द्वारा
(c) एच.जे. लास्की द्वारा
(d) बार्कर द्वारा
 
उत्तर-(c)
 
• व्याख्या-लॉस्की बहुलवाद का प्रणेता था तथा चाहता था कि व्यक्तियों तथा समुदायों के नागरिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों को सत्ताधारियों के हस्तक्षेप से सुरक्षित रखा जाए। सरकार की आज्ञा का पालन केवल तभी करना चाहिए जबकि वह यह अनुभव करे कि सरकार सामान्य हितों का पोषण कर रही है। उन्होंने कहा कि मेरा कार्य ही विधि को वैधानिकता प्रदान करता है।
 
 
14. जीन बोदाँ ने अपनी सम्प्रभुता की संकल्पना उधार ली थी-
(a) मैकियावली से
(b) फ्रांस के धार्मिक युद्धों से
(c) हॉब्स से
(d) ऑस्टिन से
 
उत्तर-(b)
 
• व्याख्या- डॉ० विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने लिखा है कि बोदाँ ने एक ऐसे राजनीतिक सिद्धान्त का प्रणयन किया, जिसका तीन शताब्दी में फ्रांस की दयनीय अवस्था में उद्भव हुआ। धार्मिक युद्ध पीछे चलकर दो सामन्तवादी गुटों के युद्ध में परिवर्तित हो गया। इन युद्धों के कारण फ्रांसीसी समाज जर्जर होता जा रहा था। ऐसे समय में बोदाँ ने सम्प्रभुतावाद का नारा दिया और ऐसी आशा व्यक्त की कि सम्प्रभुता का उपभोग सामाजिक शक्तियों के कल्याण में किया जाएगा। इस प्रकार जीन बोदाँ ने सम्प्रभुता की संकल्पना फ्रांस के धार्मिक युद्धों से उधार ली थी।
 
 
15. “सम्प्रभुता मूलतः संकट का सिद्धान्त था।” यह मत किसने प्रतिपादित किया ?
 
(a) जॉर्ज केटलिन
(b) एच० जे० लास्की
(c) वाल्टर लिपमैन
(d) एच० क्रेब
 
उत्तर-(b)
 
• व्याख्या-प्रो० लास्की (1893-1950) ने अपनी पुस्तक ‘ए ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स’ तथा अन्य कृतियों में एकलवादी प्रभुसत्ता की कठोर निन्दा की तथा यह दर्शाने का प्रयास किया कि एकलवादी प्रभुसत्ता का सिद्धान्त, 20 वीं शताब्दी की परिस्थितियों तथा वातावरण को देखते हुए, ‘एक विनाशकारी सिद्धान्त’ है। ऐतिहासिक दृष्टि से, लास्की ने एकलवादी प्रभुसत्ता को जिस हद तक ऐतिहासिक विवशताओं का परिणाम माना है, उतना तर्क या न्याय दृष्टि का परिणाम नहीं माना।
 
 
 

16. निम्नलिखित में से किसका कथन है कि “सम्प्रभुता, विधि द्वारा अबाधित नागरिकों और प्रजाओं के ऊपर, राज्य की सर्वोच्च शक्ति है”?

(a) जे० बोदाँ
(b) एच० गार्डनर
(c) हैरोल्ड जे० लास्की
(d) अयातुल्लाह रोहल्लाह खोमैनी
 
उत्तर-(a)
 
• व्याख्या- जीन बोदाँ (Jean Bodin) के अनुसार सम्प्रभुता राज्य का प्राण है, इसके बिना राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रभुसत्ता ही वह विभाजक रेखा है, जो राज्य को अन्य परिवारों से पृथक् करती है। बोदाँ के शब्दों में, “प्रभुसत्ता नागरिकों और प्रजाजनों के ऊपर विधि द्वारा अमर्यादित सर्वोच्च शक्ति है।” (Sovereignty is the Supreme Power over citizens and Subjects Unrestrained by Law)
 
 
17. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है ?
(a) राज्य विभिन्न संघों में से एक है
(b) राज्य सम्प्रभु संघ है
(c) राज्य अन्य संघों का अधीनस्थ है
(d) राज्य में सम्पूर्ण समाज शामिल है
 
उत्तर- (a)
 
• व्याख्या-बहुलवादी राज्य को समाज की वर्तमान स्थिति और रचना के आधार पर राज्य को अन्य समुदायों की भाँति ही एक समुदाय के अतिरिक्त कुछ नहीं मानते। मानवीय जीवन की आवश्यकताएँ बहुमुखी होती हैं और राज्य मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। इसी के कारण राज्य के अतिरिक्त अन्य समुदायों का भी अस्तित्व है। इस प्रकार बहुलवाद इस बात का प्रतिपादन करता है कि अन्य समुदाय स्वतन्त्र रूप से व्यक्ति के जीवन के सभी पहलुओं का यथेष्ठ विकास कर सकें और ये सभी समुदाय राज्य के समकक्ष हैं। लास्की के शब्दों में, “समुदायों के अनेक प्रकारों में से राज्य भी एक है और अन्य समुदायों की तुलना में वह भी भक्ति का उच्चतर अधिकारी नहीं है।” मैटलैण्ड के अनुसार, “राज्य भी इन्हीं समुदायों में से एक है।” 
 
18. निम्नलिखित में से कौन सम्प्रभुता के विधिक सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक हैं?
(a) बोदां
(b) लॉक
(c) रूसो
(d) ऑस्टिन
 
उत्तर-(d)
 
• व्याख्या- प्रभुसत्ता के विचार की सर्वोत्तम व्याख्या इसके वैधानिक अथवा विधिशास्त्रीय रूप में देखी जा सकती है। इसका कारण यह है कि राज्य की इच्छा का श्रेष्ठतम रूप राज्य के कानून में निहित है, जो सभी को बाध्यकारी होता है, इसलिए प्रभुसत्ता का पूर्णतया वैधानिक दृष्टि से अध्ययन जैसा हॉब्स व बैन्थम ने किया है, अपनी विशेष महत्ता रखता है। इस सन्दर्भ में, इस शब्द की सर्वोत्तम व्याख्या एक अंग्रेज न्यायविद् जॉन ऑस्टिन (1790-1859) ने प्रस्तुत की है, जिसने 1832 ई० में प्रकाशित अपनी रचना ‘The Province of Jurisprudence Determined’ में की है।
 
 

19. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है ?

 
(a) सम्प्रभुता राज्य में निवास करती है और उसी के द्वारा प्रयुक्त की जाती है 
(b) सम्प्रभुता राज्य में निवास करती है और सरकार के द्वारा प्रयुक्त की जाती है
(c) सम्प्रभुता सरकार में निवास करती है और उसी के द्वारा प्रयुक्त की जाती है
(d) सम्प्रभुता नागरिकों में निवास करती है और सरकार के द्वारा प्रयुक्त की जाती है
 
उत्तर-(a)
 
• व्याख्या- प्रभुसत्ता या सम्प्रभुता राज्य का अनिवार्य लक्षण है। प्रभुसत्ताधारी (Sovereign) चाहे कोई मुकुटधारी नरेश (Crowned Prince) हो, मुख्य कार्यकारी (Chief Executive) हो, या कोई सभा (Assembly), वह केवल अपनी इच्छा से कानून की घोषणा कर सकता है, आदेश जारी कर सकता है और राजनीतिक निर्णय कर सकता है। ये कानून, आदेश और निर्णय उसके अधिकार-क्षेत्र में आने वाले सब लोगों या समूहों और संगठनों के लिए बाध्यकर (Binding) होते हैं।
 
 

20. रूसो समर्थक था –

 
(a) व्यक्तिगत सम्प्रभुता का
(b) जन सम्प्रभुता का
(c) राजनीतिक सम्प्रभुता का
(d) विधायी सम्प्रभुता का
 
उत्तर-(b)
 
• व्याख्या-रूसो जन सम्प्रभुता का समर्थक था। उसने राज्य की सत्ता को लोगों की सामान्य इच्छा पर आधारित बताया है। रूसो के अनुसार- “सामान्य इच्छा किसी समुदाय के सब सदस्यों की तात्त्विक इच्छा को व्यक्त करती है। अर्थात् यहाँ आकर वे अपने तात्कालिक स्वार्थ को भूल जाते हैं और पूरे समुदाय के स्थायी हित की भावना से प्रेरित होकर कार्य करने लगते हैं।”
 
 

21. बहुलवादी विचारक सम्प्रभुता की पारम्परिक अवधारणा का विरोध क्यों करते हैं ?

 
(a) क्योंकि अन्य संघ उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितना राज्य
 
(b) क्योंकि यह अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के मार्ग में बाधक है
 
(c) क्योंकि यह गैर-लोकतान्त्रिक है
 
(d) क्योंकि यह निष्प्रभावी है
 
उत्तर-(a)
 
• व्याख्या-बहुलवाद राज्य के एक तत्त्वीय स्वरूप और अखण्ड प्रभुसत्ता का विरोध कर सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राज्य के साथ-साथ अन्य सामाजिक संस्थाओं की भूमिका को महत्त्व देता है।
 

22. जो सिद्धान्तकार (Theorists) राज्य को ‘संघों का संघ’ (Association of Associations) मानते हैं, उन्हें-

(a) समाजवादी कहा जाता है
(b) संघवादी (Federalists) कहा जाता है
(c) अराजकतावादी (Anarchists) कहा जाता है
(d) बहुलवादी (Pluralists) कहा जाता है
 
उत्तर-(d)
 
• व्याख्या-प्रभुसत्ता के बहुलवादी विचारकों के अनुसार राज्य सामाजिक संघों में से एक संघ है। ऐसी स्थिति में यह व्यक्ति की पूर्ण निष्ठा पाने का दावा नहीं कर सकता। इनका मानना है कि यदि समाज संघात्मक है तो सत्ता को भी संघात्मक होना चाहिए।
 
 

23. बहुलवादी सिद्धान्त शक्ति (Power) को मानता है-

(a) संसाधनों पर नियन्त्रण के रूप में
(b) एक निश्चित मात्रा के रूप में
(c) सम्बन्धात्मक (Relational) रूप में
(d) दमनकारी (Repressive) रूप में
 
उत्तर-(c)
 
• व्याख्या- बहुलवादी सिद्धान्त के अनुसार शक्ति एवं सत्ता एक ही जगह केन्द्रित नहीं होती, बल्कि सामाजिक जीवन के अनेक केन्द्रों में बँटी होती है। यह समाज में स्वायत्त समूहों के निर्माण को बढ़ावा देता है, जो राज्य के प्रतिस्पर्धी समूह न होकर व्यक्ति और राज्य के बीच मध्यवर्ती निकायों की भूमिका निभाते हैं।
 
 

24. निम्नलिखित में से सर्वप्रथम किसने सम्प्रभुता (Sovereignty) की संकल्पना (Concept) निरुपित की?

 
(a) अरस्तू
(b) बोदाँ (Bodin)
(c) हॉब्स
(d) लॉस्की
 
उत्तर-(b)
 
• व्याख्या- सर्वप्रथम फ्रांस के जीन बोदाँ ने सन् 1576 में प्रकाशित अपनी बुक “सिक्स बुक्स ऑन द रिपब्लिक” में सम्प्रभुता शब्द का प्रयोग किया। उसके अनुसार प्रभुसत्ता नागरिकों एवं प्रजाजनों पर राज्य की सर्वोच्च शक्ति है जो कानून के नियन्त्रण से परे है।
 
 

25. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-

 

वैधता (Legitimacy) के लिए आवश्यक है-

 

1. ऐसी धारणाओं (Beliefs) का सृजन (Generating) जो पूँजीवाद समाजों में जनतन्त्र का बना रहना सुनिश्चित करती है

 

2. ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा सत्ता को स्वीकरण (Acceptance) प्राप्त होता है 

 

3. कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक दक्ष पुलिस व्यवस्था

 

4. अवपीड़न (Coercion) का न होना

 

उपरोक्त कथनों में से कौन-से सही हैं ?

 
(a) 1, 2, 3 और 4
 
(b) 2, 3 और 4
 
(c) 1, 2 और 4
 
(d) 1 और 3
 
उत्तर-(c)
 
• व्याख्या- वैधता, वास्तव में शक्ति और सत्ता के बीच की कड़ी है। मानव सम्बन्धों के क्षेत्र में यदि शक्ति को वैधता का सहारा मिल जाए तो उसमें स्थयित्व आ जाता है। प्रत्येक शासक अपने शासन को वैध ठहराने के लिए अनेक उपायों का सहारा लेता है, यथा- धार्मिक भावनाओं का, जनतन्त्र की स्थापना का, झूठे प्रचार का आदि।

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