भू - चुम्बकत्व

हमारी पृथ्वी इस प्रकार व्यवहार करती है कि मानो उसके गर्भ में एक शक्तिशाली चुम्बक रखा हो जिसका दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की ओर तथा उत्तरी ध्रुव पृथ्वी के दक्षिवी ध्रुव की ओर स्थित हो।

Note :- पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा भौगोलिक दक्षिण से भौगोलिक उत्तर की ओर होती है।

उपरोक्त कथन की पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर की गई –

(i) स्वतंत्रता पूर्वक लटकाई छड़ चुम्बक सदैव उत्तर – दक्षिण दिशा में ठहरती है ।

(i) किसी लोहे टुकड़े को यदि पृथ्वी में कुछ समय के लिए दबा दिया जाए तो उसमे चुम्बकीय गुण आ जाते है |

(iii) उदासीन बिन्दुओं का मिला ।

उदासीन बिन्दु

ऐसे बिन्दु जहाँ चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र तथा पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक बराबर हो उदासीन बिन्दु कहते हैं।

  • जब चुम्बक का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक उत्तर की ओर स्थित हो तो उदासीन बिन्दु चुम्बक के निरक्ष पर प्राप्त होते हैं।
  • जब चुम्बक का दक्षिण ध्रुव भौगोलिक उत्तर की ओर स्थित हो तो उदासीन बिन्दु सुम्बक की अक्षीय रेखा पर प्राप्त होता है।

Note : (i) पृथ्वी की सतह पर चुम्बकीय क्षेत्र लगभग 10-5 टेस्ला होता है ।

(ii) वैज्ञानिक गिलबर्ट के अनुसार भी पृथ्वी के गर्भ मे एक शक्तिशाली चुम्बक विद्यमान है लेकिन इस तथ्य की वैज्ञानिकों ने प्रमाणों के आधार पर नकार दिया गया।

ये प्रमाण निम्नलिखित है-

(i) पृथ्वी के अन्दर ताप इतना अधिक होता है कि वहाँ किसी प्रकार के चुम्बक का चुम्बकत्व विद्यमान ही नहीं रह सकता है |

(ii) यदि पृथ्वी के अन्दर चुम्बक होता तो चुम्बकीय ध्रुवों की स्थिति कभी नही बदलती है।

भू – चुम्बकत्व के कारण

(i) सूर्य से आने वाली उच्च ऊर्जा की विकिरणें वायुमण्डल में उपस्थित गैसों से टकराकर इन्हें आयनित कर देती हैं | इन आयनित गैस अणुओं मे पृथ्वी के घूर्णन के साथ – 2 गति उत्पन्न हो जाती है जो प्रबल विद्युत धारा अथवा संवहनी धाराओं को जन्म देती है जिसे भु-चुम्बकत्व का कारण माना गया है |

(ii) पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी के बाह्य क्रोड के धात्विक तरलों जिसमें अधिकांशतः पिटाला हुआ लोहा व निकल की संवहनी गति के कारण उत्पन्न प्रबल विद्युत धाराओं के परिणामस्वरूप अस्तित्व मे आता है इसी को डायनमो प्रभाव भी कहा जाता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी के अन्दर संपहनी धारा की उत्पत्ति ही भु – चुम्बकत्व का कारण है।

दिक्पात कोण : चुम्बकीय याम्योतर तथा भौगोलिक याम्योतर के मध्य बनने वाला कोण दिक्पात कोण  कहलाता है।

अथवा

भौगोलिक दक्षिण तथा चुम्बकीय सूई के द्वारा उत्तर दिशा में प्रदर्शित कोण दिक्पात कोण कहलाता है ।

Note : (i) दिक्पात कोण का मान अलग-अलग स्थानो पर अलग- 2 होता है ।

(ii) दिक्पात कोण का मान उच्च अक्षांशों पर अधिक जबकि विस्वत रेखा पर कम होता है ।

(iii) भारत मे दिक्पात कोण का मान कम है |

(iv) फरवरी माह मे दिक्पात कोण का मान उत्तरी गोलार्ध मे अधिक जबकी दक्षिणी गोलार्द्ध में कम होता है । इसके विपरीत अगस्त माह मे दिक्पात कोण का मान दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिकतम जबकी उत्तरी गोलाई मे न्यूनतम होता है।

नमन कोण या नतीकोण 

पृथ्वी के परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र अथवा चुम्बकीय सूई अक्ष तथा चुम्बकीय याम्योत्तर की क्षैतिज दिशा के मध्य बनने वाला कोण नमन कोण कहलाता है |

Note :-

  • पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों पर नती कोण 90° होता है। क्योंकि ध्रुवों पर चुम्बकीय सुई लम्बवत पृथ्वी सतह के लम्बवत या उर्ध्वाधर होती है ।
  • विस्वत रेखा या निरक्ष पर नमन कोण का मान 00 होता है क्योंकि यहाँ चुम्बकीय सूई पृथ्वी की सतह के समान्तर होती है |
  • उत्तरी गोलार्द्ध में चुम्बक की सूई का उत्तरी ध्रुव नीचे की तरफ झुकता है तथा इसी प्रकार दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी ध्रुव नीचे की ओर झुकता है |

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