आहड़ सभ्यता संस्कृति (उदयपुर )

दक्षिणी – पश्चिमी राजस्थान के उदयपुर नगर से लगभग 2 – 3 मील दूरी पर स्थित आहड़ कस्बे में आयड़ नही के किनारे से प्राप्त यह संस्कृति लगभग 4000 वर्ष (1900 से 1200 ई. पू. ) पुरानी है | जिसकी सर्वप्रथम खोज 1953 ई. में अक्षय कीर्ति व्यास ने की, तत्पश्चात 1956 ई. में रतन चन्द्र अग्रवाल (आर. सी. अग्रवाल) ने तथा सर्वाधिक उत्खनन 1961 ई. में पूना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हंसमुख धीरज लाल सांकलिया (एच. डी. सांकलिया) ने किया | यहाँ की खुदाई से आहड़ सभ्यता संस्कृति के तीन चरणों का ज्ञान हुआ है –

पहला चरण  – (स्फटीक पत्थरों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है |) 

दूसरा चरण – ( ताम्बा, कांसा और लौहे का प्रयोग बहुतायात से किया गया |)

तृतीय चरण – मृदभाण्ड से संबंधित सामग्री की अधिकता मिलती है | 

प्राचीन शिलालेखों में आहड़ का पुराना नाम ‘ ताम्रवती नगरी ‘ मिलता है | यहाँ पर सर्वाधिक तांबे के उपकरण मिले है, इसलिए इसे ‘ ताम्रनगरी  कहते है | इस सभ्यता का विकास बनास नदी की घाटी में हुआ इस कारण इसे ‘ बनास सभ्यता / बनास संस्कृति  भी कहते है | 10 वीं – 11 वीं शताब्दी में इसे ‘ आघाटपुर या आघाटदुर्ग ‘ के नाम से पुकारा जाता था | स्थानीय लोग इसे क्षेत्रीय भाषा में ‘ धूलकोट ‘ के नाम से भी पुकारते है, तो आहाड़ सभ्यता संस्कृति को ‘ मृतकों के टीलों की सभ्यता  भी कहा जाता है |  

आहड़ सभ्यता की विशेषताएं

  • आहड़वासी मुलायम काले पत्थर तथा धूप में सुखाई गई कच्ची ईंटों से मकानों का निर्माण करते थे | आहड़वासी दीवारों एवं नीवों को मजबूत एवं सौन्दर्ययुक्त बनाने हेतु मिट्टी में क्वार्ट्ज के टुकड़े एवं चिप्स के सम्मिश्रण का प्रयोग करते थे | 
  • यहाँ पर कुछ मकानों में दो या तीन चूल्हे और एक मकान में तो छ: चूल्हों की संख्या देखी गयी | इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ बड़े परिवारों या सार्वजानिक भोजन बनाने की व्यवस्था भी की जाती थी | 
  • यहाँ से लाल काले रंग के मृदभाण्ड (मिट्टी के बर्तन) मिले है | जिनमें घड़े, कटोरियाँ, रकाबियाँ, प्याले, मटके, भण्डार के कलश, ढक्कन आदि मुख्य है | यहाँ से प्राप्त मृदभाण्डों को लाल धरातल पर काले रंग की सुंदर ज्यामितिक डिजाइनों से सजाया गया था | 
  • यहाँ से हमें अनाज रखने के बड़े मृदभाण्ड भी मिले है | जिसे गोर तथा कोठे कहते है | 
  • यहाँ से प्रथम ई. पू. तक की छ: यूनानी मुद्राएँ और तीन मोहरें मिली है | 
  • यहाँ से हमें छपाई करने के ठप्पे, आटा पीसने की चक्की, चित्रित बर्तन एवं ताम्बे के उपकरण मिले है |
  • यहाँ से हमें मिट्टी से (टेराकोटा पद्धति से) बनी वृषभ (बैल) आकृति की मृति प्राप्त हुई जिसे ‘ बनासियन बुल ‘ की संज्ञा दी गई है |
  • आहड़वासी कृषि (चावल) व पशुपालन (कुत्ता), हाथी, मेंढा, गैंडा से भी परिचित थे | 
  • यहाँ से एक वैज्ञानिक पद्धति भी मिली है, जो चक्रकूप पद्धति कहलाती है | यह मकानों से पानी निकालने की वैज्ञानिक पद्धति थी | 
  • यहाँ के लोग मृतकों को कपड़ों व आभूषणों के साथ गाढ़ते थे | 
  • आहड़ सभ्यता संस्कृति का मुख्य उद्योग तांबा गलाना और तांबे के उपकरण बनाना था जिसका प्रमाण हमें यहाँ तांबा गलाने की भट्टियों से मिलता है | 
  • आहाड़ सभ्यता संस्कृति में मुर्दों के सिर को उत्तर दिशा की ओर रखकर दफनाने के प्रमाण मिलते है | 

ध्यान रहे – आहड़ सभ्यता संस्कृति के लोग खाद्य चावल से परिचित थे, तो वे लोग चाँदी धातु से अपरिचित थे |  

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