राजस्थान में अपवाह तंत्र
राजस्थान में जल विसर्जन के आधार पर तीन प्रकार का अपवाह तंत्र पाया जाता है –
1. आंतरिक प्रवाह की नदियाँ (60%) :- वे नदियाँ जो अपना जल किसी सागर या महासागर में नहीं डाले और धरातलीय क्षेत्र में ही विलुप्त हो जाये, उनका प्रवाह क्षेत्र आंतरिक प्रवाह क्षेत्र एवं वो नदियाँ आंतरिक प्रवाह की नदियाँ कहलाती है | इन नदियों को रुण्डित नदियाँ भी कहते है |
2. अरब सागर की ओर जाने वाली नदियाँ (17%) :- वे नदियाँ जो अपना जल अरब सागर में डालती है वो नदियाँ अरब सागर की ओर जाने वाली नदियाँ कहलाती है इन नदियों को पुन: दो भागों में बांटा गया है –
(अ) कच्छ का रन में जाने वाली नदियाँ – यहाँ अंतिम रूप से लूनी व पश्चिमी बनास नदी अपना जल पहुंचाती है |
(ब) खम्भात की खाड़ी में जाने वाली नदियाँ – यहाँ अंतिम रूप से माहि व साबरमती अपना जल पहुँचाती है | (राजस्थान में अपवाह तंत्र)
3. बंगाल की खाड़ी की ओर जाने वाली नदियाँ (23%) :- वे नदियाँ जो अपना जल बंगाल की खाड़ी में डाले वो नदियाँ बंगाल की खाड़ी की ओर जाने वाली नदियाँ कहलाती है | इस प्रवाह क्षेत्र में राजस्थान की सर्वाधिक नदियाँ आती है |
ध्यातव्य रहे – राजस्थान में सर्वाधिक नदियाँ चित्तौड़गढ़ जिले में व कोटा संभाग में है जबकि सबसे कम नदियाँ चुरू व बीकानेर जिले में (एक भी नही ) तथा बीकानेर संभाग में एक मात्र नदी ‘ घग्घर नदी ‘ है |
राजस्थान में परम्परागत रूप से जल संरक्षण के लिए आने वाले साधनों के अंतर्गत टांका , नाडी, जोहड़, खड़ीन, तालाब, कुँए और बावड़ियाँ प्रमुख है | शेखावाटी क्षेत्र में कुँए को स्थानीय भाषा में जोहड़ कहते है |
जल में रासायनिक तत्वों की जांच के लिए राज्य में तीन प्रयोगशालाएँ जोधपुर, जयपुर व उदयपुर में स्थापित की गई है |
18 फरवरी 2010 को राजस्थान में जल संरक्षण एवं प्रबन्धन के लिए नई जल नीति घोषित की गई थी | (राजस्थान में अपवाह तंत्र)