राजस्थान में 1857 की क्रांति
1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1857 की क्रांति के बीच ब्रिटिश शासन ने भारत में अपने 100 वर्ष पूरे कर लिये थे। इन 100 वर्षों के दौरान बिटिश सत्ता को कई बार भारतीयों से चुनौतियाँ मिली, जिसमें अनेक असैनिक और सैनिक उपद्रव व स्थानीय बगावतें शामिल थी। इस समय के अधिकांश आंदोलन ब्रिटिश शासन के विरूद्ध व्यापक असन्तोष और व्यक्तिगत शिकायतों के कारण हुए। किंतु 1857 का विद्रोह एक ऐसी चुनौती थी, जिसने भारत में अंग्रेजी शासन की जड़ों को हिलाकर रख दिया।
राजस्थान में 1857 की क्रांति के कारण
(1) राज्यों के उत्तराधिकार मामलों में हस्तक्षेप- ब्रिटिश सरकार ने रियासतों से संधि करते समय उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने का आश्वासन दिया था, मगर शांति व्यवस्था बनाये रखने का हवाला देकर रियासतों की आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार ने खुलकर हस्तक्षेप किया। अलवर राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर अंग्रेजों ने 1826 ई. में राज्य के दो हिस्से करवा दिये, तो वहीं अंग्रेजों ने 1826 ई. में भरतपुर राज्य के उत्तराधिकार प्रश्न पर लोहागढ़ दुर्ग को घेर लिया और अल्पवयस्क बलवंत सिंह को गद्दी पर बैठाकर पॉलिटिकल एजेंट के अधीन एक कौंसिल नियुक्त की जो राज्य के प्रशासन का संचालन करती थी। 1835 ई. में जयपुर राज्य में शासन के संचालन के लिये पॉलिटिकल एजेंट के निर्देशन में सरदारों की समिति का गठन किया गया, तो वहीं 1844 ई. में बाँसवाड़ा के महारावल लक्ष्मण सिंह के नाबालिग होने के कारण अंग्रेजों ने बाँसवाड़ा पर अपना प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित कर लिया।
(2) राज्यों का शिथिल प्रशासन- ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी 1817-18 ई. की संधियों के पश्चात राजपूत राज्यों को बाह्य आक्रमणों का भय समाप्त हो गया तथा आंतरिक विद्रोह के समय भी ब्रिटिश सहायता उपलब्ध रही, तो वहीं प्रशासनिक मामलों में रेजीडेन्टों का दखल बढ़ने लगा और उन्होंने प्रशासन में अपने समर्थक व्यक्ति • नियुक्त कर दिये । बाँसवाड़ा का शासन मुंशी शहामत अली (1844- 56 ई.), अलवर का अहमद बख्श खाँ (1815-26 ई.) तथा जयपुर का जेठाराम के हाथों में था, तो वहीं शासकों का प्रशासन में महत्व नहीं होने से वे प्रशासन के प्रति पूर्णतः उदासीन हो गये और भोग- विलास में डूब गये तथा कई शासक यूरोपीय देशों की यात्रा में अपना समय व्यतीत करने लगे। इस प्रशासनिक शिथिलता का खामियाजा जन सामान्य को भुगतना पड़ा और सामंत व राज्य कर्मचारी जनता को पीड़ित करने लगे।
(3) शोषणपूर्ण एवं भेदभावकारी व्यवहार- ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी संधियों के फलस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया, तो वहीं ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी इन संधियों में राजपूत शासकों को यद्यपि अपने राज्य का सार्वभौम शासक स्वीकार किया गया था, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी। इन संधियों में ऐसी धाराओं को शामिल किया गया था, जो इन राज्यों के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार के हस्तक्षेप को अवश्यंभावी बनाने वाली थी, जैसे- बीकानेर के साथ की गयी संधि में ब्रिटिश सरकार ने महाराजा के विरोधियों को कुचलने में सहयोग देने की बात कही, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ व डूंगरपुर राज्यों ने संधियों में ब्रिटिश सरकार की सलाह से शासन संचालन का वचन देकर अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को सुनिश्चित बना लिया, तो वहीं जयपुर व उदयपुर राज्य ने तो अपने वार्षिक खिराज की रकम निर्धारित न करके अपने राज्य का एक हिस्सा देना स्वीकार कर लिया था।
(4) सामंतों के अधिकारों का हनन- राजस्थान के सामंत भी अंग्रेजों के विरूद्ध थे और ये सामंत शासकों के प्रमुख सहयोगी माने जाते थे, परन्तु 1817-18 ई. की संधियों व ब्रिटिश संरक्षण के बाद शासकों को सामंतों के सहयोग की जरूरत नहीं रही और जब ब्रिटिश शासन ने सामंतों से भी संरक्षण के लिए रकम की माँग की तो उनके द्वारा इसका प्रबल विरोध किया गया। सलूम्बर के ठाकुर केसरी सिंह की गद्दीनशीनी के समय मेवाड़ के महाराणा की अनुपस्थिति ने ठाकुर केसरी सिंह को ब्रिटिश सरकार का विरोधी बना दिया था, क्योंकि मेवाड़ महाराणा अंग्रेजों के कहने पर वहाँ नहीं गये थे। ब्रिटिश अधिकारियों के द्वारा इस बात का भी प्रयास किया गया कि सामंतों के वंशानुगत उत्तराधिकारी नहीं होने पर वहाँ अपने कृपापात्र व्यक्तियों को सामंतों की गद्दी पर बिठा दिया जाये, तो वहीं जब ब्रिटिश अधिकारियों को इसमें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने सामंतों के विशेषाधिकारों पर प्रहार करने शुरू कर दिये ।
(5) राज्यों का आर्थिक शोषण- ब्रिटिश सरकार के द्वारा 1817- 18 ई. में की गयी संधियों के द्वारा मराठों व पिण्डारियों की लूटमार व चौथ वसूली से राज्यों को छूटकारा मिल गया, लेकिन अंग्रेजों ने खिराज प्रथा को प्रारंभ कर आर्थिक शोषण की नीति को अपना लिया, तो वहीं अगर राज्यों द्वारा तय समय पर खिराज का भुगतान नहीं किया जाता था, तो चक्रवृद्धि ब्याज लगाकर उनसे खिराज वसूला जाता था तथा इसके अलावा ईस्ट इण्डिया कम्पनी शांति व्यवस्था के नाम पर भी राज्यों से धन वसूलती थी। राजाओं को अपने खर्च पर कंपनी के लिये सेना रखनी पड़ती थी। ब्रिटिश सरकार ने जयपुर महाराजा को शेखावाटी में राजमाता के समर्थक सामंतों को कुचलने के लिए सैनिक सहायता दी थी और उसने 1835 ई. में सैनिक खर्च के रूप में सांभर झील को अपने अधीन कर लिया था, तो वहीं अंग्रेजों ने जोधपुर राज्य में शांति स्थापना के नाम पर 1835 ई. में जोधपुर लीजियन का गठन करें उसके खर्च के 1.15 लाख रूपये जोधपुर राज्य से वसूल किये थे। मेवाड़ भील कोर की स्थापना 1841 ई. में मेवाड़ राज्य के खर्च पर की गई थी, तो वहीं मेरवाड़ा में मेर व मीणाओं के उपद्रवों को शांत करने के लिए 1822 ई. में मेरवाड़ा बटालियन तथा 1834 ई. में शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना कर इनका खर्चा संबंधित राज्यों से ही वसूल किया गया था। अंग्रेजों ने 1825-30 ई. के दौरान मेवाड़ राज्य में भीलों का .. विद्रोह दबाने के लिये महाराणा को सैन्य सहायता प्रदान की और सैन्य खर्च 6% ब्याज के साथ महाराणा से वसूला गया था।
(6) ब्रिटिश सरकार की अफीम नीति – राजस्थान में प्रतापगढ़, कोटा, मेवाड़ व झालावाड़ प्रमुख अफीम उत्पादक राज्य थे, तो वहीं ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने समझौते के माध्यम से इस अफीम व्यापार अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया गया था। इस समझौते के द्वारा दी गयी क्षतिपूर्ति राशि अफीम व्यापार से होने वाली आय से कम थी और अंग्रेजों की इस अफीम नीति से तश्कर व्यापार को प्रोत्साहन मिला।
(7) राज्यों के आंतरिक शासन में हस्तक्षेप- ब्रिटिश सरकार ने राजपूत राजाओं से संधि करते समय राज्यों के आंतरिक प्रशासन में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करने की बात कही लेकिन फिर भी उनके द्वारा आंतरिक प्रशासन में हस्तक्षेप किया गया। अंग्रेजों ने जोधपुर राज्य पर दबाव डालकर 1839 ई. में जोधपुर के किले पर अधिकार कर लिया, तो वहीं 1842-43 ई. में उन्होंने पुन: जोधपुर के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करते हुए नाथों की जागीरे जब्त कर उनकों कैदखाने में डाल दिया। अंग्रेजों ने 1819 ई. में जयपुर के मामले में भी हस्तक्षेप किया तथा उन्होंने 1821 ई. में लड़े गये मांगरोल के युद्ध में कोटा महाराव के विरूद्ध दीवान जालिम सिंह की मदद की, तो वहीं अंग्रेज अधिकारी कैप्टन कोब के द्वारा 1823 ई. में मेवाड़ का समस्त प्रशासन अपने हाथों में ले लिया गया था। इस तरह अंग्रेजों ने रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर उनकी प्रभुसत्ता तथा आंतरिक स्वायतता समाप्त कर दी और अब राजा अपने राज्य का सम्प्रभु स्वामी न रहकर अंग्रेजों का कृपापात्र बन गया।
(8) ब्रिटिश अधिकारियों की कार्यप्रणाली- ब्रिटिश सरकार द्वारा राजपूताना पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए अजमेर में ए. जी. जी. की स्थापना की गयी, जिसको 13 तोपों की सलामी दी जाती थी तथा इसके अधीन पॉलिटिकल एजेंट कार्यरत थे, तो वहीं पॉलिटिकल एजेंट व राज्य के बीच वकील कार्य करते थे। ये सभी अंग्रेज अधिकारी रियासतों के आंतरिक मामलों हस्तक्षेप करते थे और जनसामान्य भी इन ब्रिटिश अधिकारियों से घृणा करने लगे थे।
(9) किसानों एवं जनसाधारण के हितों पर कुठाराघात- ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी संधियों के बाद राजपूत राज्यों की खर्च में अप्रत्याशित वृद्धि हुयी। अंग्रेजों द्वारा राज्यों से अधिकाधिक खिराज वसूला गया। इसके अलावा विकास कार्यों के खर्चे भी बढ़े। इन खर्चों की पूर्ति के लिये भूमिकर में वृद्धि की गयी और अकाल पड़ने अथवा किसी कारण से ऊपज कम होने पर भी किसानों को भूमि कर नकद राशि में ही देना पड़ता था, जिससे किसान महाजनों एवं साहूकारों के चंगुल में फंसते गए और उनको उनकी ही भूमि से बेदखल किया जाने लगा, तो वहीं दस्तकारों व हस्तशिल्पियों के द्वारा निर्मित वस्तुएँ महंगी होने के कारण व उन्हें शासक वर्ग का संरक्षण न मिलने से उनका जीवन निर्वाह कठिन हो गया, जिससे उन्होंने अपने परम्परागत व्यवसाय छोड़ दिये और वे श्रमिक बन गये ।
(10) धार्मिक व सामाजिक कारण- ब्रिटिश सरकार के अपने हितों के लिए परम्परागत भारतीय सामाजिक संस्थाओं व नियमों को सामाजिक सुधारों के नाम पर तोड़ने का प्रयास किया गया, तो वहीं इसके अलावा ईसाई मिशनरियों के द्वारा ईसाई धर्म के प्रचार द्वारा ब्रिटिश शासन के समर्थन वर्ग को बढ़ाने का प्रयास किया गया. जिसके कारण ब्रिटिश शासन के विरोध में माहौल तैयार हुआ।
(11) तत्कालीन कारण- पूरे देश में 1857 की क्रांति का तत्कालीन मूल कारण ‘एनफील्ड रायफल्स’ (इससे पहले भारत में ब्राउन बैस राइफल चलती थी) थी, जिसके कारतूस को मूँह से खोलना पड़ता था और उसमें से चिकना पदार्थ निकलता था। इस चिकने पदार्थ के बारे में हिन्दुओं में भ्रांति थी कि इसमें गाय की चर्बी है, तो मुसलमानों में भ्रांति थी कि इसमें सूअर की चर्बी है, जिससे हिन्दू व मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक भावना आहत हुईं। इसी कारण दोनों सम्प्रदायों ने मिलकर 1857 की क्रांति का बिगुल बजाया।
भारत में 1857 ई. की क्रान्ति की प्रथम घटना
क्रान्ति की प्रथम घटना 29 मार्च, 1857 ई. को बैरकपुर छावनी (प. बंगाल) में घटित हुई। यहाँ के सैनिक एवं प्रमुख क्रान्तिकारी मंगल पाण्डे ने ‘एनफील्ड’ बंदूक से अंग्रेज अधिकारी (हड़सन व डफ) की हत्या कर दी।
भारत में 1857 की क्रान्ति की शुरुआत
इस क्रान्ति की शुरूआत की तिथि 31 मई, 1857 ई. निश्चित की गई तथा इसका प्रतीक चिह्न ‘कमल और चपाती’ को रखा गया। यह योजना लंदन में तैयार हुई। जैसे ही बैरकपुर छावनी की खबर उत्तर प्रदेश में स्थित मेरठ छावनी (प्रथम विद्रोह स्थल ) पर पहुँची तो यहाँ के सैनिकों ने 10 मई, 1857 ई. को विद्रोह कर दिया व सैनिक 11 मई को दिल्ली पहुँचे तथा मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वितीय को 1857 की क्रान्ति का नेता चुना। इस समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग थे।
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति
राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय राज्य में कुल 6 सैनिक छावनी थी जो निम्न थीं- ( 1 ) नसीराबाद (2) नीमच (3) देवली (4) एरिनपुरा (जोधपुर) (5) ब्यावर (6) खैरवाड़ा (उदयपुर)
ध्यान रहे 1857 के संग्राम में राज्य में दो अंग्रेज छावनी ऐसी थीं जहाँ विद्रोह नहीं हुआ-(1) खैरवाड़ा (उदयपुर) व (2) ब्यावर (अजमेर)।
प्रमुख रियासतों के शासक व पॉलिटीकल एजेंट
मारवाड़ के राजा तख्तसिंह व पॉलिटीकल एजेन्ट ‘मौक मैसन’ था। मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह व पॉलिटीकल एजेन्ट मेजर शॉवर्स था । कोटा के राजा महाराव रामसिंह द्वितीय व पॉलिटीकल एजेन्ट मेजर बर्टन था । जयपुर के राजा रामसिंह थे और पॉलिटीकल एजेन्ट ‘कर्नल ईडन’ था। भरतपुर के राजा जसवंत सिंह थे तथा पॉलिटीकल एजेन्ट मॉरीशन था। करौली के राजा मदन पाल थे, जिन्होंने कोटा के शासक रामसिंह द्वितीय को क्रांतिकारियों से छुड़वाया था। राजस्थान में क्रान्ति के आउवा व कोटा दो प्रमुख केन्द्र थे, जहाँ सैनिक छावनी न होते हुए भी विद्रोह हुआ। राजस्थान में 1857 ई. की क्रान्ति की शुरूआत 28 मई, 1857 को नसीराबाद से हुई। राज्य के ए. जी. जी. पैट्रिक लॉरेन्स को मेरठ में हुई क्रान्ति की खबर 19 मई को मिली। लॉरेन्स ने क्रान्ति की संभावना को देखते हुए अजमेर की सुरक्षा की सोची, क्योंकि वहाँ पर भारी मात्रा में गोला बारूद, सरकारी खजाना और सम्पत्ति थी। अजमेर में उस समय 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री सैनिक टुकड़ी थी, जो हाल ही में मेरठ से आई थी। लॉरेन्स ने सोचा कि यह टुकड़ी मेरठ से आई है तो सम्भवतः विद्रोह की भावना लेकर आई है और 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री टुकड़ी को नसीराबाद भेज दिया और ब्यावर से मेर रेजीमेन्ट की दो टुकड़ियाँ बुला लीं।
नसीराबाद छावनी में विद्रोह (28 मई, 1857 ई.)
राजस्थान की सैनिक छावनियों में यह छावनी सबसे बड़ी व सबसे शक्तिशाली सैनिक छावनी थी। राजस्थान में सर्वप्रथम 1857 का विद्रोह नसीराबाद छावनी (अजमेर) में हुआ। 28 मई, 1857 को मेरठ से अजमेर व अजमेर से नसीराबाद आई ‘पन्द्रहवीं बंगाल ‘नेटिव इन्फैन्ट्री’ टुकड़ी ने असंतुष्ट होकर यहाँ विद्रोह कर दिया। इनका ‘ 30वीं बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री टुकड़ी’ ने साथ दिया। यहाँ के सैनिक ‘न्यूबरी’ नामक अंग्रेज अधिकारी को मारकर 18 जून, 1857 को दिल्ली पहुँचे। (Imp. : नसीराबाद छावनी को लूटने वाला राजपूत सरदार ‘डूंगरसिंह’ था ।)
नीमच में क्रान्ति
यह छावनी राजस्थान से बाहर मध्य प्रदेश में स्थित थी परन्तु इसकी देखरेख मेवाड़ का पॉलिटीकल एजेन्ट मेजर शॉवर्स करता था। नीमच के सैनिक अधिकारी कर्नल एबॉट को नसीराबाद विद्रोह की सूचना मिलते ही वह भयभीत हो गया व उसने वहाँ के सैनिकों को अपने कर्त्तव्य के प्रति वफादार रहने की शपथ दिलवाई लेकिन 2 जून, 1857 को एक सैनिक मोहम्मद अली बेग ने इसे चुनौती दी।
ध्यातव्य रहे- 1857 ई. की क्रांति के संदर्भ में मुहम्मद अली बेग ने कहा कि, ‘अंग्रेजों ने अपनी शपथ भंग की है। क्या उन्होंने अवध पर अधिकार नहीं किया? अतः उन्हें यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि, भारतीय अपनी शपथ का अनुपालन करेंगे।’
3 जून को मोहम्मद अली बेग व हीरासिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। सैनिकों ने नीमच छावनी को नष्ट कर दिया व अंग्रेज अधिकारी बच कर मेवाड़ भाग गये। यहाँ से अंग्रेज अधिकारी व उनके परिवार मेवाड़ में चले गये परन्तु क्रांतिकारियों ने डूंगला गाँव (चित्तौड़गढ़) में रूँगाराम के घर में अंग्रेजों को बन्दी बना लिया तब शॉवर्स ने मेवाड़ के राजा स्वरूपसिंह को मदद देने के लिए कहा तो स्वरूपसिंह ने अंग्रेजों को वहाँ से रिहा करवाकर पिछोला झील के जगमन्दिर (महल) में ठहराया (शरण दी) जहाँ उनकी देखभाल गोकुल चन्द मेहता ने की। बाद में मेवाड़ के पॉलिटीकल एजेन्ट शॉवर्स तथा कोटा के पॉलिटीकल एजेन्ट बर्टन ने 8 जून, 1857 को वापस नीमच छावनी पर अधिकार कर लिया।
ध्यान रहे-क्रान्तिकारी नीमच से चित्तौड़गढ़, हम्मीरगढ़, बनेठा/ बनेड़ा को लूटते हुए शाहपुरा पहुँचे।
देवली में विद्रोह
विद्रोही सैनिकों के देवली पहुँचते ही वहाँ भी विद्रोह हो गया। देवली के सैनिक विद्रोहियों के साथ हो गये। विद्रोही देवली से टोंक होकर आगरा के रास्ते दिल्ली पहुँचे।
एरिनपुरा छावनी में विद्रोह (21 अगस्त, 1857 )
पहले यह छावनी मारवाड़ रियासत में थी, जबकि वर्तमान में पाली जिले में स्थित है। नसीराबाद व नीमच विद्रोह की सूचना मिलने ही यहाँ के सैनिकों ने 21 अगस्त, 1857 को एजेन्ट टू गवर्नर जनरल के पुत्र को मारकर ईडर (वर्तमान में गुजरात में) निवासी शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया और ‘चलो दिल्ली-मारो फिरंगी’ का नारा देते हुये दिल्ली की और कूच किया, लेकिन रास्ते में नारनौल हरियाणा) में अंग्रेजों ने इनका दमन कर दिया, जिस कारण इन्होंने अंग्रेजों के सामने आत्म समर्पण कर दिया।
आउवा ठिकाने में विद्रोह
एरिनपुरा के सैनिक दिल्ली जाते समय बीच में आउवा (पाली) पहुंचे, जहाँ के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत ने उनकी सहायता की, जिसके कारण मारवाड़ का राजा तख्तसिंह व अंग्रेज उससे नाराज होकर 8 सितम्बर, 1857 को बिथौड़ा/बिठोड़ा नामक स्थान पर अनाड़ सिंह पँवार व फौजदार राजमल लोढ़ा (मारवाड़ के राजा तख्तसिंह के सेनापति) व हीथकोट (अंग्रेज अधिकारी) के नेतृत्व में सेना तथा दूसरी तरफ कुशालसिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें कुशालसिंह की सेना जीत गई तथा अनाड़सिंह व हीथकोट मारे गये। इसकी जानकारी मिलते ही एजेन्ट टू गवर्नर जनरल पैट्रिक लॉरेन्स व मारवाड़ के पॉलिटीकल एजेन्ट मौक मैसन (गोरा) के नेतृत्व में, जबकि दूसरी तरफ कुशालसिंह (काला) के नेतृत्व में 18 सितम्बर, 1857 को चेलावास नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें क्रांतिकारियों ने मैक मैसन की गर्दन काटकर आऊवा के किले के द्वार पर लटका दी। यह देखकर लॉरेन्स वहाँ से भाग गया, इस युद्ध को ‘काले-गौरों’ का युद्ध कहा जाता है। इस हार का बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने कर्नल होम्स के नेतृत्व में पालनपुर (गुजरात) व नसीराबाद (अजमेर) की संयुक्त सेना 20 जनवरी, 1858 को भेजी जिसने 24 जनवरी 1858 को कुशालसिंह व एरिनपुरा के सैनिकों का दमन किया और वहाँ लूटपाट कर ‘सुगाली माता’ (1857 की • क्रांति की देवीं) की मूर्ति को अंग्रेज अपने साथ अजमेर ले आये तथा वर्तमान में यह पाली के बागड़ संग्रहालय में स्थित है। आडवा से कुशालसिंह सलूम्बर (उदयपुर) कोठारिया के रावत जोधसिंह के घर जाकर शरण ली। 8 अगस्त, 1860 को नीमच में कुशालसिंह ने आत्म समर्पण कर दिया, जिसकी जाँच हेतु ‘मेजर टेलर आयोग’ गठित किया गया, जिसने 10 नवम्बर, 1860 को कुशालसिंह को निर्दोष साबित कर रिहा कर दिया (Imp: 1857 की क्रांति के दो विजय स्तम्भ पाली में स्थित है ) ।
कोटा का विद्रोह
कोटा का पॉलिटिकल एजेन्ट बर्टन 12 अक्टूबर, 1857 को नीमच से कोटा पहुँचा। कोटा में वकील लाला जयदयाल व रिसालदार मेहराब खाँ जनता में विद्रोह की भावना भर रहे थे। मेजर बर्टन ने 14 अक्टूबर, 1857 को महाराव रामसिंह द्वितीय को जयदयाल व मेहराब को सजा देने को कहा। इस पर क्रान्तिकारियों ने 15 अक्टूबर, 1857 को विद्रोह कर रेजीडेन्सी को घेर कर ब्रिजलाल भवन महल कोटा में बर्टन के दो पुत्रों के साथ एक डॉक्टर सैडलर काटम की हत्या कर दी और बर्टन के सिर को काट कर कोटा शहर में घुमाया।
राजस्थान में कोटा एकमात्र ऐसी जगह थी, जहाँ पर कोई सैनिक छावनी नहीं होते हुए भी पूरे छः माह कोटा क्रान्तिकारियों के अधिकार में रहा। इस विद्रोह में आम जनता ने विद्रोहियों का साथ दिया।
कोटा के राजा रामसिंह द्वितीय ने एजेन्ट टू गवर्नर जनरल पैट्रिक लॉरेन्स को सहायता देने के लिए कहा तो लॉरेन्स ने मेजर जनरल रॉबर्ट्स के नेतृत्व में सेना भेजी, जिसमें करौली के राजा मदन पाल ने अंग्रेजों की मदद की जिसके बदले में उन्हें उपहार स्वरूप सर्वाधिक 17 तोपों की सलामी व जी०सी०आई (ग्रांड कमांडर स्टेट ऑफ इंडिया) की उपाधि दी गई तथा 1857 के विद्रोह के बाद कोटा रियासत की तोपों की सलामी कम कर दी गई। कोटा को छः माह बाद 31 मार्च, 1858 को आजाद कराया गया। वकील जयदयाल व रिसालदार मेहराब खाँ को फाँसी दे दी गई।
भरतपुर में विद्रोह (31 मई, 1857 में) 1857)
यहाँ का राजा जसवंत सिंह नाबालिग था अतः यहाँ का शासन पॉलिटीकल एजेन्ट मॉरीशन की देखरेख में होता था । इससे नाराज होकर गुर्जरों व मेवों ने 31 मई, 1857 को विद्रोह कर दिया, तो मॉरीशन यहाँ से आगरा भाग गया।
धौलपुर में विद्रोह (27 अक्टूबर, 1857)
यहाँ की जनता ने देवा गुर्जर, रामचन्द्र व हीरालाल राणा के नेतृत्व में विद्रोह कर धौलपुर पर अधिकार कर लिया, दो माह बाद पटियाला नरेश ने वहाँ के राजा भगवंत सिंह को आजाद करवाया।
तात्या टोपे का राजस्थान आगमन
पेशवा बाजीराव के उत्तराधिकारी नाना साहब का स्वामीभक्त सेवक तात्यां टोपे 1857 की क्रांति में ग्वालियर का विद्रोही नेता था। 23 जून, 1857 को अलीपुर में अंग्रेजों के हाथों पराजित होने के बाद वह राजस्थान के ब्रिटिश विरोधी लोगों से सहायता प्राप्त करने की आकांक्षा से राजस्थान आया, लेकिन उसे वांछित सफलता नहीं मिली। तात्यां टोपे सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा आया, जहाँ 9 अगस्त, 1857 को उसका कोठारी नदी के तट पर कुराड़ा नामक स्थान पर जनरल राबर्ट्स की सेना से युद्ध हुआ, परन्तु टोपे को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद वह अपनी सेना सहित झालावाड़ पहुंचा और झालावाड़ की सेना को अपने साथ मिलाकर वहां के शासक पृथ्वीसिंह को अपदस्थ कर झालावाड़ पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तात्यां टोपे उदयपुर होते हुये वापस ग्वालियर लौट गया। दिसम्बर, 1857 में वह पुनः मेवाड़ आया और 11 दिसम्बर, 1857 को उसकी सेना ने बांसवाड़ा पर अधिकार कर लिया तथा महारावल शहर छोड़कर चला गया। इसके बाद वह सलूम्बर, भीण्डर होते हुये बंदा के नवाब के साथ टोंक पहुंचा जहाँ टोंक के क्रांतिकारी उसके साथ हो गये और अमीरगढ़ के किले के निकट बनास नदी के तट पर उसका टोंक के नवाब की सेना के साथ युद्ध हुआ।
क्रांतिकारियों ने तोपखाने पर अधिकार कर टोंक में अपने शासन की घोषणा कर दी, जिसकी सूचना मिलते ही मेजर ईडन अंग्रेजी सेना के साथ टोंक की तरफ आ गया और तात्या टोपे टोंक छोड़कर नाथद्वारा की ओर चला गया। अंत में तात्यां टोपे को नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका की मदद से नरवर के जंगलों में पकड़ लिया गया और 18 अप्रैल, 1859 को उसे सिप्री में फांसी दे दी गई। उदयपुर के पॉलिटीकल एजेन्ट कैप्टन शॉवर्स ने तांत्या टोपे के बारे में कहा, कि “इतिहास में तांत्या टोपे को फांसी देना ब्रिटिश सरकार का अपराध समझा जायेगा और आने वाली पीढ़ी पूछेगी कि इस सजा के लिए किसने स्वीकृति दी और किसने पुष्टि की।”
ध्यातव्य रहे- केसरीसिंह (सलूम्बर) और जोधसिंह (कोठारिया ) ने 1857 की क्रांति के दौरान तांत्या टोपे की सहायता की थी। टोंक का नवाब वजीरूद्दौला अंग्रेज समर्थक था, परन्तु वहाँ की जनता व सैनिकों ने वहाँ विद्रोह कर दिया।
डूँगरजी – जवाहर जी
शेखावाटी में सर्वप्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व बठोठ पाटोदा (सीकर) के ठाकुर डूंगरसिंह व उनके भतीजे जवाहर सिंह शेखावत ने किया, तो वहीं सन् 1847 में डूंगजी-जवाहरजी ने छापामार लड़ाईयों से अंग्रेजों को बुरी तरह परेशान किया था। अंग्रेजों ने ड्रॅगजी को आगरा के किले में कैद कर दिया था, तो जवाहर जी ने उन्हें लोहिया जाट और करणीया मीणा के साथ मिलकर कैद से छुड़ा लेने के पश्चात् दोनों ने 1847 में नसीराबाद छावनी को बुरी तरह लूटा। ये दोनों इतने वीर पुरुष थे कि शेखावाटी क्षेत्र में आज भी लोग उनको लोक देवता के रूप में पूजते हैं और भोपे भी उनकी विरुदावली गाते हैं।
अमरचंद बांठिया
1793 ई. में बीकानेर राज्य में जन्मे अमरचंद बांठिया व्यावसायिक घाटे के कारण ग्वालियर चले गये, जहाँ उन्होंने सिंधिया रियासत में कोषाध्यक्ष के पद पर काम किया। 1857 की क्रांति के समय इन्होंने. तात्या टोपे व रानी लक्ष्मीबाई को अपनी पूरी संपत्ति सौंप दी तथा ग्वालियर का राजकोष क्रांतिकारियों के सुपुर्द कर दिया। बांठिया को राजद्रोह के अपराध में सार्वजनिक रूप से ग्वालियर में फाँसी दी गयी, तो वहीं क्रांति के समय अमरचंद बांठिया प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा फाँसी पर लटकाया गया था।
राजस्थान में 1857 की क्रांति में
राजस्थानी साहित्यकारों का योगदान
राजस्थान के कवियों व साहित्यकारों ने 1857 की क्रांति के समय अपनी लेखनी, गीत व रचनाओं के माध्यम समाज के सभी वर्गों में जनजागृति लाने का प्रयास किया, तो वहीं चारण कवियों ने अपने सांस्कृतिक मूल्यों से परिपूर्ण व वीर रस की रचनाओं द्वारा सामंतों व शासकों को ब्रिटिश शासन से मुकाबला करने के लिये ललकारा। सर्वप्रथम हुलासी ने अपने वीर रस के गीतों के माध्यम से अंग्रेजों का विरोध शुरू किया, तो वहीं इन्होंने अंतिम साँस तक अंग्रेजों का विरोध करने का वर्णन किया है। कवि बांकीदास ने राजपूताना के शासकों फटकारते हुए उन्हें ब्रिटिश शासन का मुकाबला करने का आह्वान किया तथा उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से शासकों की अंग्रेजी दासत्व की प्रवृत्ति को धिक्कारा। डूंगरपुर के दलजी कवि ने व्यंग्य कविताओं के माध्यम से शासकों, सामंतों व जनता में ब्रिटिश विरोधी भावना को संचारित किया और वीर रस के गीतों की रचना की। चूरू के सुजानगढ़ में जन्मे कवि शंकरदान सामौर ने अंग्रेजों को मुल्क रा मीठा ठग की संज्ञा देते हुए अंग्रेजी शासन के अत्याचारों की तीखी आलोचना की है, तो वहीं इन्होंने 1857 की क्रांति को स्वतंत्रता प्राप्ति का अवसर बताते हुए लिखा है- फाल हरि चूक्यां फटक, पाछो फाल न पावसी, आजाद हिनद करवा अवर, औसर इस्यों न आवसी। बूंदी जिले के हरणा गांव में जन्मे और आधुनिक राजस्थान के नवजागरण के पुरोधा कहे जाने वाले सूर्यमल्ल मिश्रण डिंगल परम्परा के महान कवि थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन से मुक्ति हेतु उसके विरूद्ध जनसामान्य को उद्वेलित करने के लिए कई काव्यों की रचनाएँ की, जिनमें वीर सतसई, वंश भास्कर, सतीरासो व रामरंजाट प्रमुख है, तो वहीं वे हाथी पर बैठकर युद्ध भूमि में जाते थे और रणभेरी व तलवारों की खनखनाहट के बीच कविता लिखते थे।
राजस्थान में 1857 की क्रांति की
असफलता के कारण
(1) शासकों द्वारा अंग्रेजों का सहयोग- राजस्थान में सर्वप्रथम मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह ने ही अंग्रेजों की सहायता की। बीकानेर के राजा सरदार सिंह 1857 के विद्रोह में अपनी सेना लेकर राज्य से बाहर बाडलू गाँव (हिसार) तक गया तथा बदले में अंग्रेजों ने उपहार स्वरूप उसे 41 परगने / गाँव दिये। अलवर के राजा विनयसिंह/बन्नेसिंह ने अपनी सेना अंग्रेजों की सहायता के लिए बाहर भेजने का प्रयास किया परन्तु अछनेरा (भरतपुर वर्तमान आगरा) में 11 जुलाई, 1857 ई. में क्रांतिकारियों’ द्वारा इसका दमन कर दिया गया। जयपुर के राजा रामसिंह द्वितीय ने अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की बदले में अंग्रेजों ने इनको ‘सितार-ए-हिन्द’ उपाधि व कोटपूतली परगना बख्शीस में दिया। विद्रोह में राजाओं के सहयोग के बारे में लॉर्ड कैनिंग ने कहा था- इन्होंने तूफान में तरंग अवरोध का कार्य किया, नहीं तो हमारी नौका बह जाती।
(2) क्रांतिकारियों में योग्य नेतृत्व का अभाव- इसके बारे में जॉन लॉरेन्स कहा था- यदि विद्रोहियों में एक भी योग्य नेता रहा होता, तो हम हमेशा के लिए हार जाते।
(3) निश्चित रणनीति का अभाव – क्रांतिकारियों के प्रयास योजनाबद्ध नहीं थे, तो वहीं विद्रोह के बाद उनमें बिखराव आता गया जबकि अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से क्रांतिकारियों की शक्ति को नष्ट किया ।
(4) समन्वय की कमी- राजस्थान में क्रांति का प्रारंभ अनेक स्थानों पर हुआ परंतु क्रांतिकारियों में समन्वय का अभाव था, तो वहीं नसीराबाद, नीमच, कोटा व आउवा के क्रांतिकारियों में आपसी तालमेल नहीं था ।
(5) ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध यह केवल स्थानीय तथा एकाकी संघर्ष था, जिसमें अखिल भारतीय दृष्टिकोण का अभाव था। (6) क्रांतिकारियों के पास धन, रसद व हथियारों की कमी थी।
(7) यदि क्रांतिकारी नसीराबाद से सीधे दिल्ली न जाकर अजमेर मुख्यालय जाते तथा वहाँ शस्त्रागार पर कब्जा कर लेते तो शायद क्रांति का स्वरूप कुछ और ही होता ।
अभ्यास प्रश्न
1. डूंगरजी व जवाहरजी किस जिले के थे-
(a) जयपुर
(b) जोधपुर
(c) सीकर
(d) अजमेर
Answer – (c)
2. सन् 1857 ई. के विद्रोह के समय राजस्थान में सैनिक छावनियाँ थी-
(a) 4 (b) 5 (c) 6 (d) 7
Answer – (c)
3. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने देशी राज्यों के प्रति ‘ अधीनस्थ अलगाव की नीति ‘ अपनायी ?
(a) 1810 से 1844 तक
(b) 1821 से 1858 तक
(c) 1818 से 1858 तक
(d) 1835 से 1870 तक
answer – (c)
4. राज्यों के विलय की नीति का सूत्रपात किसने किया ?
(a) लार्ड डलहौजी
(b) लार्ड कैनिंग
(c) लार्ड वेलेजली
(d) लार्ड होर्डिंग
answer – (a)
5. अंग्रेजों द्वारा 1838 में अपने कृपापात्र मदनसिंह झाला के लिए कोटा राज्य का विभाजन कर किस नये राज्य की स्थापना की गई?
(a) बांसवाड़ा (b) झालावाड़ (c) बूँदी (d) जालौर
Answer – (b)
6. राजस्थान में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ सन्धि करने वाला अन्तिम राज्य था –
(a) अलवर
(b) सिरोही
(c) मेवाड़
(d) बीकानेर
Answer – (b)
7. ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राजपूत राज्यों से सहायक संधि करने का मुख्य उद्देश्य था –
(a) शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक सहायता प्राप्त करना
(b) मराठा-पिण्डारी आक्रमण से इन राज्यों की सुरक्षा करना
(c) खिराज के रूप में धन प्राप्त करना
(d) अंग्रेजों की प्रभुसत्ता स्थापित करना
Answer – (d)
8. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड लॉयड ने राजपूताना के किस शासक को ‘पूर्व से आये एक बुद्धिमान व्यक्ति’ तथा ‘अपने महान देश के पौरुष का शानदार नमूना’ की संज्ञा दी-
(a) जोधपुर के महाराजा गंगासिंह
(b) जयपुर के महाराजा मानसिंह द्वितीय
(c) अलवर के महाराजा जयसिंह
(d) बीकानेर महाराजा गंगासिंह
Answer – (d)
9. 1870 को लार्ड मेयो ने एक दरबार का आयोजन कहाँ किया?
(a) कोटा में
(b) बीकानेर में
(c) जयपुर में
(d) अजमेर में
Answer – (b)
10. राजपूताना रेजीडेंसी की स्थापना कहाँ हुई?
(a) जयपुर, 1835
(b) अजमेर, 1832
(d) उदयपुर, 1832
(c) नसीराबाद, 1857
Answer – (b)
11. राजपूत राज्यों पर ब्रिटिश आधिपत्य का मुख्य परिणाम हुआ ?
(a) राजपूत शासकों के भोग विलास में वृद्धि
(b) राजपूत राज्यों की आन्तरिक स्वायत्तता में वृद्धि
(c) राजपूत राज्यों का आर्थिक विकास
(d) राजपूत शासकों को समस्त प्रशासनिक अधिकारों की प्राप्ति
Answer – (a)
12. लॉर्ड हेस्टिंग्स ने किस वर्ष दिल्ली स्थित ब्रिटिश रेजीडेंट चार्ल्स मेटकॉफ को राजपूत शासकों के साथ समझौते सम्पन्न करने का आदेश दिया?
(a) 1807 में
(c) 1817 में
(d) 1821 में
Answer – (c)
13. राज्य की प्रथम व एकमात्र मुस्लिम रियासत टोंक कब अस्तित्व में आई?
(b) 15 अगस्त 1817
(a) 15 नवम्बर, 1817
(c) 15 मार्च, 1819
(d) 15 सितम्बर, 1817
Answer – (a)
14. राजस्थान में ब्रिटिश सरकार का आधिपत्य स्थापित हुआ संधि के अंतर्गत
(a) 1856-57 में
(b) 1868-69 में
(c) 1817-18 में
(d) 1901-02 में
Answer – (c)
15. निम्न में से किस राज्य के साथ मालवा के रेजीडेंट जॉन वाल्कन ने संधि नहीं की थी?
(a) बूँदी (b) डूंगरपुर (c) बाँसवाड़ा (d) प्रतापगढ़
Answer – (a)
16. अंग्रेजों से संधि करने वालें राज्यों का सही क्रम है-
(a) कोटा, उदयपुर, करौली, जोधपुर
(b) करौली, कोटा, जोधपुर, उदयपुर
(c) करौली, जोधपुर, उदयपुर, कोटा
(d) कोटा, करौली, उदयपुर, जोधपुर
Answer – (b)
17. अमरचन्द बांठिया को 22 जून 1858 को कहाँ पर फाँसी की सजा दी गई थी ?
(a) आगरा
(c) अजमेर
(b) ग्वालियर
(d) नीमच
Answer – (b)
18. 1857 ई. में विद्रोह के समय राज्य में स्थित कौनसी छावनी के सैनिकों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया?
(a) एरिनपुरा व देवली
(b) नसीराबाद व नीमच
(c) खैरवाड़ा व ब्यावर
(d) इनमें से कोई नहीं
Answer – (c)
19. 1857 ई. की क्रांति के समय कोटा का शासक कौन था ?
(a) किशोरसिंह
(b) ब्रजराजसिंह
(c) भीमसिंह
(d) रामसिंह
Answer – (d)
20. निम्न में से किस अंग्रेज अधिकारी की हत्या 15वीं नेटिव इन्फेन्ट्री द्वारा नहीं की गई थी?
a) ईडन गॉल
(b) स्पोर्टिसवुड
(c) के. वेनी
(d) न्यूबरी
Answer – (a)
21. धौलपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का नेतृत्व किसने किया ?
(a) रामदयाल व हरदयाल
(b) राव रामचन्द्र व हीरालाल
(c) जयदयाल व हरदयाल
(d) तांत्या टोपे व रामचन्द्र
Answer – (b)
22. किस राजा ने नीमच के विद्रोही सैनिकों को अपने यहां ठहराकर उनकी सहायता की ?
(a) कोठारिया का रावत जोधसिंह(b) शाहपुरा के राजा लक्ष्मणसिंह
(c) जयपुर के राजा रामसिंह
(d) सलूम्बर के रावत केसरीसिंह
Answer – (b)
23. तांत्या टोपे को गिरफ्तार करवाने में कहाँ के जागीरदार ने अंग्रेजों की सहायता की?
(a) बाँसवाड़ा (b) बिजौलिया (c) जयपुर (d) नरवर
Answer – (d)
24. डूंगरजी व जवाहरजी किस जिले के निवासी थे ?
(a) सीकर
(b) जयपुर
(c) अजमेर
(d) जोधपुर
Answer – (a)
25. 1857 ई. के विद्रोह के समय आउवा किस रियासत का अंग था ?
(a) जयपुर
(b) मारवाड़
(c) मेवाड़
(d) अजमेर
Answer – (b)
26. निम्न में से किन दो रियासतों पर तांत्या टोपे ने कब्जा कर लिया था ?
(a) प्रतापगढ़ व झालावाड़
(b) कोटा व बाँसवाड़ा
(c) बाँसवाड़ा व झालावाड़
(d) बाँसवाड़ा व प्रतापगढ़
Answer – (c)
27. सन् 1857 का स्वतंत्रता संग्राम देशी राजाओं द्वारा किसके नेतृत्व लड़ा गया?
(a) सम्राट फर्रुखशियर
(b) मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर
(c) नाना साहब
(d) झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई
Answer – (b)
28. मेरठ की छावनी में सेना ने विद्रोह कब किया?
(a) 13 मार्च, 1857
(b) 19 मार्च, 1857
(c) 9 मई, 1857
(d) 10 मई, 1857
Answer – (d)
29. 1857 ई. की क्रान्ति में अंग्रेजों व जोधपुर की संयुक्त सेना को पराजित करने वाला था ?
(a) आउवा के ठाकुर कुशालसिंह
(b) महाराजा रामसिंह
(c) टोंक का नवाब वजीर खाँ
(d) ताँत्या टोपे
Answer – (a)
30. भील कोर की स्थापना का उद्देश्य था ?
(a) मेवाड़ के भोमट व भील क्षेत्रों में शांति स्थापित करना
(b) मराठों का सामना करना
(c) कम्पनी सरकार की शक्ति में वृद्धि करना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer – (a)
31. राजस्थान में 1857 ई. के विद्रोह का प्रारम्भ कब हुआ?
(a) 28 मई, 1857
(c) 12 मई, 1857
(b) 31 मई, 1857
(d) 18 मई, 1857
Answer – (a)
32. किस अंग्रेज अधिकारी ने कोटा के विद्रोह का दमन किया था ?
(a) ए. वैली
(b) ब्लैक काण्टम
(c) राबर्ट क्लाइव
(d) एच.जी. रॉबर्ट्स
Answer – (d)
33. 1857 के विद्रोह के समय भारत के गवर्नर जनरल कौन थे ?
(a) लॉर्ड डलहौजी
(b) लॉर्ड कैनिंग
(c) लॉर्ड बैंटिक
(d) लॉर्ड कार्नवालिस
Answer – (b)
34. अजमेर में नसीराबाद छावनी कब स्थापित की गई ?
(a) दिसम्बर, 1820
(b) जनवरी, 1833
(c) नवम्बर, 1818
(d) नवम्बर, 1840
Answer – (c)
35. राजस्थान में 1857 ई. का विद्रोह कहाँ से प्रारम्भ हुआ था ?
(a) एरिनपुरा
(c) खेरवाड़ा
(b) ब्यावर
(d) नसीराबाद
Answer – (d)
36. कोटा की किन दो सैनिक टुकड़ियों ने विद्रोह किया था ?
(a) भवानी व नारायणी
(b) जगदम्बा व भवानी
(c) नारायणी व जगदम्बा
(d) नारायणी व पार्वती
Answer – (a)
37. नीमच छावनी में 1857 की क्रांति भड़कने से पूर्व भारतीय सैनिकों के कर्त्तव्य के प्रति वफादार रहने की शपथ को किस बहादुर सैनिक ने चुनौती दी थी-
(a) मोहम्मद अली बेग
(c) मंगल पाण्डे
(b) नाना साहब
(d) रहमत अली
Answer – (a)
38. ‘बिथौड़ा’ नामक स्थान संबंधित है ?
(a) मुगल राजपूत युद्ध से
(b) 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से
(d) जल विद्युत परियोजना से
(c) भित्ति-चित्रों से
Answer – (b)
39. नसीराबाद के विद्रोही सैनिकों का नायक कौन था ?
(a) कुंवर सिंह
(b) जुझार सिंह
(c) बख्तावर सिंह
(d) जोरावर सिंह
Answer – (c)
40. 1857 ई. की क्रांति के समय राजस्थान का ए. जी. जी. कौन था?
(a) जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स
(b) मेजर काण्टम
(c) विलियम ईडन
(d) जे.डी. हॉल
Answer – (a)
41. 21 अगस्त, 1857 को आबू में क्रांति की शुरूआत किस सैनिक टुकड़ी ने की थी ?
(a) 15 वीं रेजीमेंट
(b) 15वीं नेटिव इंफैन्ट्री
(c) 30वीं नेटिव इंफैन्ट्री
(d) जोधपुर लीजन
Answer – (d)
42. तांत्या टोपे ने अमीरगढ़ के निकट किस रियासत की सेना को परास्त किया?
(a) बूँदी
(b) भीलवाड़ा
(c) टोंक
(d) शाहपुरा
Answer – (c)
43. तांत्या टोपे ने 1857 की क्रांति में राजस्थान के किस नगर पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की थी?
(a) झालावाड़
(b) आगरा
(c) जयपुर
(d) लखनऊ (a)
44. ” आयो इंगरेज मुल्क रे ऊपर, आहंस लीधां खेंचि उरा” इस गीत के रचयिता हैं-
(a) बांकीदास
(c) जयनारायण शर्मा
(b) केसरीसिंह बारहठ
(d) सागरमल गोपा
Answer – (a)
45. आउवा वर्तमान में किस जिले में स्थित है ?
(a) पाली
(b) जोधपुर
(c) नागौर
(d) राजसमंद
Answer – (a)
46. जोधपुर लीजन के सैनिकों ने किस छावनी में क्रांति का उद्घोष किया था ?
(a) ब्यावर
(b) जोधपुर
(c) नीमच
(d) एरिनपुरा
Answer – (d)
47. 1857 के दौरान लिखित पुस्तक ‘माझा प्रवास’ के लेखक हैं?
(a) विष्णुभट्ट गोड़से
(b) सीताराम लालस
(c) वीरभद्र
(d) मंगल पाण्डेय
Answer – (a)
48. अजमेर की रक्षा के लिए ब्यावर से बुलाई गई मेर रेजीमेंट का नेतृत्वकर्त्ता कौन था?
(a) मॉरीशन
(c) मेजर शॉवर्स
(b) लेफ्टिनेन्ट कारनेल
(d) कैप्टन हॉकिन्स
Answer – (b)
49. सन् 1857 ई. के विद्रोह के समय राजस्थान (तत्कालीन राजपूताने) में सैनिक छावनियाँ थी?
(a) 5
(b) 4
(c) 6
(d) 7
Answer – (c)
50. दो ब्रिटिश डॉक्टरों सेल्डर व काण्टम, रेजीडेंट बर्टन व उसके पुत्रों फ्रेंक व आर्थर की हत्या कहाँ के विद्रोहियों ने की थी?
(a) सिरोही
(b) आउवा
(c) कोटा
(d) बून्दी
Answer – (c)
51. नीमच सैनिक छावनी में विद्रोह का प्रारम्भ कब हुआ ?
(a) 1 जून, 1857
(b) 3 जून, 1857
(c) 28 मई, 1857
(d) 31 मई, 1857
Answer – (b)
53. तांत्या टोपे को फाँसी कहाँ दी गई थी ?
(a) सलुम्बर
(b) शिप्रा/क्षिप्रा
(c) अजमेर
(d) ब्यावर
Answer – (b)