पादपों में पोषण
Nutrition In Plants
(Nutrition-in-plants ) जैविक क्रियाओं, वृद्धि, विकास एवं जनन के लिए पौधों में मुख्यतया मृदा से खनिज – लवण प्राप्त किए जाते है | इसे ही पोषण कहते है |
“वॉन हेलमॉण्ट ” ने सर्वप्रथम प्रेक्षित किया कि पौधे की वृद्धि के साथ मृदा के वजन में कमी आने लगती है |
” वुडवार्ड ” ने सर्वप्रथम बताया कि पौधे अपना पोषण मृदा से प्राप्त करते है |
लिबिग के न्यूनता सिद्धांत के अनुसार मृदा में जिस पोषक तत्व की सबसे ज्यादा कमी होती है वही तत्व पादप वृद्धि को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है |
” जूलियस साक्स ” ने सर्वप्रथम बताया कि यदि पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो पौधें मृदा के अलावा केवल जल में भी वृद्धि कर लेते है |
हाइड्रोपोनिक्स – जल में पौधों को उगाना |
एयरोपोनिक्स – नम / आर्द्र वायु में पौधों को उगाना |
बोनसाईं तकनीक – गमले में पेड़ उगाना |
” आर्नन व स्ट्राउट ” के अनुसार पोषक तत्व वे होते है जो –
– पौधों की वृद्धि, उपापचयी क्रियाओं व जनन के लिए आवश्यक हो |
– जिसकी कमी को किसी अन्य तत्व से दूर न किया जा सके |
– जिनकी कमी से कोई रोग हो जाए तथा वह रोग केवल उसी तत्व को उपलब्ध कराने से ठीक भी ही जाए |
पौधे के शुष्क भार में पोषक तत्वों की मात्रा के आधार पर इन्हें दो भागों में बांटा गया है –
वृहद पोषक तत्व :- ये पौधे के शुष्क भार के प्रति ग्राम में लगभग 1 – 10 मिलीग्राम तक होते है | जो निम्न है :-
C, H, N, O, S, P, Mg, K, Ca
सूक्ष्म पोषक तत्व :- ये पौधे के शुष्क भार के प्रति ग्राम में लगभग 0.1 मिलीग्राम या इससे कम तक होते है | जो निम्न प्रकार है :- Fe, Mn, Cu, Mo, Zn, B, Cl
वृहद पोषक तत्व
कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन :-
– ये पौधों में लगभग 95% भार के रूप में पाए जाते है |
– इन्हें सामान्यता खनिज तत्वों की श्रेणी में नही रखा जाता है |
– पौधे इन्हें जल तथा वायु से प्राप्त करते है |
– ये पौधों में प्रकाश – संश्लेषण, श्वसन एवं वृद्धि के लिए आवश्यक है |
नाइट्रोजन :-
– हरे पौधों में नाइट्रोजन मृदा से नाइट्रेट आयन (NO3– ) के रूप में अवशोषित की जाती है |
– ये प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, विटामिन व क्लोरोफिल का मुख्य घटक है |
– ये हार्मोन तथा कोएंजाइम में भी पाई जाती है |
– इसकी कमी से तने की असमान वृद्धि, जड़ तंत्र का विकास न होना तथा पत्तियों का पीलापन जैसे लक्षण दिखाई देते है |
फ़ॉस्फोरस :-
– फ़ॉस्फोरस मृदा से पौधों द्वारा अकार्बनिक अवस्था में H2PO4– आयन (मृदा की pH कम होने पर) तथा HPO4-2 आयन्स ( मृदा में pH की अधिकता होने पर) के रूप में अवशोषित किया जाता है |
– ATP व ADP के रूप में ऊर्जा उपापचय से सम्बन्धित, कोशिका झिल्ली के निर्माण में सहायक, बीजों के अंकुरण में सहायक |
– इसकी कमी से पत्तियों में नेक्रोसिस, (एंथोसायनिन के जमाव के कारण नीली हो जाती है |) और पत्तियां हंसियाकार दिखाई देती है |
सल्फर :-
– मृदा से SO4-2 (सल्फेट आयनों) के रूप में अवशोषित किया जाता है |
– सल्फर अमीनो अम्ल निर्माण (सिस्टीन, मिथियोनिन) में सहायक है प्याज व लहसुन की विशेष गंध सल्फर युक्त यौगिकों के कारण आती है | और लेग्युमिनोसी पौधों की जड़ों में ग्रंथियों के निर्माण में भी सहायक है |
– सल्फर की कमी से तने की लम्बाई कम रह जाती है | पत्तियों में हरिमाहीनता (क्लोरोसिस) और पत्तियों के किनारों का मुड़ना, चाय की पत्तियों का पीला पड़ना आदि |
पौटेशियम :-
– एकमात्र एक संयोजी धनायन K+ आयन के रूप में मृदा से अवशोषित किया जाता है |
– परासरण क्रिया नियमन, रंध्र की गति, कोशिका झिल्ली निर्माण और पोषक पदार्थों का परिवहन में सहायक |
– इसकी कमी से वाष्पोत्सर्जन व प्रकाश संश्लेषण और प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है |
– पौधे झाड़ीनुमा हो जाते है |
कैल्शियम :-
– मृदा से Ca+2 आयन के रूप में अवशोषित होता है |
– Ca कोशिका भित्ति की मध्य पटलिका के निर्माण में सहायक है तथा यह एंजाइम का सक्रियकारक और कोशिका विभाजन में सहायक है |
– Ca की कमी से विभाजन तर्कु निर्माण प्रभावित होता है | पत्तियों में क्लोरोसिस, जड़ों का विकास न हो पाना, पुष्पन की क्रिया प्रभावित होती है |
सूक्ष्म पोषक तत्व :
मैग्नीशियम :-
– मृदा से Mg+2 आयन के रूप में अवशोषित होता है |
– Mg भी मध्य पटलिका के निर्माण में सहायक है | यह क्लोरोफिल का मुख्य घटक है, राइबोसोम की उपइकाईयों को जोड़ने में सहायक है |
– इसकी कमी से एंथोसायनिन वर्णकता, प्रोटीन संश्लेषण भी प्रभावित, क्लोरोसिस |
लौह तत्व / आयरन / Fe :
– मृदा से फेरिक (Fe+3) तथा फेरस Fe+2 आयनों के रूप में अवशोषित होता है |
– फेरस अवस्था में उपापचयी रूप से सक्रिय होता है |
– एंजाइम का सक्रियकारक, प्रकाश – संश्लेषण एवं विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में सहायक के रूप में कार्य करता है |
– इसकी कमी से नेफ्रोसिस (उत्तक क्षय), क्लोरोफिल निर्माण प्रभावित होता है |
मैगनीज :
– मृदा से Mn+2 आयन के रूप में अवशोषित किया जाता है |
– मैगनीज एन्जैमों के सक्रियकारक, कोएंजाइम के रूप में श्वसन व प्रकाश संश्लेषण तथा जल अपघटन में सहायक |
– इसकी कमी से पत्तियों में क्लोरोसिस हो जाता है |
कॉपर :
– यह मृदा से Cu+2 आयन के रूप में अवशोषित हालाँकि इसकी अधिकता से पौधों में पुष्पन नही होता है |
– यह पोषक पदार्थों में संतुलन, एंजाइम का सक्रियकारक है |
– इसकी कमी से जनन क्रिया प्रभावित, एक्सेनथीमा नामक रोग जिसमें पौधे के वायवीय भागों पर गोंद के समान चिपचिपा पदार्थ उत्पन्न होता है |
मॉलिब्डेनम :
– MnO4-2 आयन के रूप में अवशोषित किया जाता है |
– उपापचयी क्रियाओं में एंजाइम के सक्रियकारक के रूप में सहायक, वृद्धि के लिए आवश्यक | एस्कोर्बिक अम्ल संश्लेषण व नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक |
– इसकी कमी से वृद्धि मंदित, हरिमाहीमता एवं उपापचयी क्रियाएँ प्रभावित होती है |
जिंक :
– मृदा Zn+2 आयन के रूप में अवशोषित किया जाता है |
– प्रोटीन संश्लेषण, अमीनो अम्ल (ट्रिप्टोफैन) उपापचय, पोषक तत्वों के उपापचय का नियमन करता है |
– इसकी कमी से पौधे के वायवीय भागों की वृद्धि प्रभावित, पुष्पन एवं फल निर्माण भी प्रभावित |
बोरोन :
– मृदा से H3BO3 / बोरिक अम्ल या टेट्रा बोरेट आयन के रूप में अवशोषित किया जाता है |
– यह पेक्टीन निर्माण, शर्करा स्थानांतरण आदि में सहायक है |
– इसकी कमी से कोशिका दीर्घीकारण नहीं होता जिससे जड़ों की वृद्धि प्रभावित होती है और पुष्पन नहीं होता है |
क्लोरीन :
– मृदा से क्लोराइड आयन के रूप में अवशोषित होता है |
– प्रकाश संश्लेषण में सहायक, Na+ – K+ आयन का संतुलन , परासरण नियमन में सहायक |
– इसकी कमी से प्रकाश संश्लेषण, जल संतुलन प्रभावित होता है और पत्तियों में हरिमाहीनता हो जाती है |