पादपों में उत्सर्जन 
Excretion in Plants 

 

पादपों में कोई विशेष प्रकार के उत्सर्जन अंग नहीं पाये जाते है लेकिन फिर भी अतिरिक्त जल व जल में घुलनशील लवणों को पौधों के वायवीय भागों से उत्सर्जित कर दिया जाता है | पादपों में उत्सर्जन मुख्यत: दो क्रियाओं द्वारा होता है :- 

1. वाष्पोत्सर्जन / Transpiration 

2. बिंदु स्रावण / Guttation 

 

1. वाष्पोत्सर्जन / Transpiration  :- 

 

 

 

  • पौधे के वायवीय भागों से जल का वाष्प के रूप में उत्सर्जन वाष्पोत्सर्जन कहलाता है, अवशोषित जल का लगभग 98% भाग तो वाष्पोत्सर्जित कर दिया जाता है | 
  • पादप की जीवित कोशिकाओं द्वारा जल का वाष्प के रूप में निकलना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है |
  • कर्टिस के अनुसार ” वाष्पोत्सर्जन एक आवश्यक बुराई है |”
  • वाष्पोत्सर्जन एक जैव भौतिक क्रिया है | 
  • न्यूनतम वाष्पोत्सर्जन मांसलोद्भिद पादपों में पाया जाता है | 
  • अधिकतम वाष्पोत्सर्जन समोद्भिद पादपों में पाया जाता है |
  • जल निगमन पादपों (हाइड्रिला) में वाष्पोत्सर्जन नहीं होता है |
 
 
वाष्पोत्सर्जन चार प्रकार का होता है :- 
 
(a) उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन :- पत्तियों की सतह पर मोम के समान, पतला, चिकना आवरण क्यूटिकल (उपत्वचा) कहलाता है जिससे लगभग 10 – 20 प्रतिशत वाष्पोत्सर्जन होता है |
 
(b) रंध्रीय वाष्पोत्सर्जन :- पत्तियों तथा नये तनों पर रंध्र पाए जाते है जिनसे लगभग 80 – 90 प्रतिशत वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है | 

 

 

 

 
 
(c) छाल वाष्पोत्सर्जन :- छाल के द्वारा लगभग 0.5  – 0.9 प्रतिशत वाष्पोत्सर्जन होता है |
 
(d) वातरंध्रीय वाष्पोत्सर्जन :- वायवीय भागों में उपस्थित वातरंध्रों से लगभग 0.1 % वाष्पोत्सर्जन होता है | 
 
 
वाष्पोत्सर्जन के लाभ 
 
1. अतिरिक्त जल व लवणों का उत्सर्जन करता है |
2. पौधे के जायलम में खिचाव बल उत्पन्न करता है जिससे जल की गति बनी रहती है |
3. इसमें शुष्क मौसम में भी पौधे के आस – पास आर्द्रता बनी रहती है | 
 
 
 
वाष्पोत्सर्जन से हानि 
 
1. इससे पौधों में म्लनी (मुरझाना) आ जाती है |
2. यह म्लानी स्थाई होने पर पौधा सूख जाता है |
3. अधिक वाष्पोत्सर्जन होने से पौधे की वृद्धि रुक जाती है |
 
नोट :- एब्सिसिक अम्ल और फिनाईल मरक्युरिक एसिटेट वाष्पोत्सर्जन की दर को कम कर देते है |
 
 

बिंदु स्रावण 

 
रात्रि या सुबह के समय पत्तियों के किनारों पर जल की बूदों का पाया जाना बिंदु स्राव कहलाता है |
 
बर्गस्टीन के अनुसार ” जब वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है तो इसके बाद जायलम में उत्पन्न दाब के प्रभाव में बिंदु स्रावण होता है |  
 
 

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