मूल प्रवृतियाँ (mool-pravartiyan)

प्रतिपादक – विलियम मैकडूगल 

 

  • आर. एस. वुडवर्थ के अनुसार :- मूल प्रवृति कार्य करने का बिना सीखा हुआ स्वरूप है | 
  • वो सभी कार्य जिन्हें जन्तु करना सीखता नही है या किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नही होती है अर्थात् जो जन्मजात होते है, मूल प्रवृतियाँ कहलाती है | 

नोट :- 

 

  • ये जन्मजात अर्थात् आंतरिक होती है |
  • मूल प्रवृतियों से ही संवेग उत्पन्न होते है |
  • ये सार्वभौमिक होती है अर्थात् सभी जन्तुओं में पाई जाती है |
  • इनकी अभिवृत्ति के लिए किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है |
  • इन्हें नष्ट नही किया जा सकता है |

 

 

विलियम मैकडूगल ने मूल प्रवृतियों के तीन पक्ष बताये है – 

1. ज्ञानात्मक :- किसी वस्तु या स्थिति का ज्ञान होना |

2. संवेगात्मक :- ज्ञान के कारण किसी संवेग का उत्पन्न होना |

3. क्रियात्मक :- संवेग के कारण कोई क्रिया होना | 

 

जैसे :- एक छोटा बालक झबरे कुत्ते का ज्ञान अर्जित करता है की यह खतरनाक होता है और मार सकता है एक दिन उस बालक के सामने वह झबरा कुत्ता आ जाता है जिसे देखते ही उस बालक में भय संवेग उत्पन्न होता है और वह छुप जाता है या भाग जाता है | 

 

विलियम मैकडूगल ने मनुष्य में कुल चौदह मूल प्रवृतियाँ बताई – 

 

 मूल प्रवृति                 संवेग 

1. पलायन                         भय 

2. युयुत्सा                         क्रोध 

3. शिशु रक्षा                     वात्सल्य 

4. जिज्ञासा / कौतुहल        आश्चर्य 

5. दैन्य / आत्महीनता         अधीनता की भावना 

6. निवृतियाँ / अप्रियता         घृणा 

7. सामूहिकता                     एकाकीपन 

8. भोजनान्वेषण                     भूख 

9. संवेदना                             कष्ट 

10. काम                             कामुकता 

11. संचय / संग्रह                 अधिकार भावना 

12. हास्य                             आमोद (खुशी)

13. विधायिक / रचना             कृति भाव 

14. आत्म प्रदर्शन                 श्रेष्ठता की भावना 

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