जीन पियाजे का
संज्ञानात्मक विकास (Cognitive-Development) का सिद्धान्त
- ज्ञानेद्रियाँ विज्ञान के अनुसार 5 होती है आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा जो हमें सत्य ज्ञान देती है जिसे संज्ञान कहते है मनोविज्ञान में मन को छठी ज्ञानेन्द्री माना है जिससे प्राप्त ज्ञान असत्य या आभासी हो सकता है |
- जीन पियाजे स्विटजरलैंड के बायोलॉजिस्ट थे जिन्होंने अपने ही बच्चे पर प्रयोग किये | और 1922 से 1932 ई. के बीच जीव विज्ञान के आधार पर बालक के विकास को स्पष्ट किया |
- जीन पियाजे के द्वारा बालक के विकास को जिस तरह से स्पष्ट करने का प्रयास किया उसके अनुसार इन्हें “विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक ” कहते है |
- स्कीमा :- यह जीव विज्ञान का शब्द है सरल भाषा में इसका अभिप्राय है क्रिया के समानांतर होने वाली क्रिया जैसे – उद्दीपन – अनुक्रिया |
- संतुलन / समायोजन / अनुकूलन :- परिस्थिति के अनुसार अपने आप को ढाल लेना या उसके साथ अनुकूलित हो जाना |
- आत्मसातीकरण :- जब एक प्राणी / बालक किसी भी नये विचार या अनुभव को अपने पुराने अनुभवों के साथ जोड़ लेता है | या उनके साथ अनुकूलित हो जाता है तो यह आत्मसातीकरण है |
- समंजन :- जब एक व्यक्ति / बालक अपने पुराने अनुभवों का परिमार्जन नये अनुभवों के अनुसार कर लेता है तथा नये विचरों में ढल जाता है |
संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ
(1) संवेदी / पेशीय गामक अवस्था या ज्ञानात्मक – क्रियात्मक अवस्था (sensory – motor stage) (जन्म से 2 वर्ष तक) :-
- अनुकरण की अवस्था
- त्वचा, आँख, नाक, कान, जीभ सर्वाधिक सक्रिय
- संवेदनाओं के आधार पर सीखता है |
- इस अवस्था में बालक में भाषा का विकास हो जाता है | तथा 2 वर्ष का बालक बोलने लगता है |
- वस्तुसमायोजन का ज्ञान तथा अनुक्रिया व परिणाम में सम्बन्ध का ज्ञान हो जाता है |
- वस्तुस्थायित्व :- निश्चित रूप से किसी देखी गई वस्तु या आवाज का स्थायीकरण बालक के मस्तिष्क में होना | यह क्रिया 18 माह के बाद होती है जिसके कारण उसके मस्तिष्क में प्रतिबिम्ब (image) बनने लगते है |
2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था / प्राक चलन अवस्था (Pre – Operational stage) (2 से 7 वर्ष तक) :-
- 2 वर्ष की आयु में बालक परिवार का सक्रिय सदस्य बन जाता है
- जीववाद / सजीव चिंतन (Animism):- जब एक बालक किसी भी वस्तु को केवल सजीव मानकर व्यवहार करता है |
- आत्मकेन्द्रितता (Egocentrism) :- खुद को राजा समझना |
- स्वनिर्मित भाषा का प्रयोग करना |
- प्रतीकों व प्रतिमाओं के माध्यम से समझना
- खेल व अनुकरण से सीखना
- इस अवस्था में अतार्किक चिन्तन शुरू हो जाता है जो एक विमीय होता है |
जीन पियाजे ने इस अवस्था को दो उपावस्था में बांटा –
(a) पूर्व प्रत्यात्मक काल / पूर्व संकल्पनात्मक काल (2 से 4 वर्ष) :- प्रबल जिज्ञासु काल |
(b) अंत: प्रज्ञ काल / अंत: दर्शी अवस्था ( 4 से 7 वर्ष) :- अनुकरण की अवस्था |
(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था / ठोस चलन अवस्था / Concrete Stage (7 से 11 वर्ष) :-
- पलटावी चिंतन / व्युत्क्रमणशील चिंतन की अवस्था
- गणना से सम्बन्धित प्रारम्भिक अवस्था
- मूर्त वस्तुओं के सन्दर्भ में चिन्तन करना |
- वैचारिक काल अवस्था |
- तार्किक चिंतन का विकास |
- मूर्त अवधारणाओं की पहचान करना, वैचारिक क्रमबद्धता, संधारण / संरक्षण (द्रव्यमान, आयतन,क्षेत्रफल का ज्ञान ), विकेंद्रण (विमाओं का ज्ञान होना) आदि का विकास हो जाता है |
(4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था / औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था / Abstract Stage (11 से 16 वर्ष) :-
- पूर्ण परिपक्वता की अवस्था |
- अमूर्त चितन की अवस्था |
- बालक की बुद्धि का अधिकतम विकास 15 – 16 वर्ष की अवस्था में हो जाता है |
- तार्किकता का उच्चतम स्तर |