Kalibanga sabhyta / कालीबंगा सभ्यता (हनुमानगढ़)
कालीबंगा एक ‘ सिन्धी ‘ भाषा का शब्द है, जिसका शब्दिक अर्थ ‘ काले रंग की चूड़ियाँ ‘ होता है | कालीबंगा सभ्यता ( kalibanga sabhyta ) हनुमानगढ़ जिले में प्राचीन सरस्वती (वर्तमान घग्घर) नदी के मुहाने 2400 – 2250 ई. पू. विकसित (पूर्व हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेष) हुई थी | डॉ. अमलानंद घोष ने इस सभ्यता पर सर्वप्रथम 1952 में प्रकाश डाला, इसी कारण इन्हें कालीबंगा सभ्यता ( kalibanga sabhyta ) का प्रथम खोजकर्ता मानते है |
ध्यान रहे – सिंघु घाटी सभ्यता के प्रागैतिहासिक और पूर्व मौर्य व्यक्ति को सर्वप्रथम पहचान राजस्थान के कालीबंगा स्थान पर एल. पी. टैस्सीटोरी द्वारा की गई | वर्ष 1961 ई. से 1969 ई. तक ब्रजवासी लाल (बी. बी. लाल) एकं बालकृष्ण थापर (बी, के, थापर) ने इसका सर्वप्रथम उत्खनन किया |
सबसे प्राचीन कालीबंगा सभ्यता से सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है | यह सभ्यता स्थल हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय के दक्षिण – पश्चिम में है | यह सभ्यता दुर्गीकृत व अदुर्गीकृत दो भागों में फैली हुई थी | इसे ” काँस्य युगीन सभ्यता / नगरीय सभ्यता / आद्य एतिहासिक / पश्च हड़प्पा कालीन / हड़प्पा कालीन / प्राक् हड़प्पा कालीन सभ्यता ” आदि नामों से जाना जाता है | तो इतिहासकार दशरथ शर्मा ने कालीबंगा सभ्यता ( kalibanga sabhyta ) को ” सिंधु घाटी साम्राज्य की तीसरी राजधानी ” (प्रथम हड़प्पा तथा दूसरी मोहनजोदड़ो) कहा है | कालीबंगा में ही 1985 – 86 में एक संग्रहालय की स्थापना की गई |
कालीबंगा की विशेषतायें
- यहाँ के नगरों की सडकें ‘ समकोण ‘ पर काटती थी | इसलिए यहाँ पर बने मकानों की पद्धति को ‘ ऑक्सफोर्ड पद्धति / जाल पद्धति / ग्रिड पद्धति या ‘ चेम्सफोर्ड पद्धति ‘ भी कहते है |
- यहाँ के भवन पहले कच्ची ईंटों से व बाद में पक्की ईंटों से बने हुए मिले | इन ईंटों कि लम्बाई – चौड़ाई – ऊँचाई 3 : 2 : 1 के रूप में थी |
- यहाँ पर विश्व में सर्वप्रथम ‘ भूकम्प के साक्ष्य ‘ दिखाई पड़ते है |
- कालीबंगा सभ्यता ( kalibanga sabhyta ) के अवशेष कोटदीजी (पाकिस्तान) के पुरातात्विक अवशेषों से काफी मिलते है |
- यहाँ पर हमें हल से जुते हुए खेतों के अवशेष मिले है |
- यहाँ भवन की फर्श लोथल अलंकृत एवं सजावटी ईंटों से बनी हुई है |
- यहाँ से हमें लोथल सभ्यता के समान ‘ सात अग्नि वेदिकायें ‘ (हवन कुंड) मिली है | जिसमें कुछ हड्डियों के अवशेष मिले, जिससे हम अनुमान लगा सकते है कि यहाँ पर ‘ बलि प्रथा ‘ पाई जाती थी |
- यहाँ से प्राप्त एक मुद्रा पर ‘ व्याघ्र ‘ (चीता) का एवं एक सिक्के पर ‘ महिला कुमारी देवी का चित्र अंकित है, जिससे हम यह अनुमान लगा सकते है कि यहाँ पर प्राचीन काल में ‘ मातृसत्तात्मक व्यवस्था ‘ पायी जाती थी |
- यहाँ पर हमें एक बालक की खोपड़ी मिली है, जिसमें तीन छेद थे, जिससे ‘ कपालछेदन क्रिया ‘ (शल्या चिकित्सा – वैज्ञानिक भाषा में हाइड्रोस्पोलिस) का प्रमाण मिलता है | यहाँ ‘ विश्व में सर्वप्रथम ‘ यहाँ से प्राप्त हुआ |
- यहाँ से कपड़े में लिपटा एक ‘ उस्तरा ‘ तथा मिट्टी का पैमाना ‘ प्राप्त हुआ है |
- यहाँ से हमें बेलनाकार मोहरें प्राप्त हुई है, जो कि ‘ मेसोपोटामिया सभ्यता ‘ की है |
- यहाँ से हमें मिश्रित फसल (जौ व गेंहू) के साक्ष्य प्राप्त हुए है |
- कालीबंगा सभ्यता ( kalibanga sabhyta ) से ‘ अंडाकार कब्र ‘ के अवशेष मिले है, जिन्हें ‘ चिरायु कब्र ‘ नाम दिया गया |
- यहाँ से हमें ‘ स्वास्तिक चिह्न ‘ प्राप्त हुए है अनुमानत: इसका प्रयोग वास्तुदोष को दूर करने में होता था |
- स्वतंत्रता के बाद भारत का पहला पुरातात्विक स्थल है जिसका उत्खनन किया गया है |
- कालीबंगा सभ्यता ( kalibanga sabhyta ) में उस समय का महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र लोथल (गुजरात) था | इस सभ्यता में स्थानीय उद्योग विकसित थे जिसमें कुम्हार का मृदभांड उद्योग अत्यंत विकसित था |
- यहाँ पर स्नानागार मिले है जिनमें से पानी निकालने की नाली पहले लकड़ी की बनी हुई थी (विश्व में सर्वप्रथम लकड़ी की नाली के अवशेष यहीं से मिले) |
- के. यू. आर. कैनेडी के अनुसार इस सभ्यता का पतन संक्रामक रोग से जबकि अन्य इतिहासकारों के अनुसार इसका पतन प्राकृतिक आपदाओं से हुआ है |
- अमलानन्द घोष के अनुसार ‘ इस सभ्यता का पतन बढती हुई, उष्णता एवं पर्यावरण असंतुलन के कारण हुआ |
ध्यान रहे – ऑरेल स्टाइन ने ‘ ए सर्वे वर्क ऑफ एनशियंट साइट्स अलौंग दी लौस्ट सरस्वती रिवर ‘ नामक पुस्तक की रचना की | कालीबंगा से हमें लोहे के तथा मन्दिर के साक्ष्य नहीं मिले है |