प्रजामण्डल आंदोलन
प्रजामण्डल आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना व रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
1938 ई. में राष्ट्रीय कांग्रेस के हरिपुरा (गुजरात) अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा की गई तथा इस अधिवेशन में राष्ट्रीय कांग्रेस के मंच से सुभाष चन्द्र बोस द्वारा प्रजामण्डल आंदोलनों में कांग्रेस की भागीदारी की औपचारिक घोषणा की गई। सुभाष चन्द्र बोस ने रियासती जनता को अपने यहाँ प्रजामण्डलों की स्थापना करने के प्रयास के लिए प्रोत्साहित किया। राजस्थान के प्रमुख प्रजामण्डल इस प्रकार हैं-
जयपुर प्रजामण्डल
जयपुर राज्य में ब्रिटिश सत्ता का विरोध और जनजागृति का कार्य सर्वप्रथम अर्जुनलाल सेठी के द्वारा किया गया। उन्होंने 1908 ई. में जयपुर में ‘वर्धमान विद्यालय’ स्थापित किया। जयपुर राज्य में हिन्दी को राजभाषा बनाने के लिए ठाकुर कल्याणसिंह और श्यामलाल वर्मा ने 1922 ई. में आन्दोलन चलाया, तो वहीं 1927 ई. में सेठ जमनालाल बजाज द्वारा स्थापित ‘चरखा संघ’ ने भी खादी उत्पादन एवं प्रचार-प्रसार के द्वारा जनचेतना उत्पन्न करने का कार्य किया।
कपूरचन्द पाटनी ने जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना 1931 ई. में की, तो वहीं 1938 ई. में सेठ जमनालाल बजाज व हीरालाल शास्त्री के प्रयासों से जयपुर प्रजामण्डल का पुनर्गठन हुआ, जिसका अध्यक्ष एडवोकेट चिरंजीलाल मिश्र, सचिव हीरालाल शास्त्री और संयुक्त सचिव कर्पूरचन्द पाटनी को बनाया गया था। उल्लेखनीय है कि चिरंजीलाल मिश्र ने प्रजामण्डल कार्यकारिणी से मतभेद होने पर ‘प्रजामण्डल प्रगतिशील दल’ का गठन किया था।
हीरालाल शास्त्री ने भारत छोड़ो आन्दोलन-1942 के समय जयपुर के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल से समझौता कर आन्दोलन नहीं करने का निश्चय किया, तो वहीं बाबा हरिश्चन्द्र के नेतृत्व में प्रजामण्डल का एक गुट हीरालाल शास्त्री से सहमत नहीं था, अतः उन्होंने 1942 में ‘आजाद मोर्चा’ का गठन कर आन्दोलन शुरू कर दिया।
समझौतावादी नीति के कारण हीरालाल शास्त्री की सर्वत्र आलोचना हुई, अन्तत: सितम्बर, 1942 ई. में हीरालाल शास्त्री ने मिर्जा इस्माइल को आन्दोलन प्रारंभ करने से सम्बन्धित अल्टीमेटम भेजा और प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल ने हीरालाल शास्त्री को आमंत्रित कर एक समझौता किया जिसे ‘जेन्टलमेन एग्रीमेन्ट’ कहा जाता है तथा इस समझौते के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार थे-
(1) जयपुर राज्य युद्ध के लिए अंग्रेजों की जन-धन से मदद नहीं करेगा,
( 2 ) प्रजामण्डल को शांतिपूर्ण युद्ध विरोधी अभियान चलाने की अनुमति तथा
(3) राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए शीघ्र प्रक्रिया प्रारम्भ की जाएगी।
पण्डित जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से 1945 ई. में आजाद मोर्चा को बाबा हरिश्चन्द्र ने प्रजामण्डल में समाहित कर दिया।
27 मार्च, 1947 ई. को राज्य शासन में सुधार किया गया, जिसके अनुसार एक नया मन्त्रिमण्डल बना, जिसमें हीरालाल शास्त्री को मुख्यमंत्री बनाया गया था। जुलाई, 1947 ई. में नरेन्द्रमण्डल की सभा में जयपुर महाराजा ने भारतीय संघ में मिलने की घोषणा कर दी। उल्लेखनीय है कि जयपुर राज्य से तीन सदस्य भारतीय संविधान सभा में भेजे गए, जिनमें से एक पं. हीरालाल शास्त्री थे।
शाहपुरा प्रजामण्डल
शाहपुरा के शासक रामस्नेही सम्प्रदाय एवं आर्य समाज से • प्रभावित थे, तो वहीं यहाँ के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अत्याचार सहन नहीं करने पड़े। 1920-30 ई. के दशक में शाहपुरा के शासक उम्मेदसिंह ने अनेक पुस्तकालय, पाठशालाएँ एवं विधवा आश्रम स्थापित किए थे।
लादूराम व्यास, रमेशचन्द्र ओझा एवं अभयसिंह ने शाहपुरा में 18 अप्रैल, 1938 ई. को प्रजामण्डल की स्थापना की, तो वहीं गोकुल लाल असावा प्रजामण्डल के प्रमुख कार्यकर्ता थे। प्रजामण्डल के कार्यकर्ताओं ने भारत छोड़ो आन्दोलन-1942 के दौरान उत्तरदायी शासन की माँग की, तो वहीं शाहपुरा के महाराजा ने 1946 ई. में गोकुल लाल असावा के नेतृत्व में संविधान निर्मित करने के लिए समिति का गठन किया और गोकुल लाल असावा के नेतृत्व में 27 सितम्बर, 1947 ई. को पूर्ण उत्तरदायी सरकार गठित हुई।
महाराजा ने प्रजा के प्रतिनिधि गोकुल लाल असावा को सत्ता हस्तान्तरित कर दी। इस प्रकार शाहपुरा राजस्थान का पहला देशी राज्य था, जहाँ पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई। शाहपुरा राज्य का ‘राजस्थान संघ’ में विलय 25 मार्च, 1948 ई. को हो गया।
बूँदी प्रजामण्डल
बून्दी में भी राजस्थान सेवा संघ की शाखा स्थापित की गई और इसके अध्यक्ष पं. नयनूराम शर्मा व अन्य कार्यकर्ताओं ने राज्य में जनजागृति उत्पन्न करने का काम किया, तो वहीं 1927 ई. पुलिस द्वारा पुरोहित रामनाथ कुदाल की हत्या ने जनता में रोष उत्पन्न कर दिया और लोगों द्वारा हड़ताल एवं प्रदर्शनों के द्वारा राज्य के निरंकुश शासन का विरोध किया गया।
कान्तिलाल की अध्यक्षता 1931 ई. में बून्दी प्रजामण्डल की स्थापना को गई, जिसने राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित करने एवं नागरिक अधिकारों की माँग की, तो वहीं प्रजामण्डल द्वारा प्रशासनिक सुधारों की मांग करने पर 1937 ई. में इसके अध्यक्ष ऋषिदत्त मेहता को राज्य से निर्वासित कर दिया गया था। ऋषिदत्त मेहता ने 1944 ई. में बून्दी में ‘बून्दी राज्य लोक परिषद’ की स्थापना की और हरिमोहन माथुर को इसका अध्यक्ष बनाया गया, तो वहीं 1945 ई. में लोकपरिषद् के जुलूस पर पुलिस द्वारा गोली चलाने से वकील रामकल्याण शर्मा की मृत्यु हो गई थी।
अन्ततः महाराव ने संविधान निर्माण समिति का गठन कर उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग स्वीकार कर ली, मगर इसे क्रियान्वित करने से पूर्व ही 25 मार्च, 1948 ई. को बून्दी राज्य का ‘राजस्थान संघ‘ में विलय हो गया।
जोधपुर प्रजामण्डल (मारवाड़)
1920 ई. में स्थापित ‘मारवाड़ सेवा संघ’ ने मारवाड़ में राजनीतिक चेतना जागृत करने की शुरुआत की तथा जयनारायण व्यास, प्रयागराज भण्डारी व भंवरलाल सर्राफ इसके प्रमुख सदस्य थे, तो वहीं 1923 ई. में ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ का गठन कर जयनारायण व्यास ने उत्तरदायी शासन की मांग की।
1929 ई. में जयनरायाण व्यास ने ‘मारवाड़ की अवस्था’ एवं ‘पोपाबाई का राज’ नामक पुस्तिकाएँ लिखकर मारवाड़ के शासन की कटु आलोचना की और राज्य ने इन पुस्तकों पर रोक लगा दी तथा मारवाड़ हितकारिणी सभा के सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया, तो वहीं 5 मार्च, 1931 को महात्मा गाँधी-इरविन समझौते के परिणामस्वरूप जयनारायण व्यास सहित सभी नेताओं को रिहा कर दिया गया था। जयनारायण व्यास ने ‘मारवाड़ यूथ लीग’ की स्थापना 10 मई, 1931 ई. को की।
पुष्कर में मारवाड़ राज्य लोक परिषद् का अधिवेशन चान्दकरण शारदा की अध्यक्षता में 24-25 नवम्बर, 1931 ई. को हुआ, तो वहीं कस्तूरबा गाँधी, काका साहेब कालेलकर और मणिलाल कोठारी जैसे राष्ट्रीय नेता ने इस अधिवेशन में भाग लिया था।
राज्य सरकार ने 5 मार्च, 1932 ई. को ‘मारवाड़ दरबार पब्लिक सेफ्टी’ अध्यादेश जारी कर सभी प्रकार के आन्दोलनों पर प्रतिबंध लगा दिया। छगनलाल चौपासनीवाला, अभयमल मेहता एवं भंवरलाल सर्राफ ने मिलकर 1934 ई. में ‘मारवाड़ प्रजामण्डल’ की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष भंवरलाल सर्राफ थे।
1936 ई. में सरकार ने प्रजामण्डल को अवैध घोषित कर दिया। 1936 ई. में ‘अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद’ के अध्यक्ष पट्टाभि सीतारम्मैया जोधपुर आये और उन्होंने देशी नरेशों को अपने राज्यों में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की सलाह दी तथा प्रजामण्डल के प्रति जोधपुर राज्य के रवैये की आलोचना की।
1938 ई. के हरिपुरा अधिवेशन के बाद राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना की माँग ने जोर पकड़ा, तो वहीं प्रजामण्डल पर प्रतिबंध होने के कारण रणछोड़दास गट्टानी के नेतृत्व में 16 मई, 1938 ई. को ‘मारवाड़ लोक परिषद्’ का गठन किया गया तथा नवम्बर, 1938 ई. में विजयलक्ष्मी पंडित और दिसम्बर, 1938 ई. में सुभाषचन्द्र 8 बोस के जोधपुर आने से जन आन्दोलन को बल मिला।
जब जोधपुर सरकार कठोर दमन के बाद आन्दोलन को समाप्त नहीं कर सकी तो जून, 1940 ई. को लोक परिषद् से समझौता कर लिया, तो वहीं जून, 1941 ई. में जोधपुर नगरपालिका के प्रथम चुनाव हुए, जिसमें लोक परिषद को बहुमत मिला और जयनारायण व्यास नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए।
28 मार्च, 1942 ई. को चन्डावल में लोक परिषद द्वारा उत्तरदायी शासन दिवस मनाने के दौरान कार्यक्रम पर राज्य की पुलिस और जागीरदारों के कर्मचारियों ने अत्याचार किये।
जयनारायण व्यास ने ‘उत्तरदायी शासन’ और ‘जोधपुर की स्थिति पर प्रकाश’ पुस्तिकाएँ लिखकर राज्य और जागीरदारों की दमन नीति को उजागर किया। 1942 ई. के प्रारम्भ में जयनारायण व्यास, मथुरादास माथुर सहित प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, तो वहीं जेल में जयनारायण व्यास ने अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल कर दी और इसी दौरान स्वास्थ्य खराब होने के कारण बालमुकुन्द बिस्सा की 19 जून, 1942 ई. को मृत्यु हो गई।
जोधपुर सरकार और लोक परिषद् के मध्य मई, 1944 ई. में समझौता हो गया और सभी राजनीतिक बंदी मुक्त कर दिए गए। लोक परिषद् को नवम्बर, 1944 ई. में जोधपुर नगरपालिका के चुनाव में पुनः बहुमत मिला और नगरपालिका के अध्यक्ष द्वारकादास पुरोहित निर्वाचित हुए।
पं. जवाहरलाल नेहरू जून, 1945 ई. में जोधपुर आए और उनकी सलाह पर महाराजा उम्मेदसिंह ने डोनाल्ड फील्ड के स्थान पर सी.एस. वेंकटाचारी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया, जिससे राज्य व लोक परिषद के मध्य अस्थाई रूप से संबंध सुधरे।
जागीरदारों के जुल्मों के विरुद्ध किसान सभा एवं मारवाड़ लोक परिषद् ने 13 मार्च, 1947 ई. को डीडवाना परगने के डाबड़ा गाँव में एक संयुक्त अधिवेशन किया, सम्मेलन पर.. पुलिस हमले में 12 लोगों की मृत्यु हो गई, तो वहीं महाराजा हनुवन्तसिंह ने 3 मार्च, 1948 ई. को जयनारायण व्यास को मुख्यमंत्री बनाया, जिन्होंने उत्तरदायी शासन की स्थापना की दिशा में कदम उठाये।
जैसलमेर प्रजामण्डल
सागरमल गोपा यहाँ के प्रथम राजनीतिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने जैसलमेर महारावल की निरंकुशता के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा, तो वहीं 1918 ई. में सागरमल गोपा ने एक आम सभा आयोजित की, जिसमें राज्य में मिडिल स्तर तक की शिक्षा व्यवस्था करने का निवेदन किया।
16 नवम्बर, 1930 ई. को पं. जवाहरलाल नेहरू के स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हुए ‘जवाहर दिवस’ मनाने एवं शासन सुधारों की मांग करने के कारण सागरमल गोपा, रघुनाथसिंह मेहता आदि को जेल जाना पड़ा। रघुनाथसिंह मेहता ने 1932 ई. में जैसलमेर में ‘महेश्वरी नवयुवक मण्डल’ की स्थापना की, जिसने जनता में जागृति उत्पन्न करने का प्रयास किया तथा सरकार ने इसे अवैध घोषित कर रघुनाथसिंह को जेल में डाल दिया, तो वहीं सागरमल गोपा ने ‘रघुनाथसिंह पर मुकदमा’ पुस्तक प्रकाशित कर राज्य की दमन नीति को उजागर किया।
शिवशंकर गोपा ने मदनलाल पुरोहित, लालचंद जोशी, जीवनलाल कोठारी के सहयोग से 1939 ई. में जैसलमेर में ‘प्रजा परिषद्’ की स्थापना की। सागरमल गोपा ने 1940 ई. में ‘जैसलमेर में गुण्डाराज’ पुस्तक छपवाकर महारावल की निरंकुशता तथा राज्य की शासन की अत्याचारी प्रकृति का चित्रण किया, जिस कारण सागरमल गोपा को जैसलमेर से निर्वासित कर दिया गया और वे नागपुर चले गए।
अपने पिता के देहान्त के उपरान्त रेजीमेंट द्वारा आश्वासन प्राप्त कर सागरमल गोपा जून, 1941 ई. में जैसलमेर आये और उन्हें गिरफ्तार कर 10 जून, 1942 को राजद्रोह के अपराध में 6 वर्ष के कारावास की सजा दे दी गई, तो वहीं जेल में थानेदार गुमानसिंह द्वारा दी जाने वाली यातनाओं के विरुद्ध सागरमल गोपा ने जयनारायण व्यास और शेख ‘अब्दुल्ला को पत्र लिखे।
6 अप्रेल, 1946 ई. को जयनारायण व्यास के आग्रह पर पॉलिटिकल एजेन्ट ने जैसलमेर जाने का कार्यक्रम बनाया, लेकिन 3 अप्रेल, 1946 ई. को सागरमल गोपा को जेल में जिन्दा जला दिया गया, जिससे 4 अप्रेल, 1946 ई. को उनका देहान्त हो गया, तो वहीं सागरमल गोपा की मृत्यु पर उत्पन्न जन आन्दोलन के भय से राज्य सरकार ने मौत के कारणों को जाँच करने के लिए विधिवेत्ता गोपालस्वरूप पाठक को जाँच अधिकारी नियुक्त किया, जिसने इस घटना को ‘आत्महत्या’ करार दिया।
मीठालाल व्यास ने 15 दिसम्बर, 1945 ई. को जोधपुर में ‘जैसलमेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की और 26 मई, 1946 ई. को मीठालाल व्यास व जयनारायण व्यास सहित अनेक कार्यकर्ता जैसलमेर पहुँचे, जहाँ उन्होंने एक आम सभा कर जैसलमेर में उत्तरदायी शासन की मांग की। 30 मार्च, 1949 ई. को जैसलमेर राज्य को ‘वृहद राजस्थान’ में मिला लिया गया।
मेवाड़ प्रजामण्डल
मेवाड़ राज्य में आदिवासी और किसान आन्दोलनों ने जन जागृति उत्पन्न करने का प्रारम्भिक कार्य किया। 24 अप्रैल, 1938 ई. को उदयपुर में माणिक्यलाल वर्मा ने बलवन्तसिंह मेहता के निवास ‘साहित्य कुटीर’ पर मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की तथा बलवन्तसिंह मेहता को प्रजामण्डल का अध्यक्ष, भूरेलाल बया को उपाध्यक्ष और माणिक्यलाल वर्मा को महामंत्री बनाया गया, तो वहीं 11 मई, 1938 ई. को राज्य ने प्रजामण्डल को अवैध घोषित कर माणिक्यलाल वर्मा को राज्य से निर्वासित कर दिया और माणिक्यलाल वर्मा ने अजमेर में प्रजामण्डल का अस्थाई कार्यालय खोला तथा वहाँ से ‘मेवाड़ का वर्तमान शासन’ पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें मेवाड़ के निरंकुश शासन की तीव्र आलोचना की गई।
प्रजामण्डल पर प्रतिबंध और उपाध्यक्ष भूरेलाल बयां की गिरफ्तारी के विरोध में अक्टूबर, 1938 ई. में रमेशचन्द्र ने सत्याग्रह प्रारम्भ कर दिया, जिसके फलस्वरूप राज्य ने अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया और कुछ को राज्य से निर्वासित कर दिया। फरवरी, 1940 ई. में माणिक्यलाल वर्मा को रिहा कर दिया गया और मेवाड़ सरकार ने फरवरी, 1941 ई. में प्रजामण्डल पर लगा प्रतिबंध भी हटा दिया। माणिक्यलाल वर्मा की अध्यक्षता में 25-26 नवम्बर, 1941 ई. को मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन उदयपुर में हुआ, तो वहीं इस अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता आचार्य कृपलानी और विजयलक्ष्मी पण्डित ने भाग लिया था।
मेवाड़ सरकार ने भारत छोड़ो आन्दोलन-1942 के दौरान माणिक्यलाल वर्मा, मोहनलाल सुखाड़िया, बलवन्तसिंह मेहता सहित प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर अगस्त, 1942 ई. में मेवाड़ प्रजामण्डल पर प्रतिबंध लगा दिया और 1943-44 ई. में राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया तथा सितम्बर, 1945 ई. में प्रजामण्डल पर लगी रोक हटा दी गई। ‘अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्’ का सातवाँ अधिवेशन उदयपुर में 31 दिसम्बर, 1945 ई. से 1 जनवरी, 1946 ई. को हुआ जिसकी अध्यक्षता पं. जवाहरलाल नेहरू ने की, तो वहीं इस अधिवेशन में देशी राजाओं से अपने राज्यों में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की मांग की गई।
मेवाड़ महाराणा ने 8 मई, 1946 को ठाकुर गोपालसिंह की अध्यक्षता में संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया, जिसमें प्रजामण्डल के सदस्यों को भी मनोनीत किया गया, तो वहीं नवनियुक्त प्रधानमन्त्री के. एम. मुंशी ने राज्य के लिए एक संविधान बनाया, जिसे 23 मई, 1947 ई. को लागू कर दिया गया। विधानसभा चुनाव तक एक अंतरिम सरकार बनाई गई, जिसमें प्रजामण्डल की ओर से मोहनलाल सुखाड़िया और हीरालाल कोठारी को मंत्री बनाया गया। भारतीय संविधान सभा में मेवाड़ राज्य से दो सदस्य भेजे गए-के.एम. मुंशी और माणिक्यलाल वर्मा। मेवाड़ राज्य का 18 अप्रेल, 1948 ई. को ‘संयुक्त राजस्थान’ में विलय हो गया।
बीकानेर प्रजामण्डल
सर्वप्रथम चूरू के स्वामी गोपालदास ने बीकानेर राज्य में जनजागृति पैदा करने का प्रयास किया और उन्होंने 1907 ई. में चूरू में ‘सर्वहितकारिणी सभा’ की स्थापना की। 26 जनवरी, 1930 को स्वामी गोपालदास और पण्डित चन्दनमल बहड़ ने चूरू के सर्वोच्च शिखर धर्मस्तूप पर तिरंगा झण्डा फहराकर तहलका मचा दिया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (नवम्बर-दिसम्बर, 1931 ई., लन्दन) के दौरान अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के कार्यकर्ताओं ने ‘बीकानेर एडमिनिस्ट्रेशन’ नाम से महाराजा गंगासिंह के प्रशासन के सम्बन्ध में पैम्पलेट छपवाकर लन्दन में बांटे जिस पर कार्यवाही करते हुए महाराजा गंगासिंह ने स्वामी गोपालदास, चन्दनमल बहड़, सत्यनारायण वकील आदि को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया, जिसे ‘बीकानेर षड्यन्त्र केस’ (अप्रेल, 1932 ई.) के नाम से जाना जाता है। 1935 ई. में मघाराम वैद्य ने कलकत्ता में बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की, तत्पश्चात् बीकानेर में मघाराम वैद्य, मुक्ताप्रसाद, रघुवरदयाल और सत्यनारायण सर्राफ ने 4 अक्टूबर, 1936 ई. को प्रजामण्डल की स्थापना की और मघाराम वैद्य को प्रजामण्डल का अध्यक्ष बनाया गया।
राज्य सरकार ने कार्यवाही करते हुये वकील मुक्ता प्रसाद, सत्यनारायण सर्राफ और मघाराम वैद्य को राज्य से निर्वासित कर दिया। राज्य की दमनकारी नीति के बावजूद बीकानेर के सुप्रसिद्ध वकील रघुवरदयाल गोयल ने ‘बीकानेर राज्य प्रजा परिषद्’ की 22 जुलाई, 1942 ई. को स्थापना की। भारत छोड़ो आन्दोलन, 1942 ई. के दौरान बीकानेर में ‘झण्डा आन्दोलन’ हुआ। राज्य के दमन के बावजूद जनता ने 23 जनवरी, 1946 ई. को ‘नेताजी दिवस’ और 26 जनवरी, 1946 ई. को ‘स्वतन्त्रता दिवस’ मनाया तथा महाराजा सार्दूलसिंह से उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग की।
रायसिंह नगर (गंगानगर) में प्रजा परिषद् का अधिवेशन 30 जून, 1946 ई. को सत्यनारायण सर्राफ की अध्यक्षता में हुआ, तो वहीं 1 जुलाई, 1946 को प्रजापरिषद द्वारा रायसिंहनगर में तिरंगा जुलूस निकाला गया, जिस पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिससे बीरबल सिंह नामक कार्यकर्ता की मृत्यु हो गई और इस गोलीकाण्ड की जाँच करने के लिए ‘अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्’ ने गोकुल भाई भट्ट और पं. हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में एक जाँच समिति गठित की।
महाराजा ने जुलाई, 1946 ई. में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की घोषणा की, जिसके अनुसार फरवरी, 1948 ई. में जसवन्तसिंह के नेतृत्व में गैर-लोकप्रिय मंत्रिमण्डल ने पद ग्रहण किया, परिणामतः उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए प्रयास जारी रहे। भारतीय संविधान निर्मात्री सभा हेतु बीकानेर रियासत से सरदार के.एम. पणिक्कर को भेजा गया था, तो वहीं बीकानेर का 30 मार्च, 1949 को ‘वृहद् राजस्थान’ में विलय हो गया।
कोटा प्रजामण्डल
राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता पं. नयनूराम शर्मा को कोटा राज्य में जनजागृति का श्रेय जाता है, तो वहीं पं. नयनूराम शर्मा ने 1918 ई. में कोटा में ‘प्रजा प्रतिनिधि सभा’ की स्थापना कर जनता की शिकायतों को महकमा खास व महाराव तक पहुँचाया।
1934 ई. में नयनूराम शर्मा ने ‘हाड़ौती प्रजामण्डल’ की स्थापना की, लेकिन यह संगठन विशेष कार्य नहीं कर सका, तो वहीं नयनूराम शर्मा और अभिन्न हरि ने 1939 ई. में ‘कोटा राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की। 14 अक्टूबर, 1939 ई. को कोटा राज्य प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में मांगरोल में हुआ, जिसमें उत्तरदायी शासन स्थापित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन – 1942 ई. के दौरान सरकार ने प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बन्दी बनाकर सभा, जुलूस और आन्दोलन आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिए । अगस्त, 1942 ई. में नाथूलाल जैन के नेतृत्व में युवकों ने पुलिस को बैरकों में बन्द कर शहर कोतवाली पर अधिकार कर लिया और उस पर तिरंगा फहरा दिया।
राज्य ने 16 अक्टूबर, 1942 ई. को जनता से समझौता कर दमन की कार्यवाही नहीं करने, गिरफ्तार कार्यकताओं को रिहा करने तथा उत्तरदायी शासन स्थापित करने की दिशा में कार्य करने का आश्वासन दिया। कोटा महाराव ने मार्च, 1946 ई. में वैधानिक सुधार के लिए श्री हिरण्या के नेतृत्व में एक समिति बनाई, जिसने कोटा राज्य का संविधान बनाया।
1948 ई. में • अभिन्न हरि के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार के गठन का निर्णय लिया गया लेकिन कोटा राज्य का 25 मार्च, 1948 ई. को राजस्थान संघ में विलय होने के कारण इसे क्रियान्वित नहीं किया जा सका।
करौली प्रजामण्डल
ठाकुर पूर्णसिंह और मदनसिंह ने करौली राज्य में जनजागृति एवं रचनात्मक कार्यों की शुरूआत की, तो वहीं भंवरलाल कवि ने खादी प्रचार द्वारा जन चेतना जगाने का प्रयास किया तथा चिरंजीलाल शर्मा ने हरिजनोद्धार के कार्यों द्वारा जनजागृति पैदा करने का कार्य किया। त्रिलोकचन्द्र माथुर ने 1939 ई. में करौली प्रजामण्डल की स्थापना की तथा चिरंजीलाल शर्मा और मदनसिंह इसके प्रमुख कार्यकर्ता थे ।
नवम्बर, 1946 ई. में राजपूताना के राज्यों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं का एक सम्मेलन करौली में हुआ, जिसमें पहली बार करौली में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग की गयी। जुलाई, 1947 ई. में करौली राज्य ने संवैधानिक सुधारों के लिए 11 सदस्यीय समिति नियुक्त की, जिसमें प्रजामण्डल के एक भी प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया था। करौली राज्य का 18 मार्च, 1948 ई. को ‘मत्स्य संघ’ में विलय होने तक उत्तरदायी शासन स्थापित करने की दिशा में कदम नहीं उठाये गये।
ध्यात्वय रहे- 1927 ई. में कुँवर मदन सिंह के नेतृत्व में किसानों ने करौली में आंदोलन किया।
सिरोही प्रजामण्डल
गोविन्द गिरि और मोतीलाल तेजावत ने सिरोही में किसान व आदिवासी आन्दोलनों द्वारा जनता में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करने का कार्य किया था। मुम्बई में 1934 ई. में सिरोही के उत्साही युवकों वृद्धिशंकर त्रिवेदी, भीमशंकर शर्मा व समर्थमल ने सिरोही प्रजामण्डल की स्थापना की लेकिन यह संस्था अधिक सक्रिय नहीं हो सकी।
हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के बाद 23 जनवरी, 1939 ई. को सिरोही के हाथल गाँव निवासी गोकुल भाई भट्ट ने सिरोही में प्रजामण्डल की स्थापना की, तो वहीं प्रारंभिक रोक के बाद सरकार ने मई, 1940 ई. में प्रजामण्डल को मान्यता प्रदान कर दी और इस प्रजामण्डल ने सभा तथा जुलूसों द्वारा राज्य में उत्तरदायी शासन की मांग की।
1942-1947 ई. के दौरान सिरोही में संवैधानिक सुधारों को लेकर प्रजामण्डल व सरकार के मध्य टकराव रहा। जवाहरलाल सिंधी को प्रजामण्डल प्रतिनिधि के रूप में 23 अक्टूबर, 1947 को मंत्रिमण्डल में शामिल किया गया।
मार्च, 1948 ई. में सिरोही को बम्बई राज्य (गुजरात एजेन्सी) के साथ मिला दिया गया था, तो वहीं प्रजामण्डल ने गोकुल भाई भट्ट व पं. हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में इस निर्णय के विरुद्ध आन्दोलन किया गया और अन्ततः 1 नवम्बर, 1956 ई. को सिरोही का राजस्थान में विलय हो गया।
अलवर प्रजामण्डल
पं. हरिनारायण शर्मा ने अलवर राज्य में जन जागृति का प्रारम्भ किया, तो वहीं उन्होंने अस्पृश्यता निवारण संघ, वाल्मीकि संघ और आदिवासी संघ स्थापित कर अनुसूचित जाति और जनजाति की दशा सुधारने का प्रयत्न किया।
मार्च, 1933 ई. में ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रवादी गतिविधियों के समर्थक महाराजा जयसिंह को निष्कासित कर प्रतिक्रियावादी तेजसिंह को अलवर का शासक बना दिया, तो वहीं हरिपुरा कांग्रेस के प्रस्ताव के बाद हरिनारायण शर्मा और कुंजबिहारी मोदी ने ‘अलवर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की जिसका लक्ष्य महाराजा के नेतृत्व में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए संघर्ष करना था। अप्रेल, 1940 ई. में अलवर में निर्वाचित नगरपालिका परिषद् का गठन हुआ, जिसके 18 सदस्यों में से 10 सदस्य प्रजामण्डल के प्रति सहानुभूति रखते थे।
प्रजामण्डल द्वारा अपनी मांगों में उत्तरदायी शासन की माँग हटाने पर सरकार ने अगस्त, 1940 ई. में प्रजामण्डल का पंजीकरण कर लिया। 16-17 जनवरी, 1944 ई. को प्रजामण्डल ने पहला अधिवेशन भवानी शंकर शर्मा की अध्यक्षता में किया, जिसमें सरकार की नीतियों की आलोचना तथा उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग की गई।
उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग को लेकर प्रजामण्डल ने 1 अगस्त, 1946 ई. को पुनः आन्दोलन शुरू किया, जो सितम्बर, 1946 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के सुझाव से स्थगित किया गया। महाराजा ने अक्टूबर, 1946 में संवैधानिक सुधारों के लिए एक समिति गठित की, तो वहीं 17 सितम्बर, 1947 ई. को महाराजा ने अगले दो वर्ष में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की घोषणा की।
फरवरी, 1948 ई. में अलवर राज्य का प्रशासन भारत सरकार के रियासती विभाग ने अपने हाथों में ले लिया, तो वहीं 18 मार्च, 1948 ई. को अलवर राज्य का विलय मत्स्य संघ में हो गया।
ध्यातव्य रहे- 30 जनवरी, 1948 ई. को महात्मा गाँधी की हत्या के षड्यन्त्र में संलग्न के आधार पर अलवर के शासक तेजसिंह और उनके प्रधानमंत्री बी.एन. खरे को भारत सरकार द्वारा दिल्ली में नजरबंद कर दिया गया था तथा केन्द्रीय रियासती विभाग ने के. बी. लाल को अलवर का प्रशासक नियुक्त किया था।
भरतपुर प्रजामण्डल
भरतपुर राज्य में जनजागृति उत्पन्न करने वालों में जगन्नाथदास प्रमुख थे, जिन्होंने 1912 ई. में ‘हिन्दी साहित्य समिति’ स्थापित की। भरतपुर महाराजा किशनसिंह (1900-1927 ई.) ने 1927 ई. में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की घोषणा कर दी, इस पर ब्रिटिश सरकार ने महाराजा को पदच्युत कर अल्पवयस्क बृजेन्द्रसिंह को गद्दी पर बिठाकर डंकन मैकेन्जी को भरतपुर का प्रशासक नियुक्त कर दिया गया, तो वहीं मैकन्जी की निरंकुश नीतियों का विरोध करने के लिए नवम्बर, 1928 ई. में ‘भरतपुर राज्य प्रजा संघ’ की स्थापना की गई तथा गोपीलाल यादव को इसका अध्यक्ष और देशराज को सचिव बनाया गया।
4 मार्च, 1938 ई. को जुगलकिशोर चतुर्वेदी, गोपीलाल यादव, किशनलाल जोशी और मास्टर आदित्येन्द्र ने रेवाड़ी (हरियाणा) में ‘भरतपुर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की और गोपीलाल यादव को प्रजामण्डल का अध्यक्ष बनाया गया, तो वहीं राज्य सरकार ने प्रजामण्डल को अवैध घोषित कर दिया लेकिन 25 अक्टूबर, 1940 ई. को समझौते के बाद प्रजामण्डल का ‘प्रजापरिषद्’ के नाम से पंजीकरण कर लिया।
जयनारायण व्यास की अध्यक्षता में 30 दिसम्बर, 1940 ई. से 1 जनवरी, 1941 ई. को प्रजापरिषद् का प्रथम सम्मेलन भरतपुर में हुआ, तो वहीं 28 से 30 दिसम्बर, 1941 ई. को विशेष अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता हीरालाल शास्त्री ने की।
इन अधिवेशनों में प्रजापरिषद ने राज्य के दमन की आलोचना की और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए प्रस्ताव पारित किए। भारत छोड़ो आन्दोलन- 1942 के दौरान राज्य में आन्दोलन को शिथिल करने के लिए सरकार ने 22 अक्टूबर, 1942 ई. को ‘ब्रज जया प्रतिनिधित्व सभा’ का गठन किया, जिसमें कुल 50 सदस्यों में से 37 निर्वाचित सदस्य रखे गये और जिसके चुनावों में 27 सदस्य प्रजा परिषद के चुने गए, तो वहीं जुगलकिशोर चतुर्वेदी को नेता व मास्टर आदित्येन्द्र को उपनेता चुना गया।
अप्रैल, 1945 ई. में राज्य की नीतियों के कारण परिषद् ने प्रतिनिधि सभा का बहिष्कार कर राज्य में पूर्ण उत्तरदायी शासन की माँग की। 17-18 दिसम्बर, 1946 ई. को प्रजा परिषद् का तीसरा अधिवेशन कामां में हुआ जिसमें पट्टाभिसीतारम्मैया ने भी भाग लिया। 4 जनवरी, 1947 ई. को वायसराय लार्ड वेवेल और बीकानेर महाराजा सार्दूलसिंह के भरतपुर आगमन पर आन्दोलनकारियों ने राज्य प्रशासन के विरुद्ध प्रदर्शन किए।
प्रतिक्रियास्वरूप पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर लाठियां बरसाई, जिसमें घायल होने से रमेश स्वामी की 5 फरवरी, 1947 को मृत्यु हो गई। अन्ततः महाराजा ने 3 अक्टूबर, 1947 ई. को राज्य का संविधान बनाने के लिए समिति बनाने की घोषणा की तथा दिसम्बर, 1947 ई. में प्रजापरिषद् के गोपीलाल यादव व मा. आदित्येन्द्र और किसान सभा के ठाकुर देशराज व हरिदत्त को मंत्रिमण्डल में शामिल किया। भरतपुर राज्य 18 मार्च, 1948 ई. को ‘मत्स्य संघ’ में शामिल हो गया।
धौलपुर प्रजामण्डल
धौलपुर में 1910 ई. में ज्वालाप्रसाद और यमुनाप्रसाद वर्मा ने ‘आचार सुधारिणी सभा’ और 1911 ई. में ‘ आर्य समाज’ की स्थापना की। स्वामी श्रद्धानन्द के नेतृत्व में अगस्त, 1918 ई. में आर्य समाज ने धौलपुर में स्वशासन के लिए आन्दोलन शुरू किया, तो वहीं 1934 में आर्य समाज के कार्यकर्ताओं ज्वालाप्रसाद व जौहरीलाल इन्दु ने धौलपुर में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना की।
1938 ई. में ज्वालाप्रसाद एवं जौहरीलाल इन्दु ने धौलपुर में प्रजामण्डल की स्थापना की और कृष्णदत्त पालीवाल को इसका अध्यक्ष बनाया गया। 12 नवम्बर, 1946 ई. को तासीमो गाँव में प्रजामण्डल ने अधिवेशन कर उत्तरदायी शासन की माँग की, तो वहीं राज्य सरकार ने तासीमो गाँव पर अत्याचार किया जिससे ठाकुर छतरसिंह और ठाकुर पंचमसिंह मारे गए।
हीरालाल शास्त्री और गोकुल भाई भट्ट को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद ने स्थिति का जायजा लेने धौलपुर भेजा। 17- 18 नवम्बर, 1947 को प्रजामण्डल ने धौलपुर में एक राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया जिसकी अध्यक्षता राम मनोहर लोहिया ने की तथा उद्घाटन कांग्रेस कार्यकर्ता शंकरराव देव ने किया, तो वहीं 18 मार्च 1948 ई. को धौलपुर ‘मत्स्य संघ’ का हिस्सा बन गया।
झालावाड़ प्रजामण्डल
श्यामशंकर और अटलबिहारी ने झालावाड़ में 1919 ई. में ‘सेवा समिति’ की स्थापना कर जनता को राजनीतिक रूप से जागृत करने का कार्यक्रम शुरू किया, तो वहीं रामनिवास शर्मा के द्वारा झालावाड़ में 1921 ई. में ‘सारभ’ पत्र प्रकाशित कर विभिन्न राज्यों की राजनीतिक गतिविधियों को प्रकाशित किया गया।
1934 ई. में हाड़ौती प्रजामण्डल के गठन के बाद इसके प्रमुख कार्यकर्ता पं. नयनूराम शर्मा, शिवलाल कोटड़िया व तनसुखलाल के द्वारा झालावाड़ राज्य का दौरा कर जनता में जागृति उत्पन्न करने का अभियान चलाया गया, तो वहीं झालावाड़ के उत्साही युवकों के द्वारा बालगोविन्द तिवाड़ी के नेतृत्व में हाड़ौती प्रजामण्डल से प्रेरणा प्राप्त कर ‘मित्र मण्डल’ नामक संगठन बनाया गया।
माँगीलाल भव्य ने मदनगोपाल, कन्हैयालाल मित्तल, मकबूल आलम व रतनलाल के साथ मिलकर 25 नवम्बर, 1946 ई. को ‘झालावाड़ प्रजामण्डल’ की स्थापना की और माँगीलाल भव्य को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया, तो वहीं प्रजामण्डल ने राज्य में उत्तरदायी शासन के लिए आन्दोलन चलाया
और झालावाड़ के शासक हरिश्चन्द्र ने अक्टूबर, 1947 ई. में उत्तरदायी शासन की योजना प्रस्तुत की जिसके अनुसार हरिश्चन्द्र स्वयं प्रधानमंत्री बने तथा माँगीलाल भव्य व कन्हैयालाल मित्तल मंत्री बने। 25 मार्च, 1948 ई. को झालावाड़ राजस्थान संघ में शामिल हो गया, तो वहीं झालावाड़ प्रजामण्डल को संरक्षण देने वाला राजपूताने का एकमात्र राज्य था।
प्रतापगढ़ प्रजामण्डल
मास्टर रामलाल, राधावल्लभ सोमानी और रतनलाल ने खादी प्रचार, मद्य निषेध एवं स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग से प्रतापगढ़ में जन जागृति का प्रारम्भ किया। 1938 ई. में अमृतलाल पायक ने आदिवासी क्षेत्रों में पाठशालाएँ खोली और ‘गीत प्रचार समिति’ का गठन कर जन चेतना का कार्य जारी रखा।
अमृतलाल पायक व चुन्नीलाल प्रभाकर ने 1945 ई. में प्रतापगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना की, तो वहीं प्रजामण्डल की उत्तरदायी शासन की मांग को पूरा करने के लिए 15 अगस्त, 1947 ई. को प्रतापगढ़ राज्य सरकार ने लोकप्रिय मंत्रिमण्डल के गठन की घोषणा की और 2 मार्च, 1948 ई. को मंत्रिमण्डल का गठन हुआ जिसमें प्रजामण्डल के प्रतिनिधि के रूप में अमृतलाल पायक को शामिल किया गया था।
प्रतापगढ़ 25 मार्च, 1948 ई. को ‘राजस्थान संघ’ में शामिल हो गया।
डूंगरपुर प्रजामण्डल
भोगीलाल पण्ड्या ने डूंगरपुर में गरीब, मेधावी एवं आदिवासी छात्रों की शिक्षा व्यवस्था के लिए 1919 ई. में एक छात्रावास की स्थापना की, तो वहीं ठक्कर बाप्पा की प्रेरणा से भोगीलाल पण्ड्या के द्वारा 1935 ई. में ‘हरिजन सेवा संघ’ की स्थापना की गई।
उल्लेखनीय है कि 1935 ई. में ही शोभालाल गुप्त ने हरिजनों व भीलों के उत्थान के लिए सागवाड़ा में ‘राजस्थान सेवक मण्डल’ नाम से एक आश्रम खोला था, तो वहीं माणिक्यलाल वर्मा ने 1934 ई. में खाँडलाई में आश्रम स्थापित कर भीलों में शिक्षा के प्रसार का कार्य किया।
माणिक्यलाल वर्मा, भोगीलाल पण्ड्या और गौरीशंकर उपाध्याय ने मिलकर 1935 ई. में ‘बागड़ सेवा संघ’ की स्थापना की। भोगीलाल पण्ड्या ने 1938 ई. में ‘डूंगरपुर सेवा संघ’ की स्थापना कर आदिवासियों में जन जागृति के कार्य को जारी रखा। भोगीलाल पण्ड्या, हरिदेव जोशी, गौरीशंकर उपाध्याय एवं शिवलाल कोटयिा ने मिलकर अगस्त, 1944 ई. में ‘डूंगरपुर राज्य प्रजामण्डल’ का गठन किया, तो वहीं अप्रैल, 1946 ई. में प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसमें हीरालाल शास्त्री, मोहनलाल सुखाड़िया व जुगलकिशोर चतुर्वेदी ने भी भाग लिया था।
प्रजामण्डल द्वारा उत्तरदायी शासन की माँग करने व राज्य के दमन का विरोध करने के कारण भोगीलाल पण्ड्या को गिरफ्तार कर लिया गया तथा हरिदेव जोशी व गौरीशंकर उपाध्याय को राज्य से निर्वासित कर दिया गया, तो वहीं माणिक्यलाल वर्मा, हीरालाल शास्त्री व रमेशचन्द्र द्वारा डूंगरपुर महारावल को समझाने पर भोगीलाल पण्ड्या को रिहा कर दिया गया और हरिदेव जोशी व गौरीशंकर उपाध्याय का निर्वासन रद्द कर दिया गया।
रास्तापाल गाँव की पाठशाला को बन्द कराने एवं अध्यापक सेंगाभाई के प्रति क्रूर व्यवहार का विरोध करने पर पुलिस ने 19 जून, 1947 ई. को पाठशाला के संरक्षक नानाभाई खांट और छात्रा कालीबाई भील को गोली मार दी। दिसम्बर, 1947 ई. में डूंगरपुर महारावल ने ‘राज्य प्रबन्धकारिणी सभा’ की स्थापना की, जिसमें गौरीशंकर उपाध्याय और भीखाभाई भील प्रजामण्डल के प्रतिनिधियों के रूप में शामिल किये गये।
गौरीशंकर उपाध्याय के नेतृत्व में मार्च, 1948 ई. में लोकप्रिय सरकार का गठन हुआ, तो वहीं डूंगरपुर का 25 मार्च, 1948 ई. को ‘राजस्थान संघ’ में विलय हो गया।
बाँसवाड़ा प्रजामण्डल
मणिशंकर, भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी, हरिदेव जोशी, धूलजी भाई आदि के द्वारा बाँसवाड़ा राज्य में जनचेतना जागृति का कार्य किया गया। 1930 ई. में चिमनलाल मालोत ने ‘शांत सेवा कुटीर’ की स्थापना की, तो वहीं हरिदेव जोशी ने भील क्षेत्रों और राज्य के अन्य हिस्सों में पाठशालाएँ खोली और युवकों को शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी। भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने धूलजी भाई, मणिशंकर और चिमनलाल के सहयोग से 1943 ई. में बाँसवाड़ा में प्रजामण्डल की स्थापना की।
1946 ई. में प्रजामण्डल का अधिवेशन हुआ, जिसमें राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की मांग की गई। 1948 ई. में भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया तथा नटवरलाल और मोहनलाल मंत्री बने। बाँसवाड़ा राज्य का 25 मार्च, 1948 ई. को ‘राजस्थान संघ’ में विलय हो गया।
कुशलगढ़ प्रजामण्डल
अंग्रेज सरकार ने 1869 में कुशलगढ़ को बाँसवाड़ा राज्य से अलग कर पृथक् उप रियासत (ठिकाना) बना दिया और जोरावर सिंह 1869 में 1891 ई. तक यहाँ का प्रथम शासक रहा था। बारदोली एवं नमक सत्याग्रह में भाग लेने वाले पन्नालाल त्रिवेदी ने कुशलगढ़ में गाँधी आश्रम स्थापित कर राजनीतिक जागृति पैदा की।
1942 ई. में भंवरलाल निगम की अध्यक्षता में कुशलगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना हुई और पन्नालाल त्रिवेदी को प्रजामण्डल का मंत्री बनाया गया। कुशलगढ़ में लोकप्रिय सरकार का गठन 1948 ई. में हुआ, तो वहीं कुशलगढ़ का 25 मार्च, 1948 ई. को विलय राजस्थान संघ में हो गया।
किशनगढ़ प्रजामण्डल
कान्तिलाल चौथानी के प्रयासों से 1939 में किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना हुई, तो वहीं जमालशाह अध्यक्ष तथा महमूद मंत्री निर्वाचित हुए ।
अभ्यास प्रश्न
1. मेवाड़ प्रजामण्डल के प्रथम अधिवेशन का अध्यक्ष कौन था?
(a) माणिक्यलाल वर्मा
(b) बलवन्तसिंह मेहता
(d) मोहनलाल सुखाड़िया
(c) रमेशचन्द्र व्यास
Answer – (a)
2. मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना किसने की थी?
(a) मीठालाल व्यास
(b) माणिक्यलाल वर्मा
(c) हीरालाल शास्त्री
(d) मघाराम वैद्य
Answer – (b)
3. जून 1941 में अलवर राज्य प्रजा मण्डल द्वारा आयोजित जागीर- माफी प्रजा सम्मेलन राजगढ़ का उद्घाटन किसने किया?
(a) श्री सत्यदेव विद्यालंकार
(b) हरि नारायण शर्मा
(c) काशीराम गुप्ता
(d) मास्टर भोलानाथ
Answer – (a)
4. 1936 में मघाराम ने किस स्थान पर बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना की?
(a) बीकानेर
(b) कलकत्ता
(c) बम्बई
(d) अजमेर
answer – (b)
5. किस राज्य के प्रजामण्डल ने 1936 ई. में ‘कृष्णा दिवस’ मनाया?
(a) उदयपुर
(b) कोटा
(c) करौली
(d) जोधपुर
answer – (d)
6. कन्हैयालाल मित्तल, मांगी लाल भव्य एवं मकबूल आलम किस राज्य प्रजामंडल से सम्बंध थे?
(a) झालावाड़ राज्य प्रजा मंडल
(b) कोटा राज्य प्रजा मंडल
(c) सिरोही राज्य प्रजा मंडल
(d) अलवर राज्य प्रजा मंडल
answer – (a)
7. पंडित नयनूराम शर्मा किस प्रजा मण्डल से संबंधित थे-
(a) सिरोही
(b) अलवर
(c) कोटा
(d) मारवाड़
answer – (c)
8. निम्नलिखित में से डूंगरपुर राज्य प्रजा मण्डल के प्रथम अध्यक्ष कौन थे?
(a) भोगीलाल पंड्या
(b) गौरी शंकर उपाध्याय
(c) माणिक्यलाल वर्मा
(d) ठक्कर बप्पा
answer – (a)
9. डूंगरपुर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना कब हुई थी-
(a) 1945 ई. (b) 1943 ई. (c) 1946 ई. (d) 1944 ई. (d)
10. कोटा राज्य प्रजामंडल के संस्थापक थे-
(a) मीठालाल व्यास
(b) मघाराम वैद्य
(c) शिवशंकर गोपा
(d) नयनूराम शर्मा
answer – (d)
11. सूची I का सूची II से सुमेलित कीजिए और नीचे दिए गए कोड़ से सही उत्तर का चयन कीजिए-
सूची I | सूची II |
I डूंगरपुर | A. 1931 |
II. जयपुर | B. 1936 |
III. बीकानेर | C. 1938 |
IV. अलवर | D. 1944 |
सही उत्तर है-
क्र.सं. | I | II | III | IV |
(a) | D | A | C | B |
(b) | D | A | B | C |
(c) | A | B | C | D |
(d) | B | D | A | C |
answer – (b)
12. निम्नलिखित में से गलत युग्म की पहचान कीजिए-
(a) करौली प्रजामण्डल : त्रिलोक चन्द माथुर
(b) अलवर प्रजामण्डल : हरि नारायण शर्मा
(c) सिरोही प्रजामण्डल : गोकुल भाई भट्ट
(d) बून्दी प्रजामण्डल : माणिक्यलाल वर्मा
answer – (c)
13. राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी एवं उनके कार्यस्थल के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से गलत युग्म को पहचानिए-
(a) बालमुकुंद बिस्सा : उदयपुर रियासत
(b) जयनारायण व्यास : जोधपुर रियासत
(c) रघुबर दयाल गोयल : बीकानेर रियासत
(d) हीरालाल शास्त्री : जयपुर रियासत
answer – (a)
14. निम्नलिखित में से कौनसा सही सुमेलित नहीं है?
(a) जैसलमेर राज्य प्रजामण्डल : मीठालाल व्यास
(b) डूंगरपुर राज्य प्रजामण्डल : भोगीलाल पण्ड्या
(c) बीकानेर राज्य प्रजामण्डल : जयनारायण व्यास
(d) झालावाड़ राज्य प्रजामण्डल : कन्हैयालाल मित्तल
answer – (c)
15. प्रजामण्डल आंदोलन के दौरान जोधपुर, जेल में अव्यवस्था व अन्याय के विरुद्ध भूख हड़ताल करने के कारण स्वास्थ्य खराब हो जाने से 19 जून, 1942 ई. को किस स्वतंत्रता सेनानी की मृत्यु हुई –
(a) भंवरलाल सर्राफ
(b) मथुरादास माथुर
(c) बालमुकुंद बिस्सा
(d) आनन्दमल सुराणा
answer -(c)
16. 1938 ई. में स्थापित मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अध्यक्ष था-
(a) बलवन्तसिंह मेहता
(b) माणिक्यलाल वर्मा
.(c) भूरेलाल बयां
(d) मोहनलाल सुखाड़िया
answer – (a)
17. बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना किस वर्ष हुई थी-
(a) 1931
(b) 1933
(c) 1934
(d) 1936
answer – (d)
18. करौली प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में किसके द्वारा की गई-
(a) बलवन्त सिंह मेहता
(b) त्रिलोकचंद माथुर
(c) खूबचंद शर्राफ
(d) सागरमल गोपा
answer – (b)
19. किस राजपूत राज्य के प्रजामण्डल की स्थापना कलकत्ता में की गई थी-
(a) करौली प्रजामण्डल
(b) बीकानेर प्रजामण्डल
(c) धौलपुर प्रजामण्डल
(d) झालावाड़ प्रजामण्डल
answer – (b)
20. नयनूराम किस आंदोलन से संबंधित थे-
(a) बिजौलिया आंदोलन
(b) बेगूं आंदोलन
(c) बूँदी प्रजामण्डल आंदोलन
(d) जोधपुर प्रजामण्डल आंदोलन
answer – (c)
21. उदयपुर प्रजामण्डल आन्दोलन से संबंधित महिला है-
(a) लक्ष्मी वर्मा
(b) कृष्णा कुमारी
(c) नारायणी देवी वर्मा
(d) चन्द्रावती
answer – (c)
22. कोटा राज्य प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन किसकी अध्यक्षता में आयोजित किया गया था?
(a) विमल जैन
(b) अभिन्न हरि
(c) नयनूराम शर्मा
(d) मुकेश कुमार पांचाल
answer – (c)
23. बांसवाड़ा प्रजामंडल के प्रथम अध्यक्ष कौन थे?
(a) मणिशंकर नागर
(b) भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी
(c) धूलजी भाई भावसार
(d) विजया बहिन भावसार
answer – (b)
24. 1938 ई. में मेवाड़ प्रजामण्डल द्वारा प्रारम्भ व्यक्तिगत सत्याग्रह के पहले सत्याग्राही कौन थे?
(a) रामनारायण चौधरी
(b) रमेश चन्द्र व्यास
(c) कांति प्रसाद
(d) नरेन्द्र सिंह
answer – (b)
25. धौलपुर प्रजामण्डल का अध्यक्ष किसे बनाया गया था?
(a) ज्वालाप्रसाद
(b) जौहरीलाल
(c) कृष्णदत्त पालीवाल
(d) टीकाचन्द
answer – (c)
26. 1938 ई. में मेवाड़ प्रजामण्डल द्वारा प्रारम्भ व्यक्तिगत सत्याग्रह के पहले सत्याग्राही कौन थे?
(a) रामनारायण चौधरी
(b) रमेश चन्द्र व्यास
(c) कांति प्रसाद
(d) नरेन्द्र सिंह
answer – (b)
27. गोकुललाल असावा के नेतृत्व में 1946 में शाहपुरा के किस महाराजा ने संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया?
(a) महारावल उम्मेद सिंह
(b) गुहिल शासक सुजान सिंह
(c) प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल
(d) महारावल गंगासिंह
answer – (a)
28. सिरोही प्रजामण्डल की स्थापना कब की गई थी?
(a) 1938 ई. (b) 1936 ई. (c) 1939 ई. (d) 1932 ई.
answer – (c)
29. जयपुर प्रजामंडल की भारत छोड़ो आंदोलन में निष्क्रिय भूमिका होने पर बाबा हरिश्चन्द्र, रामकरण जोशी, दौलतमल भंडारी आदि कार्यकर्ताओं ने किस संगठन की स्थापना की?
(a) जेन्टलमेन्स सभा
(b) आजाद मोर्चा
(c) स्वतंत्र मोर्चा
(d) सर्व सेवा संघ
answer – (b)
30. जयपुर रियासत में जेन्टलमेन्स एग्रीमेंट किनके मध्य हुआ?
(a) हीरालाल शास्त्री – कर्पूरचन्द पाटनी .
(b) कर्पूरचंद पाटनी – सर मिर्जा इस्माइल
(c) हीरालाल शास्त्री – सर मिर्जा इस्माइल
(d) हीरालाल शास्त्री – जयनारायण व्यास
answer – (c)
31. भरतपुर प्रजामंडल की स्थापना कब की गई ?
(a) 1935
(b) 1936
(c) 1937
(d) 1938
answer – (d)
32. 1944 ई. के अलवर प्रजामण्डल के प्रथम अधिवेशन का अध्यक्ष किसे बनाया गया था?
(a) कुंजबिहारी मोदी
(b) हरिनारायण शर्मा
(c) शालिगराम
(d) भवानीशंकर शर्मा प्रजामण्डल के संस्थापक सदस्य
answer – (d)
33. निम्न में से कौन झालावाड़ नहीं हैं?
(a) मदनगोपाल व रतनलाल
(b) मकबूल आलम
(c) रामनिवास शर्मा
(d) माँगीलाल भव्य
answer – (c)
34. सम्पूर्ण भरतपुर राज्य में ‘मुक्ति दिवस’ मनाया गया हैं?
(a) 1 अगस्त, 1944
(b) 1 अगस्त, 1945
(c) 5 अगस्त, 1945
(d) 9 अगस्त, 1945
answer – (d)
35. अलवर प्रजामण्डल की स्थापना कब की गई थी?
(a) 1938 ई.
(b) 1939 ई.
(c) 1934 ई.
(d) 1947 ई.
answer – (a)
36. बाँसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना कब की गई थी?
(a) 1934 ई. (b) 1940 ई. (c) 1943 ई. (d) 1945 ई.
answer – (c)
37. कर्पूरचन्द पाटनी एवं जमनालाल बजाज के प्रयासों से सर्वप्रथम जयपुर प्रजामंडल की स्थापना कब की गई ?
(a) 1930
(b) 1931
(c) 1938
(d) 1932
answer – (b)
38.जयपुर प्रजामंडल का पुनर्गठन किया गया?
(a) 1930
(b) 1940
(c) 1935
(d) 1936
answer – (d)
39. कोटा राज्य प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन कहाँ आयोजित किया गया था?
(a) अन्ता
(b) बारौँ
(c) शाहबाद
(d) मांगरोल
answer – (d)
40. निम्नलिखित कथनों में से सही चुनिये:-
कथन – A: जयपुर प्रजामण्डल राजस्थान का दूसरा प्रजामण्डल था।
कथन – B : जयपुर प्रजामण्डल के प्रथम अधिवेशन में ‘कस्तूरबा गांधी’ ने भाग लिया।
(a) कथन a और b दोनों सही हैं।
(b) कथन a और b दोनों गलत हैं ।
(c) कथन a सही और कथन b गलत हैं।
(d) कथन b सही है और कथन a गलत हैं।
answer – (d)
41. प्रतापगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना कब की गई थी?
(a) 1945 ई. (b) 1942 ई. (c) 1938 ई. (d) 1936 ई.
answer – (a)
42. शाहपुरा प्रजामण्डल का अध्यक्ष किसे बनाया गया था?
(a) लादूराम व्यास
(b) अभयसिंह
(c) रमेशचन्द्र ओझा
(d) गोकुल लाल असावा
answer – (d)
43. जैसलमेर प्रजामण्डल का संस्थापक कौन था?
(a) मीठालाल व्यास
(b) रामदत्त शर्मा
(c) लालचंद
(d) शिवकुमार विजय
answer – (a)