वैधुत आवेश तथा क्षेत्र (Electric Charge and Field)
वैधुत आवेश (Electric Charge) :-
आवेश (Electric Charge) किसी वस्तु जिसके कारण वह वैधुतमय प्रभाव अनुभव करता है | आवेश एक अदिश राशि है | इसका मात्रक कुलॉम होता है |
आवेश की संकल्पना इलेक्ट्रॉन के आधार पर दी जाती है |
क्योंकि किसी वस्तु के धनावेशित तथा ऋणावेशित होने की क्रिया इलेक्ट्रॉन के स्थानान्तरण से ही समझाई जा सकती है | तथा इलेक्ट्रॉन परमाणु से आसानी से अलग भी किया ज सकता है, प्रोटोन नहीं | अत: किसी वस्तु के आवेशित होने के लिए इलेक्ट्रॉन ही उत्तरदायी होता है, प्रोटोन नहीं |
महत्वपूर्ण तथ्य – (1) किसी वस्तु के धनावेशित होने का आशय है वस्तु पर सामान्य अवस्था से इलेक्ट्रॉनों की कमी होने और वस्तु के ऋणावेशित होने का आशय है कि वस्तु पर सामान्य अवस्था में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता का होना |
यदि किसी वस्तु में इलेक्ट्रॉन की हानि होती है तो इसे धनावेशित कहा जाता है |
यदि किसी वस्तु में इलेक्ट्रॉन की वृद्धि हो तो उसे ऋणावेशित कहा जाता है |
(2) किसी वस्तु के विधुतीकरण के लिए इलेक्ट्रॉन उत्तरदायी होते है, प्रोटोन नहीं, क्योंकि इलेक्ट्रॉन नाभिक के बाहर रहते है उन्हें पृथक करना आसान है जबकि प्रोटोन नाभिक के अंदर प्रबल बलों द्वारा बंधे रहते है, अत: प्रोटोन को नाभिक से हटाना कठिन है |
द्रव्यमान तथा आवेश में अंतर
द्रव्यमान | आवेश |
1. बिना आवेश के द्रव्यमान सम्भव है | | बिना द्रव्यमान के आवेश संभव नहीं है | |
2. द्रव्यमान, निर्देश तंत्र पर आधारित है | $$m = \frac{m_0}{\sqrt{1-(\frac{v^2}{c^2})}}$$ |
आवेश, निर्देश तंत्र पर निर्भर नहीं करता है | |
3. द्रव्यमान सदैव धनात्मक होता है | | आवेश धनात्मक या ऋणात्मक दोनों प्रकार का सम्भव है | ऋण आवेशित वस्तु का द्रव्यमान अधिक तथा धन आवेशित वस्तु का द्रव्यमान कम होता है | |
4. दो द्रव्यमानों के मध्य सदैव आकर्षक बल होता है | $$F=-\frac{Gm_1m_2}{r^2}$$ यह बल माध्यम पर निर्भर नहीं करता है | |
दो आवेशों के मध्य आकर्षण या प्रतिकर्षण हो सकता है | $$F=\frac{kq_1q_2}{r^2}$$ यह बल माध्यम पर निर्भर करता है | |
5. त्वरित द्रव्यमान ऊर्जा नहीं करता है | | त्वरित आवेश ऊर्जा उत्सर्जित करता है | |
चालक तथा विधुतरोधी (Conductors and Insulators) :-
प्रकृति में पाये जाने वाले समस्त पदार्थों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है –
(1) चालक (Conductors) (2) विधुतरोधी (Insulators)
(1) चालक (Conductors) :- वे पदार्थ जिन्हें विधुत आवेशों को स्थान से दूसरे स्थान तक प्रवाह के लिए उपयोग में लिया जाता है, उन्हें चालक पदार्थ कहते है | जैसे – लोहा, तांबा, चाँदी, एल्युमीनियम, पारा, अम्ल, क्षार, साल्ट का घोल इत्यादि विधुत के चालक पदार्थ है | चाँदी विदुत का सबसे अच्छा चालक है | जब किसी चालक को आवेश दिया जाता है तो यह आवेश चालक के बाह्य पृष्ठ पर फ़ैल जाता है तथा चालक के भीतर प्रत्येक बिंदु पर आवेश शून्य होता है |
(2) विधुतरोधी पदार्थ (Insulators) :- वह पदार्थ जिससे होकर आवेश (या विधुत) का प्रभाव नहीं हो सकता है | कुचालक या विधुतरोधी कहलाता है | जैसे काँच, रबर, प्लास्टिक, एबोनाइट इत्यादि विधुतरोधी पदार्थ है | इन्हें पैरावैधुत पदार्थ (dielectric) भी कहा जाता है |
Question :- आप किसी धातु के गोले को स्पर्श किये बिना कैसे धनावेशित कर सकते हो ?
Solution – किसी चालक वस्तु (अर्थात् धातु के गोले) को बिना स्पर्श किये, प्रेरण की क्रिया द्वारा आवेशित किया जा सकता है |
स्टेप – 1 :- किसी विधुतरोधी धातु के स्टैण्ड पर कोई अनावेशित धातु का गोला रखते है |
स्टेप – 2 :- अब गोले के निकट ऋणावेशित छड लाने पर गोले के मुक्त इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण छड से दूर वाले सिरे पर चले जाते है तथा छड़ के निकट सिरे पर धनावेशित रह जाता है |
स्टेप – 3 :- छड़ से दूर के गूले के सिरे को भूसंपर्कित करने पर मुक्त इलेक्ट्रॉन पृथ्वी में समाहित हो जाते है जबकि धनावेशित छड़ के आकर्षण के कारण बद्ध रहता है |
स्टेप – 4 :- गोले का भूसम्पर्क समाप्त करने पर पास के सिरों पर धनावेश की बद्धता बनी रहती है |
स्टेप – 5 :- आवेशित छड़ को हटाने पर धनावेशित गोले के पृष्ठ पर एकसमान रूप से फ़ैल जाता है |
इस प्रयोग में धातु का गोला प्रेरण की प्रक्रिया द्वारा आवेशित हो जाता है तथा छड़ अपना कोई आवेश नहीं खोती |
यदि गोले के निकट से दूरस्थ सिरे पर धनावेश पृथ्वी से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर उदासीन होगा तथा गोला ऋणावेशित हो जायेगा |