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बैराठ सभ्यता 

  • बैराठ सभ्यता कोटपूतली जिले के विराट नगर की बीजक, गणेश व भीम की डूंगरी में बाणगंगा नदी के मुहाने पर मिली, जहाँ महाभारतकालीन व मौर्यकालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए | 
  • बैराठ सभ्यता से ही हमें पूर्व आर्यन लोगों की विद्यमानता का ऐतिहासिक प्रमाण पाया गया है | 
  • विराटनगर से ( उकेरण विधि से अलंकृत ) ऑकर कलर पात्र संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है , तो  इसके बाद काले व लाल मृदभाण्ड संस्कृति के भी अवशेष पाए गये है, जिन पर कोई चित्रकारी नहीं मिली है | 
  •  यद्यपि बनास संस्कृति के काले व लाल मृदपात्रों पर सफेद चित्रकारी की जाती थी | 
  • इसके अलावा इस क्षेत्र में से स्लेटी रंग के चित्रित मृदभांडों में PWG वाली संस्कृति के पुरावशेष मिले है | 
  • ये पात्र हल्के व पतले होते थे,  जिन पर ज्यामितीय आकृतियाँ यथा आड़ी – तिरछी रेखाओं, अर्द्धवृत्त, स्वास्तिक आदि का चित्रांकन किया गया था | 
  • उल्लेखनीय है कि विराटनगर उत्तर – भारत में काले चमकीले मृदभांडों का प्रतिनिधित्व करने वाला पहला पुरातात्विक स्थल माना जाता है | 
  • बैराठ को ‘ प्राचीन युग की चित्रशाला ‘ तथा ‘ अलवर का सिंहद्वार ‘ कहते है | 
  • बैराठ सभ्यता की सर्वप्रथम खोज 1936 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी के द्वारा की गई | 
  • बैराठ सभ्यता का सर्वेक्षण व उत्खनन कैलाश नाथ दीक्षित तथा नीलरतन बनर्जी के द्वारा किया गया | 
  • बैराठ सभ्यता के लोग लौह धातु से परिचित थे | 

  • बैराठ सभ्यता से एक मुगल गार्डन ईदगाह, एक छ्त्तरी एवं लॉज (सराय) जैसी ईमारतें मिली है | 

  •  1837 ई. में कैप्टन बर्ट द्वारा बीजक की डूंगरी से सम्राट अशोक का शिलालेख भाब्रू शिलालेख की खोज की गई |

  • जिसके नीचे ब्राह्मी लिपि में ‘ बुद्ध – धम्म – संघ ‘ तीन शब्द लिखे हुये है | 
  • यह शिलालेख वर्तमान में कोलकाता संग्राहालय (1840 ई. से) में रखा गया है | 
  • इस शिलालेख अशोक ने अपने आप को मगध का राजा कहा था | 
  • इस शिलालेख को बैराठ – कोलकत्ता शिलालेख भी कहते है | 
  • बैराठ क्षेत्र के टिंगरिया व भानगढ़ स्थलों से प्रागैतिहासिक (पुरापाषाण) कालीन मानव के प्रस्तर उपकरण मिले है |  
  • प्राचीनकाल से बैराठ क्षेत्र बौद्ध धर्म का प्रमुख क्षेत्र रहा है | यहाँ पर जयपुर के राजा रामसिंह के काल में खुदाई करने पर स्वर्ण मंजूषा (कलश) प्राप्त हुआ |
  • जिसमें भगवान बुद्ध की अस्थियों के अवशेष थे | 1962 – 63 ई. पुरातात्वविद नीलरतन बनर्जी व कैलाश नाथ दीक्षित के द्वारा यहाँ पर उत्खनन कार्य करवाया गया था | 
  • यहाँ पर 1999 में बीजक की पहाड़ी से बौद्ध मन्दिर (भारत में सर्वप्रथम मन्दिर के अवशेष यहीं से प्राप्त हुए है |), विहार, प्रतिमा, बौद्ध संस्कृति के अवशेष, अशोक महान के आहत् / पंचमार्क सिक्के (भारत के सबसे प्राचीन सिक्के),  रंगीन मृदभाण्ड मिले है | 
  • बैराठ संस्कृति से हमें चाँदी की मुद्रा पंचमार्क (84 सिक्के ) तथा इंडो ग्रीक शासकों के (24 सिक्के), जिनमें से 16 मुद्राएँ प्रसिद्ध यूनानी शासक मिनाण्डर की है, प्राप्त हुई | 
  • यहाँ पर हर्षवर्द्धन के शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था | जिसे ‘ तीर्थ यात्रियों का राजकुमार  / नीति का पंडित / शाक्य मुनि ‘ कहा जाता है | 
  • ह्वेनसांग ने सीयूकी नामक पुस्तक लिखी जिसमें पुष्यभूति वंश की जानकारी मिलती है | 
  •  बैराठ सभ्यता से ही मध्य पाषणकालीन शैलाश्रय गणेश डूंगरी, बीजक डूंगरी व भीम डूंगरी आदि गुफाओं की दीवारों व छतों पर लाल रंग से चित्रांकित किये गये है, तो वहीं यहाँ के शैलचित्रों में मुख्य रूप से हाथी, भालू, चीता, हिरण, शतुरमुर्ग व जंगली सांड के चित्रों का चित्रांकन मिलता है | 
  • बैराठ सभ्यता के लोग धातु से परिचित थे | 
  • यहाँ धातु के चाकू, तीर. कुल्हाड़ी, चिमटा, कील, हंसिया, कुदाल, भाला आदि लौह उपकरण प्राप्त हुए है |
  • वहीं यहाँ से मिट्टी के बने पूजापात्र, थालियाँ, लोटे, मटके आदि भी प्राप्त हुए है | 
  • यहाँ से भारतीय लिपिमाला की विज्ञान की रहस्यमयी शंखलिपि के प्रमाण भी मिले है | 
  • दयाराम साहनी के अनुसार हुण शासक मिहिरकुल के द्वारा छठी सदी के आसपास बैराठ का ध्वंस किया गया था | 
  • महाभारत काल में पांडवों ने अपना अज्ञातवास विराटनगर में बिताया था | 

नोट : बौद्ध कालीन कोल्वी की गुफाएँ डग (झालावाड़) से प्राप्त हुई है | 


 

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