राजस्थान के प्रमुख किले व  दुर्ग

राजस्थान प्रदेश में प्राचीन काल में राजा – महाराजाओं का शासन था। राजस्थान एक प्राचीन धरोहर है।  बार-बार बाहरी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से राजस्थान में बड़ी संख्या में किलों का निर्माण हुआ। किले में सुदृढ़ प्राचीरें , इमारतें , सुंदर व मजबूत दरवाजे , और गोल बुर्जें  बनाई जाती थी।
चित्तौड़ का दुर्ग , मेहरानगढ़ का किला , जैसलमेर दुर्ग , रणथंभौर का दुर्ग , अजमेर का तारागढ़ दुर्ग , जयगढ़ दुर्ग आदि राजस्थान के प्रमुख और प्राचीन दुर्गों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।  
आज इस लेख के माध्यम से राजस्थान के प्रमुख दुर्ग और किले के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। राजस्थान के सभी दुर्ग स्थापत्य कला के अनूठे उदहारण भी हैं।  
शुक्र नीति में दुर्गों को 9 श्रेणियों में बांटा गया है। राजस्थान में शुक्र नीति की अनुसार सभी श्रेणियों से संबंधित प्रकार के दुर्गों का निर्माण हुआ है।

राजस्थान में दुर्गों की श्रेणियां –

पारिख दुर्ग-     वह दुर्ग जिसके चारों और गहरी खाई हो पारीख दुर्ग की श्रेणी में आता है। जैसे – भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग।

गिरी दुर्ग वह दुर्ग जो चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हो। राजस्थान के अधिकांश दुर्ग इसी श्रेणी में आते हैं।

जलदुर्ग  –    वह दुर्ग जो चारों ओर से पानी से घिरा हो । जैसे – गागरोन का किला।

धान्वन दुर्ग  वह दुर्ग जिसके चारों ओर मरुस्थल हो। जैसे – जैसलमेर का किला।

वन दुर्ग – वह दुर्ग जो चारों ओर से वनों से अथवा कांटेदार वृक्षों से घिरा हो। जैसे – जालोर का दुर्ग।

सैन्य दुर्ग – यह सर्वश्रेष्ठ दुर्गों की श्रेणी में माना जाता है। वह दुर्ग जो युद्ध आदि की तैयारी के लिए चतुर योद्धाओं के होने से अभेद्य हो।

एरण दुर्ग जिस दुर्ग का रास्ता कांटों और पत्थरों से युक्त हो। जैसे – रणथंभोर का दुर्ग।

सहाय दुर्ग – सहाय दुर्ग में शूरवीर एवं सदा अनुकूल रहने वाले बंधुजन रहते थे।

पारिध दुर्ग वह दुर्ग जिसके चारों ओर पत्थर और मिट्टी से बनी बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो। जैसे -चित्तौड़गढ़ दुर्ग एवं कुंभलगढ़ दुर्ग।

चित्तौड़ का किला  – 


यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है। यह दुर्ग शुक्र नीति के अनुसार बताई गई धान्वन दुर्ग श्रेणी को छोड़कर अन्य सभी आठ श्रेणियों में रखा जा सकता है। चित्तौड़ का दुर्ग राजस्थान का प्राचीन और प्रमुख दुर्ग है। 
इस दुर्ग के बारे में प्रसिद्ध कहावत है ‘गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया’। यह दुर्ग गंभीरी नदी के तट के समीप मेसा के पठार पर स्थित है। इस दुर्ग का निर्माण सातवीं शताब्दी में चित्रांगद मौर्य ( चित्रांग ) द्वारा करवाया गया था। इसे किलों का सिरमौर भी कहा जाता है। यह दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले मार्ग पर स्थित है। 
चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट (आवासीय दुर्ग) है। यह राजस्थान का सर्वश्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट गिरि दुर्ग है। एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें खेती की जाती है। इस दुर्ग की आकृति व्हेल मछली के समान है। इस दुर्ग का सबसे बड़ा आकर्षण राणा रतनसिंह की रानी पद्मिनी का महल है। श्रृंगार चंवरी -चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित शांतिनाथ का जैन मंदिर है। 

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में निम्न तीन विश्व प्रसिद्ध शाके हुए हैं –

प्रथम शाका – 1303 में अलाउद्दीन खिलजी का रावल रतन सिंह के मध्य युद्ध हुआ था इस में अलाउद्दीन खिलजी विजय रहे एवं रानी पद्मिनी ने जौहर कर लिया था इस युद्ध में पद्मिनी के चाचा – भतीजे जो रतन सिंह के सेनापति थे वे दोनों गोरा और बादल वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 
द्वितीय शाका – 1534- 35 में गुजरात के शासक बहादुर शाह एवं महाराणा विक्रमादित्य के मध्य युद्ध हुआ। रानी कर्मावती ने अन्य वीरांगनाओं के साथ मिलकर जौहर कर लिया था।इस युद्ध में रानी कर्मावती ने राखी भेजकर हुमायूं से सहायता मांगी थी। 
तृतीय शाका – 1567 मैं मुगल बादशाह अकबर और राणा उदय सिंह के मध्य युद्ध। इस युद्ध में वीर जयमल राठौड़, पत्ता राठौड़ और कला राठौड़ वीरगति को प्राप्त हुए साथ ही युद्ध के पश्चात राजपूत वीरांगनाओं ने जौहर कर लिया था। 
कीर्ति स्तम्भ –

महाराणा कुंभा ने मालवा विजय के उपलक्ष में निर्माण करवाया था।इस इमारत में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां लगी हुई है इसी कारण से मूर्तियों का अजायबघर या भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश कहा जाता है। विजय स्तंभ के वास्तुकार जैता और उसके पुत्र नापा, पोमा, पूंजा हैं। 


रणथम्भौर  का किला – 

यह राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है। रणथम्भौर  दुर्ग का वास्तविक नाम रन:पुर है। इसका अर्थ है रण की घाटी में स्थित नगर। इस दुर्ग का प्रवेश द्वार नौलखा दरवाजा के नाम से जाना जाता है। 
अबुल फजल ने इस किले के बारे में लिखा है अन्य सभी  दुर्ग  नग्न हैं जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है। रणथम्भौर  दुर्ग के पूर्वी भाग में गणेश मंदिर के समीप अज्ञात जल स्रोत है जिसे गुप्त गंगा कहा जाता है।
अलाउद्दीन खिलजी ने 1380 में रणथंबोर पर आक्रमण कर दिया था। राणा हमीर वीरगति को प्राप्त हुआ । साथ ही रानियों व दुर्ग की स्त्रीयों ने जोहर किया तथा सभी वीरों ने केसरिया बाना किया। यह राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है।

मेहरानगढ़ दुर्ग –

यह जोधपुर जिले में स्थित है यह दुर्ग चिड़ियाटूंक  पहाड़ी पर बना हुआ है। इस दुर्ग के उपनाम हैं  – मयूरध्वजगढ़, गढ़ चिंतामणि।

भूरे खां  की मजार इसी दुर्ग में स्थित है। मेहरानगढ़ दुर्ग में लंबी दूरी तक मार करने वाली पांच विशालकाय तोपें भी स्थित हैं जिनके नाम हैं – शम्भूबाण ,किलकिला, भवानी ,कालका ,गजनीखां ।

जैसलमेर का किला –

पीले पत्थरों से निर्मित चित्रकूट पहाड़ी पर बना यह दुर्ग भाटी वंश के शासकों के गौरवमय  इतिहास का प्रतीक रहा है। महारावल जैसल सिंह ने 12 जुलाई 1155 को जैसलमेर किले की आधारशिला रखी थी। यह राजस्थान का दूसरा सबसे पुराना किला माना जाता है। यह दुर्ग बिना चुने के सिर्फ पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया हुआ है। 

भटनेर दुर्ग  –

राजस्थान के  हनुमानगढ़ जिले में भटनेर दुर्ग स्थित है। भाटी राजा भूपति ने 295 ईसवी में इसका निर्माण करवाया था। तैमूर ने अपनी आत्मकथा तुजुक – ए- तैमूरी में लिखा है कि मैंने इतना मजबूत और सुरक्षित दुर्ग पूरे हिंदुस्तान में कहीं नहीं देखा है।
  
भटनेर दुर्ग पर 1398 में तैमूर लंग के बर्बर आक्रमण से भयाक्रांत होकर दुर्ग की हिंदू स्त्रियों ने ही नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा भी जोहर का अनुष्ठान किए जाने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। 

अकबर का किला –

अकबर का किला राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित है। अकबर द्वारा 1570 ई. में अपनी सामरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने तथा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु बनवाया गया था।

इसे मैगजीन का किला, अकबर का दौलत खाना भी कहते हैं। यह राजस्थान में मुस्लिम स्थापत्य कला का एकमात्र दुर्ग है। 

जयगढ़ दुर्ग  –

जयगढ़ दुर्ग राजस्थान के जयपुर जिले में चील्ह का टीला नामक स्थान पर मावठा झील के ऊपर स्थित है। इस दुर्ग की यह विशेषता है कि एक बार जिस व्यक्ति को जयगढ़ के किले में कैद करके डाल दिया जाता था वह कभी भी जीवित बाहर नहीं निकलता था।
इस दुर्ग का जीर्णोद्धार जो वर्तमान स्वरूप में स्थित है सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1726 में करवाया था। एशिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण तोप इसी किले में स्थित है। 

जूनागढ़ का दुर्ग  ( बीकानेर ) –

यह पारिख दुर्ग, भूमि दुर्ग , धान्वन दुर्ग की श्रेणी में आता है। राती घाटी नामक स्थान पर स्थित होने के कारण इसे राती घाटी किला भी कहते हैं। इस दुर्ग के बारे में बताया जाता है कि दीवारों के भी कान होते हैं पर जूनागढ़ के महलों की दीवारें तो बोलती हैं। 


तारागढ़ दुर्ग ( अजमेर ) –

1133 ईस्वी में अजयराज द्वारा इसका निर्माण अरावली पर्वतमाला के मध्य बीठड़ी नामक पहाड़ी पर करवाया गया था। इसे अजय मेरु दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। विशप हेब्बर ने इस दुर्ग को पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर भी कहा है। 
इस दुर्ग के अंदर सूफी संत मीरान साहब की दरगाह स्थित है। इस दरगाह में उनके प्रिय घोड़े की मजार भी स्थित है जो संपूर्ण भारत में एकमात्र अजमेर जिले में है। 
कुंभलगढ़ दुर्ग –

राजसमंद जिले में स्थित है । दुर्ग के ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास स्थान व महाराणा प्रताप का जन्म स्थल है जो कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसे मेवाड़ की तीसरी आंख भी कहा जाता है। यह बादल महल के नाम से भी प्रसिद्ध है ।बादल महल का निर्माण महाराणा फतेह सिंह द्वारा करवाया गया था। 
कुंभलगढ़ दुर्ग का शिल्पी मंडन था।इस किले की ऊंचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है। 

आमेर का दुर्ग –
     
अरावली पर्वतमाला की कालीखोह  पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग ‘गिरी दुर्ग’ की श्रेणी में आता है। इस दुर्ग में जगत शिरोमणि के मंदिर में भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मीरा द्वारा पूजित मूर्ति प्रतिष्ठित है। मिर्जा राजा जयसिंह ने दीवान ए खास का निर्माण करवाया था जिसे शीश महल या जय मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
दीवान- ए- आम यह दुर्ग में स्थित राजा का आम दरबार होता था। गणेश पोल – इसका निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया यह भव्य अलंकृत प्रवेश द्वार है। 

भानगढ़ का दुर्ग –
अलवर जिले में स्थित भानगढ़ दुर्ग सरिस्का अभयारण्य में सांवन नदी के तट पर स्थित है. इसे खंडहरों का नगर , भूतहा किला भी कहा जाता है। 
जालौर का किला-

इसे सुवर्णगिरी दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने करवाया था। यह सुकड़ी नदी के किनारे स्थित है। संकटकाल में मारवाड़ के राजाओं का आश्रय स्थल रहा है।

● सिवाना दुर्ग बाड़मेर छप्पन की पहाड़ियों पर स्थित है।

● शेरगढ़ का किला धौलपुर जिले में स्थित यह है राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जो राजस्थान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है।

आमेर का दुर्ग- 
  • अरावली पर्वतमाला की कालीखोह पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है। 
  • इस दुर्ग में जगत शिरोमणि के मंदिर में भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मीरा द्वारा पूजित मूर्ति प्रतिष्ठित है। 
  • मिर्जा राजा जयसिंह ने दीवान ए खास का निर्माण करवाया था जिसे शीश महल या जय मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 
  • दीवान- ए- आम यह दुर्ग में स्थित राजा का आम दरबार होता था। 
  • गणेश पोल – इसका निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया यह भव्य अलंकृत प्रवेश द्वार है।  

● तिमनगढ़ किला – करौली जिले में स्थित जिला मूर्ति तस्करी के कारण चर्चित रहा है।

  •  भरतपुर का किला – 

राजस्थान का सबसे नवीन में सर्वाधिक गहराई पर स्थित दुर्ग है।मैदानी दुर्गों की श्रेणी में विश्व का सर्वश्रेष्ठ दुर्ग माना जाता है। यह मिट्टी से बना हुआ दुर्ग है।

● नाहरगढ़ दुर्ग – जयपुर जिले में स्थित दुर्ग का मूल नाम सुलक्षण दुर्ग है।

● लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर जिले में स्थित है।

● भूमगढ़  दुर्ग (अमीरगढ़ किला ) टोंक जिले में स्थित है।

● भटनेर दुर्ग ( हनुमानगढ़) को उत्तरी सीमा का प्रहरी दुर्ग भी कहा जाता है। 



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