अजमेर के चौहान
647 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु से लेकर दिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206 ई.) तक का काल भारतीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण काल माना जाता है। इस काल में उत्तर, दक्षिण और सुदूर दक्षिण में अनेक राजवंशों का उत्थान और पतन हुआ। ऐसे राजवंशों में चौहानों का स्थान सर्वोपरि है। चौहानों ने राजस्थान तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों में अपने अनेक केन्द्र स्थापित किये।
चौहानों की उत्पत्ति
चौहानों की उत्पत्ति के संदर्भ में इतिहासकार एकमत नहीं है। भाटों, चारणों, मुहणोत नैणसी, सूर्यमल्ल मिश्रण व चन्दबरदाई (पृथ्वीराज रासो) ने चौहानों को ‘अग्निवंशीय’ बताया है। अग्निवंशीय/अग्निकुंड मत के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति महर्षि वशिष्ठ द्वारा आबू पर्वत पर किये गये यज्ञ (अग्निकुण्ड) से मानी गई है।
सुंधा माता शिलालेख (जालौर) चौहानों की उत्पत्ति महर्षि वशिष्ठ की आँख से उत्पन्न होना प्रमाणित करता है जबकि आचार्य मेरूतुंग द्वारा लिखित ‘प्रबंध चिंतामणि महाकाव्य’ में चौहान वंश की उत्पत्ति महर्षि वशिष्ठ के अग्निकुण्ड से मानी गयी है।
जयानक (पृथ्वीराज विजय), नयनचन्द्र सूरि (हम्मीर महाकाव्य), जोधराज (हम्मीर रासो), नरपति नाल्ह (बीसलदेव रासो), सुर्जन चरित, बेदला शिलालेख, चौहान प्रशस्ति तथा पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने चौहानों को ‘सूर्यवंशी’ बताया है।
हांसी शिलालेख व आबू के अचलेश्वर मंदिर के शिलालेख (1320 ई.) में चौहानों को ‘चन्द्रवंशी’ बताया है।
कर्नल जेम्स टॉड, विलियम क्रुक व वी.ए. स्मिथ ने चौहानों को ‘विदेशी’ (मध्य एशिया से आए हुए) बताया है।
बिजौलिया शिलालेख के आधार पर डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों को ‘वत्स गोत्र ब्राह्मण वंशीय’ बताया है, शिलालेख पर अंकित ‘विप्र श्रीवत्सगोत्रेभूत’ पंक्ति इस विचार की पुष्टि करती है। जानकवि रचित ‘कायम खाँ रासो’ तथा चन्द्रावती (आबू) के लेख में भी चौहानों का ब्राह्मणवंशी होना माना गया है। डॉ. गोपीनाथ शर्मा भी इस मत की पुष्टि करते हैं। रायपाल के सेवाड़ी शिलालेख चौहानों को इन्द्र का वंशज बताते हुए ‘इन्द्रवंशी’ बताया गया है।
डॉ. डी. आर. भण्डारकर के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति खज्र जाति से हुई है जबकि डॉ. डी. आर. भण्डारकर ने अपने दूसरे मत में बिजौलिया शिलालेख के आधार पर चौहानों को वत्स गौत्रीय ब्राह्मणवंशीय बताया है। पं. आसोपा ने इन्हें साँभर झील के चारों ओर रहने के कारण ‘चाहमान’ बताया।
चौहानों का मूल स्थान
उत्पत्ति के समान चौहानों का मूल स्थान भी काफी विवादास्पद है।
डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार चौहानों का मूल स्थान जांगल देश (बीकानेर, जयपुर और उत्तरी मारवाड़) तथा सपादलक्ष (सांभर) था, जबकि डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों का मूल स्थान चित्तौड़ बताया है।
हम्मीर महाकाव्य, सुर्जन चरित में ‘पुष्कर’ को चौहानों का मूल स्थान बताया गया है। सांभर के चौहानों की वंशावली, बिजौलिया शिलालेख, हम्मीर महाकाव्य, प्रबंधकोष आदि में चौहानों का प्रारम्भिक निवास स्थान या मूल स्थान ‘सांभर के आसपास का क्षेत्र’ माना गया है।
सीकर के 973 ई. के हर्षनाथ शिलालेखानुसार चौहानों की प्राचीनतम राजधानी अनन्तगोचर प्रदेश/अनन्तप्रदेश (सीकर से साँभर तक का क्षेत्र) थी, जिससे इनका मूल स्थान सीकर के निकटवर्ती क्षेत्रों में मालूम पड़ता है।
पृथ्वीराज विजय, शब्द कल्पद्रुम कोष, लाडनूँ लेख में चौहानों के मूल निवास स्थान के संबंध में जांगल देश, सपादलक्ष, अहिच्छत्रपुर (नागौर) आदि स्थान विशेष का वर्णन मिलता है। इससे स्पष्ट है कि चौहान जांगलदेश (बीकानेर, जयपुर व उत्तरी मारवाड़) के रहने वाले थे और उनके राज्य का प्रमुख भाग सपादलक्ष (साँभर) था और उनकी राजधानी अहिच्छत्रपुर (नागौर) थी।
चौहान प्रारम्भ में गुर्जर प्रतिहारों के सामंत थे। चौहानों ने सर्वप्रथम शाकम्भरी (साँभर) में अपनी चौहान शाखा स्थापित की। इसके बाद चौहानों की शाखाएँ अजमेर, रणथम्भौर, नाडोल, जालौर, बूँदी, कोटा, सिरोही आदि क्षेत्रों में फैल गई।
चौहानों का मूल स्थान/राज्य जांगलदेश में सपादलक्ष (साँभर) को माना जाता है। उस समय की भौगोलिक सीमा के अनुकूल जांगल देश के विस्तृत भाग के सांभर और नागौर अंग थे। ध्यान रहे-शाकम्भरी और सपादलक्ष शब्द साँभर के लिए ही प्रयुक्त हुए हैं। चौहानों ने सर्वप्रथम साँभर/ शाकम्भरी / सपादलक्ष में अपनी शाखा स्थापित की, इनकी प्रारम्भिक राजधानी अहिच्छत्रपुर (नागौर) थी। साँभर के चौहान शासक ‘सपादलक्षीय नृपति’ व ‘शाकम्भरीश्वर / शम्भरीश’ कहलाते थे। जब इनकी राजधानी अजमेर हुई, तब इनके राज्य विस्तार में मारवाड़, बीकानेर, दिल्ली और मेवाड़ के बहुत से भाग सम्मिलित थे। दिल्ली सल्तनत की स्थापना तक शाकम्भरी का चौहान वंश राजस्थान का सर्वाधिक शक्तिशाली राजवंश था।
वासुदेव चौहान
वासुदेव चौहान ने 551 ई. में साँभर (सपादलक्ष/तीर्थों की नानी/ देवयानी) में चौहान वंश की स्थापना कर वहाँ अपनी कुल देवी ‘शाकम्भरी माता’ का मंदिर बनवाकर ‘अहिछत्रपुर’ (नागौर) को अपनी राजधानी बनाया अतः वासुदेव को ‘चौहानों का आदि पुरुष / शाकम्भरी के चौहान वंश का संस्थापंक’ कहते हैं। वासुदेव चौहान के बारे में हमें जानकारी बिजौलिया शिलालेख में मिलती है। जिसके अनुसार वासुदेव चौहान ने साँभर झील का निर्माण करवाया परन्तु वास्तविक रूप में यह एक प्राकृतिक झील है।
ध्यातव्य रहे- तीर्थों का मामा- पुष्कर (अजमेर), तीर्थों का भांजा- मचकुण्ड (धौलपुर) है, तो तीर्थों की नानी – सांभर (जयपुर) है।
वासुदेव चौहान के बाद उसका उत्तराधिकारी सामंत हुआ, जो वत्सगोत्र ब्राह्मण वंश में पैदा हुआ था तथा इसका समय लगभग 817 ई. माना जाता है, इसके बाद क्रमशः नृप, जयराज, विग्रहराज, चन्द्रराज प्रथम, गोपेन्द्रराज और दुर्लभराज प्रथम के द्वारा यहाँ पर शासन किया गया।
दुर्लभराज प्रथम के बाद उसका पुत्र गूवक प्रथम यहाँ का शासक बना जो प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय का सामंत था और इसके सीकर के हर्षनाथ मंदिर का निर्माण करवाया गया, तो वहीं र्वनाथ चौहानों के इष्टदेव माने जाते है। गूवक प्रथम के बाद उसका चन्द्रराज द्वितीय साँभर के चौहानों का शासक बना, तो वहीं इसके गूवक द्वितीय के द्वारा अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए अपनी कलावती का विवाह कन्नौज के प्रतिहार शासक मिहिरभोज प्रथम से किया गया था।
गूवक द्वितीय के पुत्र चन्दनराज ने दिल्ली के तोमर शासक को पराजित किया था, तो वहीं चन्दनराज की पत्नी रुद्राणी (आत्मप्रभा) प्रतिदिन पुष्कर में एक हजार दीपक अपने इष्टदेव महादेव के सम्मुख जलाती थी। चन्दनराज के बाद उसका पुत्र वाक्पतिराज प्रथम साँभर का शासक बना, तो वहीं पृथ्वीराज विजय के अनुसार यह एक महान यौद्धा था, जिसने 188 युद्ध जीते थे। इसके द्वारा महाराज की उपाधि धारण की गई, जिसका उल्लेख हर्षनाथ मंदिर के अभिलेख में मिलता है। वाक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों की क्षीण होती शक्ति का फायदा उठाकर उनके कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया, तो वहीं इसके बाद विन्ध्यराज साँभर का शासक बना।
विन्ध्यराज के बाद वाक्पतिराज प्रथम का पुत्र सिंहराज साँभर का शासक बना, जिसके द्वारा प्रतिहारों व तोमरों को पराजित करने का उल्लेख मिलता है, तो वहीं सिंहराज को प्रथम स्वतंत्र चौहान शासक माना जाता है क्योंकि इससे पहले चौहान प्रतिहारों के अधीन थे। सिंहराज के बाद इसके भाई लक्ष्मण ने 960 ई. में नाड़ौल जाकर वहाँ चौहान वंश स्थापित किया था।
सिंहराज के बाद उसका पुत्र विग्रहराज द्वितीय हुआ, जो प्रारम्भिक चौहानों का सर्वाधिक प्रतापी एवं शक्तिशाली शासक था, जिसने प्रतिहारों से स्वतंत्र सत्ता स्थापित की, तो वहीं 973 ई. के हर्षनाथ मंदिर से प्राप्त शिलालेख से हमें इसकी विजयों के बारे में जानकारी मिलती है। इसने चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया तथा भड़ौच में अपनी कुलदेवी आशापुरा माता के मंदिर का निर्माण करवाया।
विग्रहराज द्वितीय के छोटे भाई दुर्लभराज द्वितीय ने नाड़ौल के महेन्द्र चौहान को पराजित किया, तो वहीं इसे दुर्लघ्यमेरु (जिसकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सके) भी कहा जाता है। इसके बाद गोविन्द तृतीय साँभर का शासक बना, जिसे जयानक ने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज विजय में वैरीघट्ट (शत्रु संहारक) कहा है, तो वहीं फरिश्ता ने इसको गजनी के शासक को मारवाड़ में आगे बढ़ने से रोकने वाला कहा है।
इसके वंशज वाक्पतिराज द्वितीय ने मेवाड़ के शासक ‘अम्बाप्रसाद को पराजित किया था। इसके बाद क्रमशः वीर्यराम, चामुण्डराज, सिंहट, दुर्लभराज तृतीय व विग्रहराज तृतीय साँभर के शासक बने । विग्रहराज तृतीय के पुत्र पृथ्वीराज प्रथम के बारे में माना जाता है, कि उसने पुष्कर को लूटने के उद्देश्य से आये 7000 चालुक्यों की हत्या करवा दी थी।
अजयराज ( 1105-33 ई.)
इसने 1113 में अजयमेरू नामक नगर बसाकर साँभर से अजमेर को सबसे पहले चौहानों की राजधानी बनाकर अपनी पत्नी सोमलवती के नाम पर चाँदी के श्री अजयदेव नामक सिक्के चलाए और अजयमेरू दुर्ग का निर्माण करवाया।
अजमेर दर्ग-तारागढ़ – अजमेर दर्ग का प्राचीन नाम गढ़ बीठली था, तो वर्तमान में इसका नाम तारागढ़ दुर्ग है। इस दुर्ग का नाम तारागढ़ मेवाड़ के राणा रायमल के बड़े पुत्र पृथ्वीराज सिसोदिया की पत्नी ताराबाई के नाम पर पड़ा। तारागढ़ को ‘अजयमेरू दुर्ग / राजस्थान का हृदय/अरावली का अरमान/राजपूताना की कुंजी / गढ़ बीठली’ आदि नामों से जाना जाता है। इसका निर्माण 1113 ई. में अजयराज चौहान ने करवाया। इस दुर्ग को विशप हैबर ने ‘राजस्थान का जिब्राल्टर’ कहा। सर्वाधिक स्थानीय आक्रमण इसी दुर्ग पर हुये।
इसमें मीरान साहब की दरगाह, घोड़े की मजार, नानाजी का झालरा, रूठी रानी उमादे की छतरी, पृथ्वीराज स्मारक स्थित है। इसमें शाहजहाँ के पुत्र दाराशिकोह का जन्म हुआ तथा धौलपुर युद्ध में औरंगजेब से परास्त होकर उसने यहाँ शरण ली।
ध्यातव्य रहे-अजमेर में स्थित घूघरा की घाटी में आर.पी.एस.सी. का भवन बना हुआ है, जिसकी स्थापना 20 अगस्त, 1949 ई. को जयपुर में हुई थी, तो ‘सर टॉमस रो’ ने अपना परिचय मुगल सम्राट जहाँगीर को मैगजीन दुर्ग (अजमेर) में दिया। 1755 ई. में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद (कमजोर पड़ने के बाद) मराठा वंश सिंधिया ने अजमेर पर अपना कब्जा किया।
अर्णोराज/आनाजी (1133-55 ई.)
इन्होंने तुर्कों को पराजित करके 1137 ई. में आनासागर झील बनवाई। इसी झील के किनारे अकबर के पुत्र जहाँगीर ने शाहीबाग/ दौलतबाग बनवाया, जिसे वर्तमान में सुभाष उद्यान कहते हैं, जिसमें नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम ने सर्वप्रथम गुलाब के इत्र का आविष्कार किया था। जहाँगीर के पुत्र शाहजहाँ ने इसी झील के किनारे पाँच बारहदरी बनवाई। ध्यान रहे ये दोनों ऐसे मुगल बादशाह थे जिनकी माँतायें राजपूत महिला थी। जहाँगीर की माँ आमेर के शासक भारमल की पुत्री हरका बाई थी, तो शाहजहाँ की माँ जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री मानबाई थी।
अर्णोराज ने ही पुष्कर में वराह मन्दिर बनवाया। अर्णोराज के पुत्र जगदेव ने अपने पिता की हत्या कर दी अतः जगदेव ‘चौहानों में पितृहन्ता’ कहलाता है ।
बीसलदेव/विग्रहराज चतुर्थ (1158-63 ई.)
विग्रहराज चतुर्थ विद्वानों का आश्रय दाता (इनके आश्रित कवि सोमदेव ने ललित विग्रहराज व नरपति नाल्ह ने बीसलदेव रासो नामक ग्रंथ लिखे ) था अत: इसे ‘कवि बान्धव/कटि बन्धु’ के नाम से जाना जाता है। यह एक अच्छा नाटककार था जिसने संस्कृत भाषा में हरिकेली नाटक (महाभारत कालीन अर्जुन व श्री कृष्ण के बीच संवाद का वर्णन मिलता है।) की रचना की। नाटककार के साथ के साथ यह एक अच्छा निर्माता भी था जिसने बीसलसागर तालाब (टोंक) बनवाया, 12वीं शताब्दी ई. में बीसलपुर की स्थापना व संस्कृत पाठशाला (कण्ठाभरण) अजमेर में बनवाई। इस पाठशाला को कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1194 में तुड़वाकर ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ बनवा दिया। जिसे राजस्थान की प्रथम मस्जिद/सोलह खम्भों का महल भी कहते हैं।
ध्यातव्य रहे- अढ़ाई दिन के झौंपड़े पर पंजाबशाह नामक पीर की याद में ढ़ाई दिन का उर्स (मेला) भरता है इसी कारण इसका नाम अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पड़ा ।
विग्रहराज अच्छा निर्माता के साथ-साथ अच्छा विजेता भी था जिसने चौहान साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार कर पहली बार दिल्ली के तोमरों को पराजित कर ‘दिल्ली को चौहानों की राजधानी’ बनाया, अतः इसका काल ‘चौहानों का स्वर्णकाल / क्लासिक युग’ कहलाता है । विग्रहराज चतुर्थ के काल के दौरान दिल्ली में शिवालिक स्तम्भ अभिलेख उत्कीर्ण करवाया गया। विग्रहराज के बारे में किल होर्न ने लिखा है कि ‘वह उन हिन्दू शासकों में से एक था जो कालिदास व भवभूति से होड़ कर सकता था।’
विग्रहराज चतुर्थ/ बीसलदेव के बाद क्रमशः अपरगांग्य/ अपरगांगेय/अमरगांगेय (1163-65 ई.), पृथ्वीराज द्वितीय (1165- 69 ई.) व सोमेश्वर (1169-77 ई.) अजमेर की गद्दी पर बैठे, तो वहीं जब 1177 ई. में सोमेश्वर आबू के शासक जैतसिंह/सलख की सहायता के लिए गया तो गुजरात के चालुक्य वंशीय भीम द्वितीय ने इसकी हत्या कर दी।
पृथ्वीराज चौहान तृतीय ( 1177-92 ई.)
पृथ्वीराज तृतीय के पिता सोमेश्वर व माता कर्पूरीदेवी थी, जिनका जन्म 1166 ई. में अन्हिल पाटन (गुजरात) में हुआ। कर्पूरीदेवी दिल्ली शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री थी। पिता सोमेश्वर की अचानक मृत्यु के बाद यह मात्र 11 वर्ष की अल्पायु 1177 ई. में शासक बना, अतः शासन की बागड़ोर इसकी माँ कर्पूरी देवी ने संभाली। इस राज्य के संचालन में कदंबवास (जिसे कैलाश या केमास भी कहते हैं) राज्य का मुख्यमंत्री था तथा भुवनमल्ल जो कि उस समय सेनाध्यक्ष था (जिस प्रकार गरुड़ ने राम और लक्ष्मण को मेघनाथ के नागपाश से बचाया था, उसी प्रकार भुवनमल्ल ने पृथ्वीराज को प्रारम्भिक काल में सुरक्षित रखा।) ने बड़ी अहम भूमिका निभायी। पृथ्वीराज चौहान तृतीय अजमेर के चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक था जिसे ‘राय पिथौरा / दल पुंगल (विश्व विजेता)’ की उपाधि दी गई।
जब पृथ्वीराज बड़ा हुआ और अजमेर का वास्तविक शासक बना तो उसने अपनी दिग्विजय की नीति (आसपास के राजाओं को पराजित कर उनको अपनी अधीनता स्वीकार करवाना) के तहत 1182 ई. में ‘महोबा के युद्ध / तुमुल का युद्ध’ (उत्तर प्रदेश) में परमर्दिदेव चन्देल (आल्हा व ऊदल परमार्दिदेव के सेनापति) को पराजित किया। गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय को पराजित कर अपने चचेरे भाई नागार्जुन को पराजित किया। कन्नौज के राजा जयचंद गहड़वाल को हराकर उसकी पुत्री संयोगिता को स्वयंवर से उठा लाया और उसके साथ गंधर्व विवाह किया।
इसी समय भारत में मुहम्मद गौरी के नेतृत्व में खतरे के बादल मण्डरा रहे थे और वह भारत पर आक्रमण कर रहा था। ध्यातव्य रहे- मुहम्मद गौरी का भारत पर आक्रमण करने का मूल उद्देश्य भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना करना था । मुहम्मद गौरी भारत में सर्वप्रथम 1178 ई. में गुजरात के रास्ते भारत में प्रवेश किया परन्तु गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय (संरक्षिका माँ नाईका देवी) ने मुहम्मद गौरी को रोका और ‘आबू / अहिलवाड़ा के युद्ध’ में पराजित किया। मुहम्मद गौरी वापस गजनी चला गया। कन्नौज के शासक जयचन्द गहड़वाल के कहने पर मुहम्मद गौरी ने भारत पर दुबारा पंजाब हरियाणा के रास्ते आक्रमण किया परन्तु इस बार अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने उसे रोका और उन दोनों के मध्य तराइन का युद्ध हुआ ।
तराइन का प्रथम युद्ध-1191 ई. में पृथ्वीराज तृतीय व मुहम्मद गौरी के मध्य करनाल (हरियाणा) के मैदान में हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय जीता और मुहम्मद गौरी हारकर वापस गजनी चला गया और 1 वर्ष तक अपनी सेना तैयार करता रहा और अगले वर्ष 1192 ई. में पुन: पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करने तराइन के मैदान में आ पहुँचा। तराइन का द्वितीय युद्ध-1192 ई. में पृथ्वीराज तृतीय व मोहम्मद गौरी के मध्य करनाल (हरियाणा) के मैदान में हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी जीता और पृथ्वीराज तृतीय को बंदी बनाकर गजनी (अफगानिस्तान) ले गया जहाँ उसे अंधा कर दिया।
पृथ्वीराज चौहान का मित्र चन्दबरदाई फकीर के वेश में गजनी मुहम्मद गौरी के पास पहुँचा और उससे कहा कि हे सुल्तान ! पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने की कला जानता है, आप उस कला को देखो। तब सुल्तान ने कहा कि पृथ्वीराज चौहान मेरे कहने से ये कला मेरे को नहीं दिखायेगा तब चन्दबरदाई ने सुल्तान से कहा कि मैं एक बार भारत गया था तब इस राजा से मेरी मुलाकात हुई थी और इस राजा ने मेरे से वादा किया था कि मैं तुम्हें एक बार इस कला को दिखाऊँगा और राजपूत अपने वादे से नहीं मुखरते। तब सुल्तान उस फकीर को पृथ्वीराज चौहान से मिलवाता है। पृथ्वीराज चौहान चन्दबरदाई की आवाज को पहचान जाता है और दोनों सुल्तान को मारने का उपाय सोचते हैं। दूसरे दिन कला की प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। ‘चन्दबरदाई भरी सभा में ‘चार बाँस चौबीस गज, , अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान’ यह उक्ति बोलता है और इसी के साथ पृथ्वीराज चौहान बाण चलाता है जिससे वह बाण सीधा मुहम्मद गौरी को लगता है, जिससे मुहम्मद गौरी मर जाता है। उसके बाद चन्दबरदाई पृथ्वीराज चौहान के कटार घोंप कर उसकी हत्या कर स्वयं आत्महत्या कर लेता है। पृथ्वीराज चौहान तृतीय की समाधि गजनी (अफगानिस्तान) में है।
ध्यातव्य रहे-ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती सूफी सिलसिले से संबंधित हैं। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती मुहम्मद गौरी के साथ पृथ्वीराज चौहान तृतीय के समय राजस्थान आये। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का जन्म संजरी (फारस) में हुआ। ख्वाजा साहब के पिता हजरत ख्वाजा सैयद, माता बीबी सोहिनूर व गुरु शेख हजरत उस्मान हारुनी थे। चिश्ती संत धन का संचय नहीं करते इसी कारण इनको गरीब नवाज या फकीर कहते हैं। चिश्ती संत जहाँ रहते हैं उसे खानकाह कहते हैं। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने अपना खानकाह अजमेर में बनवाया। खानकाह से ही कव्वालियों का उदय हुआ, चिश्ती सम्प्रदाय में गुरु को पीर, शिष्य को मुरीद व उत्तराधिकारी को वली कहा जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह अजमेर में इल्तुतमिश ने बनवाई तथा इस दरगाह में जामा मस्जिद शाहजहाँ ने बनवाई। इसी दरगाह में दो देग (कढ़ाईयाँ) है जिनमें से बड़ी देग का निर्माता अकबर व छोटी देग का निर्माता जहाँगीर है। अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर नजर (भेंट) भेजने वाला मराठा राजा साहू (शिवाजी का पौत्र) था। ख्वाजा की दरगाह में जन्नती दरवाजों का निर्माण मालवा के महमूद खिलजी ने कराया, जिस पर हाल ही में पाँच रुपये का डाक टिकट जारी हुआ है जबकि ख्वाजा की दरगाह पर बीस रुपये का डाक टिकट जारी है। ख्वाजा साहब सम्प्रदाय सद्भावना के लिए जाने जाते हैं तथा इनकी दरगाह संसार में दूसरा मक्का मदीना के नाम से जानी जाती है। प्रतिवर्ष यहाँ पहली रज्जब से छठवीं रज्जब तक उसे भरता है जिसका उद्घाटन भीलवाड़ा निवासी गौरी परिवार करता है।
पृथ्वीराज तृतीय ने अजमेर में कला साहित्य विभाग की स्थापना की जिसका अध्यक्ष पद्मनाभ को बनाया गया। इनके दरबार में जयानक (पृथ्वीराज विजय ग्रंथ में तराइन के युद्ध का वर्णन), चन्दबरदाई (पृथ्वीराज रासो ग्रंथ में तराइन के युद्ध का वर्णन है । चन्दबरदाई पृथ्वीराज चौहान तृतीय का मित्र था जिसका वास्तविक नाम पृथ्वीभट्ट वल्लादी था। यह मूलतः लाहौर का भट्ट ब्राह्मण था जिसने डिंगल भाषा में वीर रस का ग्रंथ पृथ्वीराज रासो लिखा। इस ग्रंथ को पूरा चन्दबरदाई के दत्तक पुत्र जल्हण ने की तथा इस ग्रंथ को उद्धारक या लोक प्रिय कर्नल जेम्स टॉड ने बनाया।), वागीश्वर व जनार्दन, विद्यापति गौड़, विश्वरूप आदि विद्वान रहते थे। ध्यातव्य रहे-मुहम्मद गौरी ने अजमेर को जीतने के बाद अजमेर का कार्यभार पृथ्वीराज के । बेटे गोविंदराज को सौंपा लेकिन 1194 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने गोविंदराज को अजमेर की जगह रणथम्भौर की जागीर दी।
अभ्यास प्रश्न
1. बिजौलिया अभिलेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण किसने करवाया ?
(a) गोविन्द राज (b) वासुदेव (c) विग्रहराज (d) दुर्लभराज
Answer – (b)
2. ‘हरकेलि’ संस्कृत नाटक के रचयिता कौन हैं?
(a) अजयराज चौहान
(b) विग्रहराज प्रथम
(c) विग्रहराज चतुर्थ
(d) पृथ्वीराज चौहान
Answer – (c)
3. किस चौहान शासक द्वारा ‘जाबालिपुर’ को ‘ज्वालापुर’ परिवर्तित किया गया?
(a) जगदेव
(b) विग्रहराज – IV
(c) देवदत्त
(d) अर्णोराज
Answer – (b)
4. नाटक ‘ललित विग्रहराज’ की रचना की गई-
(a) हेमचन्द्र सूरि द्वारा
(b) राजशेखर द्वारा
(c) सोमदेव द्वारा
(d) चन्द बरदाई द्वारा
Answer – (c)
5. बिजौलिया अभिलेख किस वंश के इतिहास की जानकारी का महत्त्वपूर्ण साधन है?
(a) राठौड़
(b) सिसोदिया
(c) चौहान
(d) प्रतिहार
Answer – (c)
6. बिजौलिया शिलालेख किस चौहान नरेश के काल का है ?
(a) सोमेश्वर (c) अजयराज (d) हरिराज (b) पृथ्वीराज
7. चौहान शासक, जो कवि बान्धव के रूप में जाना जाता था ?
(a) अर्णोराज
(b) अजयराज
(c) विग्रहराज iv
(d) पृथ्वीराज ii
Answer – (c)
8. अर्णोराज के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(i) अपने राजकाल के प्रारंभ में उसने एक गजनवी आक्रमण को खदेड़ दिया।
(ii) वह मालवा के नरवर्मन को पराजित करने में असफल रहा।
(iii) उसने चालुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज की पुत्री से विवाह किया।
(iv) वह अपने ही पुत्र के द्वारा मारा गया।
अर्णोराज के बारे में उपर्युक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?’
कूट :
(a) i, ii एवं iii
(b) i एवं iv
(c) i, iii एवं iv
(d) i एवं iii
Answer – (c)
9. पृथ्वीराज तृतीय और मुहम्मद गौरी के मध्य कितने युद्ध लड़े गये थे?
(a) 17
(b) 9
(c) 2
(d) 5
Answer – (c)
10. पृथ्वीराज चौहान तृतीय का समकालीन चन्देल शासक था-
(a) परमार्दिदेव
(b) जयवर्मा
(c) कीर्तिवर्मा
(d) यशो वर्मा
Answer – (a)
11. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है ?
(a) सपादलक्ष चौहानों का मूल स्थान माना जाता है।
(b) विग्रहराज चतुर्थ ने तारागढ़ का निर्माण कराया था।
(c) आहेच्छत्रपुर (नागौर) चौहानों की प्राचीनतम राजधानी थी।
(d) पृथ्वीराज तृतीय चाहमान वंश का अंतिम शासक था।
Answer – (b)
12. निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ चाहमान काल के इतिहास की जानकारी की देता है ?
(a) पृथ्वीराज विजय
(b) पृथ्वीराज रासो
(c) बिजौलिया अभिलेख
(d) घटियाला अभिलेख
Answer – (d)
13. तराईन का द्वितीय युद्ध लड़ा गया-
(a) अकबर और हेमू के मध्य
(b) राणा सांगा और बाबर के मध्य
(c) हम्मीर और अलाउद्दीन के मध्य
(d) मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य
14. किस चौहान शासक ने अजमेर को सबसे पहले अपनी राजधानी बनाया-
(a) पृथ्वीराज प्रथम
(b) अजयराज
(c) पृथ्वीराज तृतीय
(d) विग्रहराज
Answer – (b)
15. विख्यात स्मारक ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ या तत्कालीन संस्कृत महाविद्यालय का निर्माण किसके द्वारा किया गया-
(a) विग्रहराज चतुर्थ
(b) पृथ्वीराज प्रथम
(c) अर्णोराज
(d) अजयराज
Answer – (a)
16. 1191-92 के तराइन के युद्ध में किस चौहान शासक (राजा) को आक्रमणकारी शहाबुद्दीन गौरी से लड़ना पड़ा-
(a) पृथ्वीराज प्रथम
(b) बीसलदेव
(c) पृथ्वीराज द्वितीय
(d) पृथ्वीराज तृतीय
Answer – (d)
17. चौहान राजवंश का संस्थापक शासक है-
(a) वासुदेव
(b) अर्णोराज
(c) सोमेश्वर
(d) पृथ्वीराज तृतीय
Answer – (a)
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