Human Health 

स्वास्थ्य वह अवस्था है, जिसमे मनुष्य का शरीर सुचारू रूप से अपने कार्य पूरा करता है | स्वस्थ होना केवल शारीरिक ही नहीं अपितु मानसिक तथा सामाजिक रूप से ठीक होना भी है | जीव की शारीरिक या मानसिक संरचना को यदि किसी कारण से अवरुद्ध होना पड़ता है तो वह रोगग्रस्त अवस्था कही जाती है | Human Health 

स्वस्थ शरीर की यह रोगग्रस्त अवस्था विभिन्न कारकों से हो सकती है जैसे संक्रमण (infections), जीवन यापन का गलत तरीका, व्यायाम की कमी, खान-पान की गलत आदतें, आराम की कमी, खान – पान में जरूरी पोषक तत्वों की कमी से या कभी – कभी आनुवंशिक विकारों (genetic disorders) से भी शरीर रोगग्रस्त हो सकता है | 

अत: रोगी होने से बचाव हेतु संतुलित आहार (balance diet), अपनी निजी व आस – पास की साफ – सफाई, निरंतर व्यायाम, रोगों के प्रति जागरूकता, रोगों से बचाव, संक्रमण रोगों के प्रति टीकाकरण जैसे उपायों को अपनाना चाहिए | 

 

रोग (Disease) 

रोग शरीर की एक ऐसी अवस्था है, जिसमें शरीर की कार्यिकी सुचारू रूप से न चलकर कुछ या अधिक परिवर्तित हो जाती है | रोग, शरीर की कार्यिकी में व्याधि उत्पन्न होना है | रोग की पहचान रोगी के शरीर में दिखने वाले कुछ असामान्य लक्षणों से होती है | 

 

रोगों से सम्बन्धित परिभाषाएं :- 

पैथोलॉजी (Pathology) :- रोग तथा उसके लक्षणों का अध्ययन करना |

 

इटियोलॉजी (Etiology) :- रोग के कारणों का अध्ययन करना |

 

रोगकारक (Pathogen) :- ये सामान्यतया सूक्ष्म जीव होते है, जो कि रोग उत्पन्न करते है | जैसे – जीवाणु, वायरस, कवक, कृमि, प्रोटोजोआ आदि | 

 

रोग वाहक (vector) :- ये किसी रोगकारक को अपने शरीर में भोजन एवं आवास प्रदान करते है तथा रोगकारक के प्रसार में सहायता करते है | जैसे :- मादा एनाफ्लिज मच्छर |

 

वाहक (carrier) :- ये किसी रोगकारक को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का कार्य करते है | जैसे :- मक्खी हैजा की वाहक होती है |

 

आशय (Reservoir) :- ये जीव किसी रोगकारक को अपने शरीर पर आवास तो प्रदान करते है लेकिन स्वयं इससे प्रभावित नहीं होते है तथा अप्रत्यक्ष रूप से रोगकारक को फ़ैलाने में सहायक होते है | जैसे फल चमगादड़ निपाह वायरस का आशय होता है | 

 

इंटरफेरॉन :-  वायरस संक्रमण के समय हमारी कोशिकाओं के द्वारा स्त्रावित प्रोटीन से बना पदार्थ जो कि इनके संक्रमण को बढने से रोकता है | 

 

एंटीजन :- वह बाहरी पदार्थ जो हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय कर दे, एंटीजन कहलाता है | ये सजीव या निर्जीव भी हो सकता है | जैसे :-  जीवाणु, वायरस, धूल मिट्टी के कण |

 

एंटीबॉडीज :- हमारे शरीर में एंटीजन के प्रति सुरक्षा हेतु प्रतिरक्षा तंत्र के द्वारा एंटीबॉडीज का निर्माण किया जाता है | 

 

टीकाकरण :- ये रोगों के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न करने में सहायक होते है टीके निर्माण के आधार पर  मुख्य: दो प्रकार के होते है :- 

1. सक्रिय टीका (Active Vaccine) :- इसमें किसी रोगकारक को निष्क्रिय या मृत अवस्था में शरीर में प्रवेश कराया जाता है जिसमें हमारे शरीर में उस रोगकारक के प्रति एंटीबॉडी का निर्माण हो जाता है | ये पूरे जीवन भर रोग से सुरक्षा प्रदान करता है | जैसे पोलियो का टीका |

 

2. निष्क्रिय टीका (Inactive Vaccine) :-  इससे पहले से तैयार एंटीबॉडी को हमारे शरीर में प्रवेश कराया जाता है | ये कम समय तक रोग क्र प्रति सुरक्षा प्रदान करता है | जैसे टिटेनस का टीका |

 

ऐपीडेमियोलॉजी :- रोगों के फैलने का अध्ययन करना | इसे महामारी विज्ञान भी कहा जाता है | 

 

ऐण्डेमिक (Endemic):- किसी क्षेत्र विशेष में पाई जाने वाली बीमारी | जैसे घेंघा केवल पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है |    

 

एपिडेमिक (Epidemic) :- कुछ देशों या राज्यों में फैलने वाली बीमारी | इसे जनपदीय रोग भी कहते है | जैसे :- प्लेग |

 

पैन्ड़ेमिक (Pandemic) :- लगभग पूरे विश्व में फैला हुआ रोग | जैसे Covid – 19 और स्वाइन फ्लू | 

 

रोग का रोगाणु सिद्धांत (Germ plasm theory) :- लुई पाश्चर ने दी थी | इन्हें सूक्ष्मजीवविज्ञान का जनक माना जाता है | 

 

रोगों के प्रकार ( Types of Diseases ) :- 

 


 

जीवाणु से होने वाले रोग :- 

 

(1) T.B./ ट्यूबरक्लोसिस / कॉच disease / तबेदिक :-

रोगकारक :- माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस |

संक्रमण :- रोगी के संपर्क में आने से, दूषित जल एवं भोजन से |

लक्षण :- मुख्य रूप से श्वसन पथ एवं फेफड़ों में संक्रमण |

टीका :- BCG का टीका (बैसीलस, कोल्मेट, ग्यूरीन)

उपचार :- एंटीबायोटिक्स, MDR थैरेपी, DOTS पद्धति (Direct Observation Treatment Short – Course)|

टेस्ट :- मेन्टोक्स टेस्ट |

 

(2) टायफाइड / एन्टेरिक फीवर / मोतीझारा / slow – fever / मियादी बुखार :- 

रोगकारक:- साल्मोनेला टायफी 

संक्रमण :- दूषित जल एवं भोजन से |

लक्षण :- आँतों में संक्रमण, उल्टी-दस्त, तेज बुखार जो की शाम – रात्रि में बहुत तेज हो जाता है |

परीक्षण :- विडाल टेस्ट | |

टीका :- TABC वैक्सीन (टायफाइड, पैराटायफाइड A और B और हैजा)

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ | 

 

 

(3) कॉलेरा / हैजा / विसूचिका :- 

रोगकारक :- विब्रियो कॉलेरी 

वाहक :- मक्खी 

संक्रमण :- दूषित जल एवं भोजन से |

लक्षण :- आँतों में संक्रमण, उल्टी – दस्त एवं तेज बुखार  |

परीक्षण :- शिक परीक्षण |

टीका :- TABC वैक्सीन और ड्यूकोरल वैक्सीन |

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ, ORS(Oral Rehydration Solution) का घोल |

 

(4) डिफ्थीरिया (गलघोंटू) :- 

रोगकारक :- कोर्निबैक्टेरियम डीफ्थिरियाई |

संक्रमण :-  संक्रमित वस्तुओं एवं दूषित जल एवं भोजन से |

लक्षण :- गले में संक्रमण, गहरे लाल डेन दिखाई देते है, श्वसन मार्ग / ट्रेकिआ में गाढ़ा पदार्थ ठोस होकर हमने लगता है | जिससे साँस लेने में कठिनाई आती है | 

परीक्षण :- Sputum Test (कफ परीक्षण) | 

वैक्सीन :- DPT का टीका (डिफ्थीरिया, परट्यूसिस, टिटेनस)

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ |

 

 (5) परट्यूसिस / काली खाँसी / कुकर खाँसी / 100 – days cough / Whooping cough 

रोगकारक :- हीमोफीलस परट्यूसिस / बोर्ड़ेटेला परट्यूसिस

संक्रमण :- संक्रमित वस्तुओं एवं रोगी के संपर्क में आने पर | 

लक्षण :- लगातार लम्बे समय तक चलने वाली  खाँसी | 

वैक्सीन :- DPT का टीका |

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएं | 

 

 

(6) बोटूलिज्म :- (खतरनाक खाद्य विषाक्तता / Food Poisoning)

रोगकारक :- क्लोस्ट्रिडियम बोटूलिनम 

संक्रमण :- डिब्बा बंद भोज्य पदार्थों में उपरोक्त जीवाणु के संक्रमण से | 

लक्षण :- तंत्रिका तंत्र एवं मांसपेशियां प्रभावित, व्यक्ति बेहोश हो जाता है और उपचार न मिलने पर व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है |

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ, एंटी – टॉक्सिन्स |

 

 

(7) कुष्ठ रोग / लेप्रोसी / हेनसन का रोग :- 

रोगकारक :- मायकोबैक्टीरियम लैप्रे 

संक्रमण :- रोगी व्यक्ति के संपर्क में लगातार रहने पर, दूषित जल एवं भोजन से | 

लक्षण :- शरीर के दूरस्थ अंग पर सफेद दाग बनते है और यहाँ की कोशिकाएँ नष्ट होती रहती है, जिससे ये अंग गलने लगते है |

टीका :- BCG वैक्सीन इसमें भी उपयोगी है |

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ (MDR थैरेपी)

परीक्षण :- लेप्रोमिन टेस्ट | 

 

(8) प्लेग / काली मौत / ब्यूबोनिक प्लेग :

रोगकारक :- थेरसीनिया पेस्टिस 

रोगवाहक :- जिनोप्सिला चियोप्सिस (ओरियेटीलिस रेट फ्लाई)

आशय :- चूहा 

लक्षण :- लसिका तंत्र में संक्रमण, शरीर दूरस्थ अंग काले पड़ने लगते है | जिससे गेंग्रीन होने लगता है |

वैक्सीन :- प्लेग – वैक्सीन 

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ एवं शल्य चिकित्सा | 

 

 

(9) एंथ्रेक्स :

रोगकारक :- बैसीलस एंथ्रेसिस 

संक्रमण :- रोगी के व्यक्ति के संपर्क में आने से, संक्रमित दुधारू पशुओं से |

लक्षण :- त्वचा पर छाले, श्वसन पथ में संक्रमण |

वैक्सीन :- एंथ्रेक्स वैक्सीन 

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ | 

नोट :-  बैसीलस एंथ्रेसिस का दुरूपयोग जैविक हथियार के रूप में भी किया जाता है |

 

(10) गोनेरिया / सुजाक :

रोगकारक :- नेस्सिरिया गोनोराई

संक्रमण :- संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन – सम्बन्ध से |

लक्षण :- जननांगों में संक्रमण,  मूत्र त्याग करते समय जलन, मूत्र पथ में घाव बन जाते है | बाँझपन हो जाता है |

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ |

 

(11) सिफलिस :- 

रोगकारक :- ट्रेपोनिमा पैलिडम 

संक्रमण :- संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन – सम्बन्ध से |

लक्षण :- जननांगों में संक्रमण,  मूत्र त्याग करते समय जलन, मूत्र पथ में घाव बन जाते है | बाँझपन हो जाता है, याददाश्त में कमी आने लगती है और बाल झड़ने लगते है |

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ |

 

(12) न्यूमोनिया : 

रोगकारक :- डिप्लोकोकस या न्यूमोकोकस या स्ट्रेप्टोकोकस निमोनियाई |

संक्रमण :- दूषित जल एवं भोजन से | 

लक्षण :- तेज बुखार – जुकाम एवं फेफड़ों में संक्रमण, साँस लेने में कठिनाई |

उपचार :- एंटीबायोटिक दवाएँ 

 

 

 

वायरस जनित रोग : 

(1) बड़ी माता / small pox / चेचक :

रोगकारक : वेरियोला वायरस 

संक्रमण : रोगी के संपर्क में आने से, संक्रमित वस्तुओं से | 

लक्षण : पूरे शरीर पर संक्रमित तरल से भरे दानों का होना, संक्रमण ठीक होने के बाद भी त्वचा पर ये गढ्ढ़ों के रूप में पाए जाते है |

टीका : स्माल पॉक्स वैक्सीन (खोजकर्ता – एडवर्ड जेनर)

उपचार : लक्षणात्मक उपचार 

नोट :- इसका विश्व से उन्मूलन हो चुका है |

 

 

(1) छोटी माता / चिकन पॉक्स :

रोगकारक :- वैरीसेला जोस्टर वायरस 

संक्रमण :- संक्रमित वस्तुओं से, रोगी के संपर्क में आने से |

लक्षण :- तेज बुखार, पूरे शरीर पर संक्रमित तरल से युक्त गहरे लाल रंग के दाने बन जाते है जो कि संक्रमण मुक्त होने पर ठीक हो जाते है |

 

उपचार :- लक्षणात्मक उपचार 

नोट :- चिकन पॉक्स जीवन में एक बार ही होता है इसके बाद शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है जिसके कारण दुबारा संक्रमण नहीं होता है |

 

 

(3) डेंगू (हड्डी तोड़ बुखार): 

रोगकारक :- डेंगू वायरस 

रोगवाहक :- एडीज इजिप्टाई मच्छर 

संक्रमण :- संक्रमित मच्छर के काटने से 

लक्षण :- प्रथम अवस्था में (प्रारम्भिक 4-5 दिन) – तेज बुखार, शरीर में दर्द होता है इसी लिए इसे हड्डी तोड़ बुखार कहते है | 

:- द्वितीय अवस्था में (4-5 दिन के बाद ) – प्लेटलेट्स की संख्या में कमी आने लगती है रक्त पतला हो जाने से रोगी बेहोश हो जाता है और कोमा में भी जा सकता है |

 

(4) पोलियो मायलाईटिस 

रोगकारक :- पोलियो वायरस / एंटीरोवायरस / पिकोर्नो वायरस 

संक्रमण : दूषित जल एवं भोजन से |

लक्षण : सर्वप्रथम आँतों में संक्रमण से डायरिया हो जाता है, फिर रोगकारक रक्त में होता हुआ अस्थि मज्जा में संक्रमण करता है, साथ ही तंत्रिका तंत्र एवं पेशियां भी प्रभावित होती है जिससे विकलांगता उत्पन्न हो जाती है |

उपचार :- कोई उपचार उपलब्ध नहीं है |

टीका :- दो प्रकार के टीके उपलब्ध है :- 

IPV :- Inactivated Polio Vaccine 

खोजकर्ता :- साल्क 

इसमें मृत वायरस को शरीर में इंजेक्शन के द्वारा डाला जाता है, जिससे शरीर में एंटीबॉडिज का निर्माण होता है |

OPV :- Oral Polio Vaccine 

खोजकर्ता :- सेबिन 

इसमें जीवित लेकिन रोग उत्पन्न करने की क्षमता से रहित वायरस को मुखीय टीके के रूप में दिया जाता है | 

नोट : मार्च 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया |

 

(5) मम्प्स / गलसुआ :-

रोगकारक :- पेरामिक्सो वायरस 

संक्रमण :- रोगी के संपर्क में आने पर, सामान्यतया बच्चों में लेकिन वयस्कों में भी |

लक्षण : पैरोटिड लार ग्रन्थियों में सूजन जो कि गले तक पहुँच जाती है, कभी ये वायरस रक्त से होता हुआ जननांगों में भी सुजन कर देता है, ऐसे में रोगी बंध्य / बाँझ हो जाता है |

 

वैक्सीन :- MMR का टीका (मम्प्स , मीजल्स और रूबेला)

उपचार :- लक्षणात्मक उपचार 

 

 

(6) मीजल्स / खसरा / रूबियोला : 

रोगकारक : रूबियोला वायरस 

संक्रमण :- रोगी के संपर्क में आने पर 

लक्षण :- चेहरे एवं गर्दन पर गहरे लाल रंग के डेन, तीव्र बुखार एवं साँस लेने में परेशानी |

वैक्सीन :- MMR 

उपचार :- लक्षणात्मक उपचार 

 

(7) रूबेला / जर्मन खसरा 

रोगकारक :- रूबेला वायरस 

संक्रमण :- रोगी व्यक्ति के संपर्क में आने से 

लक्षण :- खसरे के समान ही लक्षण 

वैक्सीन :- MMR 

उपचार :- लक्षणात्मक उपचार 

 

नोट :- वर्तमान में भारत सरकार के द्वारा स्कूलों, आंगनबाड़ी एवं मदरसों में MR टीकाकरण किया जाता है | जिसके तहत 13 वर्ष के बच्चों को मीजल्स रूबेला का टीकाकरण किया जाता है | 

 

(8) हर्पीज 

रोगकारक : हर्पीज वायरस 

संक्रमण : रोगी व्यक्ति से |

लक्षण : मुख के किनारे पर घाव होना 

वैक्सीन : हर्पीज वैक्सीन 

उपचार : लक्षणात्मक उपचार 

 

(9) एड्स / AIDS (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशियेंसी सिन्ड्रोम) 

रोगकारक : HIV (ह्युमन इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस)

सक्रमण : रोगी व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने से, माता से गर्भस्थ शिशु में, संक्रमित रक्त चढ़ाने से, संक्रमित सूई के प्रयोग से |

लक्षण : रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, व्यक्ति में WBC की संख्या में कमी आने लगती है तथा धीरे – धीरे दूसरे संक्रमण होने से व्यक्ति के अंग कार्य करना बंद कर देते है, अंततः मृत्यु हो जाती है | 

 

उपचार : उपलब्ध नहीं है | 

वैक्सीन : उपलब्ध नहीं है |

परीक्षण :- एलिसा परीक्षण (ELISA / एंजाइम लिंक्ड इम्यूनो सोर्बेंट एस्से)

निश्चात्मक परीक्षण : वेस्टर्न ब्लॉट 

 

 

(10) रेबीज / जल भीति / हाइड्रोफोबिया 

रोगकारक : रैब्ड़ो वायरस 

संक्रमण : रैबिड कुत्ते के काटने से 

लक्षण : कुत्ते के काटने के बाद घाव पर संक्रमण उत्पन्न, मांसपेशियाँ प्रभावित, मुख्यतया गले की पेशियाँ, जल निगलने में परेशानी | 

वैक्सीन : एंटी रेबीज वैक्सीन 

उपचार : लक्षणात्मक उपचार |

 

(11) हिपेटाईटिस / यकृत संक्रमण 

रोगकारक : हिपेटाईटिस वायरस (A,B,C,D,E)

संक्रमण : दूषित / संक्रमित वस्तुओं से, रोगी के संपर्क में आने से |

लक्षण : यकृत में संक्रमण होने से इसमें सूजन और दर्द होने लग जाता है |

उपचार : लक्षणात्मक उपचार 

वैक्सीन : हिपेटाईटिस वैक्सीन 

 

 

नोट : अत्यधिक मात्रा में शराब / एल्कोहल का सेवन करने पर यकृत में वसा  का जमाव होने लगता है जिससे यकृत में सूजन आने लगती है | इसे ‘लीवर सिरोसिस / वसीय यकृत संलक्षण कहते है | 

 

 

(12) मेनिन्जाईटिस 

रोगकारक : मुख्यतया वायरस लेकिन यह बैक्टीरिया और कवक से भी होता है |

संक्रमण : संक्रमित / दूषित वस्तुओं से, संक्रमित माता से शिशु में |

लक्षण : मस्तिष्क आवरण (मेननजेज) में संक्रमण के कारण सूजन आ जाती है ऐसे में मस्तिष्क पर दबाव पड़ने लगता है जिससे व्यक्ति कोमा में भी चला जाता है |

उपचार : लक्षणात्मक उपचार 

 

(13) इबोला 

सर्वप्रथम अफ्रीका में इबोला नदी के पास इसका वायरस देखा गया | इसमें शरीर से रक्त स्रावन अत्यधिक मात्रा में होने से रोगी की मृत्यु हो जाती है | 

 

(14) जीका 

ये जीका वायरस जो कि एडिज मच्छर के द्वारा मनुष्यों में संक्रमण उत्पन्न करता है  | इसका संक्रमण तो ठीक हो जाता है लेकिन यदि कोई संक्रमित स्त्री ठीक होने के बाद भी 3 – 4 वर्ष के दौरान गर्भधारण करे तो ऐसे में गर्भस्थ शिशु के सिर एवं मस्तिष्क का विकास नहीं हो पता है जिसे माइक्रोसिफेली लहते है ऐसे शिशु या तो गर्भावस्था में मर जाते है या जन्म के कुछ समय बाद मर जाते है | 

 

(15) निपाह वायरस 

फल चमगादड़ इसके आशय होते है तथा निपाह वायरस इसका रोगकारक है |

 

(16) सार्स / SARS ( Severe Acute Respiratory Syndrome)

यह 2002 से 2004 के बीच चीन में फैला था | इसे किलर निमोनिया भी कहा जाता है |   

  •  
  • प्रोटोजोआ द्वारा होने वाले रोग – 

 

1. पायरिया  

 

रोगकारक : एन्टअमीबा जिन्जिवेलिस 

 

संक्रमण : दांतों की सफाई न करना, दूषित जल एवं भोजन 

 

लक्षण : मसूड़ों में सूजन, रक्त स्राव तथा मुख से तेज दुर्गन्ध आना |

 

उपचार : एंटीबायोटिक दवाएँ, नियमित दांतों की सफाई |

 

 

2. मलेरिया 

 

रोगकारक  : प्लाज्मोडियम 

 

 

रोगवाहक : मादा  एनाफिलीज  मच्छर 

 

नोट:-   मलेरिया     रोग   मादा  एनाफिलीज  मच्छर  के काटने  से  होता  है। यह  रोग प्लाज्मोडियम नामक द्विपोषदीय  परजीवी द्वारा होता है। अर्थात् प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र दो परपोषियों में पूरा होता  है।  मनुष्य  इसका  द्वितीय  परपोषी होता है।  जिसमें इसका अलैंगिक चक्र  पूरा  होता  है।   जबकि  मादा   एनाफिलीज  इसका  प्रथमिक  परपोषी होता है। जिसमें इसका लैंगिक चक्र पूरा होता है।मानव शरीर में प्लाज्मोडियम को स्पोरोजोइट कहते है। और मादा एनाफिलीज में उसिस्ट कहते है। 

 

world malaria day – 25 अप्रेल

 

उपचार : सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त कुनैन सल्फेट तथा हाइड्रोक्सी

 

3. अमीबीयोसिस / अमीबता / अमीबीय पेचिश  

 

रोगकारक : एन्टअमीबा हिस्टोलाइटिका 

 

संक्रमण : दूषित जल एवं भोजन 

 

लक्षण : आँतों में संक्रमण, उल्टी – दस्त एवं तेज बुखार, संक्रमण बढ़ने पर मल के साथ खून आना | 

 

उपचार : एंटीबायोटिक दवाएँ , ORS |

 

 

 

 

4. काला अजार / लीशमानियेसिस 

 

रोगकारक : लिशमानिया डोनोवानी 

 

रोगवाहक : रेत मक्खी / sand fly 

 

लक्षण : RBC की संख्या में कमी, शरीर पर काले धब्बे बनने लगते है और एनीमिया के लक्षण दिखने लगते है |

 

उपचार : एंटीबायोटिक दवाएँ | 

 

5. अफ्रीकन  निद्रा रोग / ट्रिपनोसोमियेसिस 

 

रोगकारक : ट्रिपनोसोमा गैम्बियेंस 

 

रोगवाहक : सी – सी मक्खी (Tse – Tse मक्खी)

 

लक्षण : जैविक घड़ी तंत्र प्रभावित होता है जिससे व्यक्ति को असमय ही निद्रा आती है |

 

उपचार : एंटीबायोटिक दवाएँ 

 

 

  • कवक द्वारा होने वाले रोग:-
  • दाद –  ट्राइकोडर्मोफायटॉन द्वारा
  • एथलीट फुट – एपिडर्मोफायटॉन द्वारा

    मोनिलियासिस – केंडिडाएल्बीकेन्स द्वारा

    एस्पर्जिलोसिस – एस्पर्जिलस द्वारा

    टोरूलोसिस – क्रिप्टोकोकस नियोफ़ोमैन्स द्वारा

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