कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त
कोहल बर्ग अमेरिका के निवासी थे उन्होंने यह सिद्धान्त 1958 ई. में दिया था और इसे 1981 एवं 1984 में संशोधित किया |(Moral-development-theory-of Kohlberg-in-hindi)
कोहलबर्ग विभिन्न प्रकार की कहानियों के द्वारा बालकों को नैतिक आचरण विकास के संदर्भ में दिशा देने का प्रभाव किया और स्वयं ने यह सब समझने की कोशिश की तथा उसी आधार पर कोहलबर्ग द्वारा यह सिद्धान्त दिया गया, इन्होने 1984 ई. में Psychology Of Moral Development नामक पुस्तक में नैतिक विकास अवस्थाओं का वर्णन किया |
नोट :- प्रसिद्ध कहानी हैंज की दुविधा सबसे ज्यादा चर्चित रही |
कोहलबर्ग ने नैतिक विकास की 3 स्तर बतायी और इनके 2 – 2 अवस्थाएँ बतायी इस प्रकार कुल 6 अवस्थाओं का वर्णन किया |
स्तर – I (level – 01)
पूर्व परम्परागत / पूर्व रूढ़ीवादी / Pre Conventional level (3-9 वर्ष) :-
(A) दण्ड / आज्ञा की अवस्था (3 से 6 वर्ष) :- इस अवस्था में एक बालक केवल दण्ड के भय से या अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन करने के आधार पर नैतिक आचरण प्रदर्शित करता है |
(B) साधनात्मक / पुरस्कार / अहंकार / सुखवाद की अवस्था (6 से 9 वर्ष) :- जब एक बालक किसी पुरस्कार प्राप्ति के लालच से नैतिक आचरण प्रदर्शित करता है तथा उसमें अपना भला समझता है |
स्तर – II (Level – 02)
परम्परागत / रुढ़िवादी / Conventional Level (9 से 15 वर्ष) :-
इस अवस्था में बालक परम्पराओं को समझने लग जाता है | इसे भी दो अवस्थाओं में बांटा गया है –
(C) अच्छा बालक/ अच्छी बालिका / प्रशंसा की अवस्था (9 से 12 वर्ष) :- इस अवस्था के बालक / बालिकाएं अपनी प्रशंसा को सुनने के प्रयास में नैतिक आचरणों का प्रदर्शन करते है |
(D)सामाजिक सम्मान की अवस्था (12 से 15 वर्ष) :- इस अवस्था में बालक परिपक्व हो जाते है तथा सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने की उन्मुखता से ही कार्य करते है |
स्तर – III (Level – 03)
उत्तर परम्परागत / पश्च रुढ़िवादी / Post Conventional Level (15 से अधिक) :-
इस स्तर में व्यक्ति परिपक्व हो जाता जाता है इसलिए वह परम्पराओं से उठकर आचरण करता है इसे भी दो अवस्थाओं में बांटा गया है –
(E) सामाजिक समझौते की अवस्था (15 से 18 वर्ष) :- इस अवस्था में वह पूर्ण परिपक्व हो जाने के कारण क्या सही है, क्या गलत है, क्या होना चाहिए आदि पर विचार करते हुये आचरणों का प्रदर्शन करता है |
(F) उच्चतम विवेक की अवस्था (18 से अधिक) :- इस अवस्था में व्यक्ति सार्वभौमिक व्यवहार की निति को ध्यान में रखते हुये अच्छे नैतिक आचरण / व्यवहार को अपनाता है | जैसे गाँधी जी का अहिंसावादी व्यवहार |