Different parts of plants (पौधों के विभिन्न भाग)
पादप आकारिकी
पौधों के विभिन्न भागों (जड़, तना, पत्ती, फल, फूल आदि) की बाह्य संरचना का अध्ययन पादप में करते है |
विल्हेम हॉफमिंस्टर को पादप आकारिकी का जनक माना जाता है |
पादपों के विभिन्न भागों में वातावरण के साथ अधिकतम अनुकूलन दर्शाने हेतु कई रूपांतरण पाए जाते है, इसका अध्ययन भी आकारिकी में ही किया जाता है |
जड़ / मूल / Root
- जड़ें भूमिगत होती है |
- ये रंगहीन / भूरे रंग की होती है |
- जड़े धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती और ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती होती है |
- इनमें पुष्प, पत्तियाँ आदि अनुपस्थित होते है |
- जड़ों में अवर्णी लवक / ल्यूकोप्लास्ट उपस्थित होता है जो भोजन के संग्रहण का कार्य करता है |
- जड़ों में वर्णी लवक एवं हरित लवक नहीं पाया जाता है |
एक सामान्य जड़ की संरचना
- जड़ का शीर्ष भाग मूल गोप (Root cap) के द्वारा सुरक्षा प्रदान करता है | इसे ‘कैलीप्ट्रा’ (कैलिप्ट्रोजन ऊतक) भी कहते है |
- परजीवी जड़ों (अमरबेल/कस्कुटा) तथा माइकोराइजल जड़ों (कवक एवं उच्चतर पौधों की जड़ों में सहजीवी सम्बन्ध) में मूल गोप नहीं होती है |
- जलीय पौधों में मूल गोप के स्थान पर रूट पॉकेट्स पाए जाते है जिनमें एरेंकाइमा (वायुतक) उपस्थित होने के कारण वायु भारी रहती है जो जलीय पौधों को उत्प्लावन (Buoyancy)प्रदान करते है | जिसके कारण पौधे जल पर तैरते है |
- केवड़ा में एक से अधिक मूल गोप पाए जाते है |
- मूल गोप के बिलकुल पीछे सक्रिय रूप से विभाजन करने वाली कोशिकाएँ पाई जाती है जो कि विभज्योत्तकी क्षेत्र कहलाता है |
- विभाज्योत्तकी क्षेत्र के पीछे दीर्घीकरण क्षेत्र पाया जाता है जहाँ कोशिकाओं के आकार में वृद्धि होती है |
- दीर्घीकरण क्षेत्र के पीछे स्थित कोशिकाओं में परिपक्वन एवं विभेदन होता है तथा इसी क्षेत्र में एककोशिकीय मूल रोम भी पाए जाते है जो कि जल एवं खनिज – लवणों को अवशोषित करते है |
जड़ों के प्रकार :-
जड़ों के कार्य :-
- मृदा में पौधों को स्थिरता प्रदान करना |
- खनिज लवणों एवं जल का अवशोषण करना |
नोट :- लेकिन कभी – कभी मूसला मूल एवं अपस्थानिक मूल विशेष कार्य करने के लिए रूपांतरित हो जाती है | इनके रूपांतरण इस प्रकार है :-
I)मूसला मूल के रूपांतरण :-
1) . भोजन संग्राहक जड़ें :- ये मूसला मूल भोजन संग्रहण कर फूली हुई दिखाई देती है द्वितीयक व तृतीयक मूल अवशोषण का कार्य करती है |
शंक्वाकार मूल – गाजर
कुम्भीरूप मूल – शलगम
तर्कुरुपी मूल – मूली
कंदिल मूल – मिराबिलिस जलापा
2. शाखित मूल :-
A) ग्रंथिल जड़ें – लेग्युमिनेसी कुल के पौधों जैसे :- मटर, चना, सेम, मूंगफली की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया जैसे – राइजोबियम गांठो का निर्माण करते है |
B) श्वसन मूल :- राइजोफोरा, सोनेरेशिया एवं एविसिनिया जैसे न्युमेटोफोर पादपों में जड़े ऋणात्मक गुरुत्वनुवर्ती गति कर जमीन से बाहर निकल आती है क्योंकि दलदली क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी होती है |
II) अपस्थानिक मूल के रूपांतरण :-
a) जैविक कार्यों के रूपांतरण :-
- भोजन संग्राहक जड़ें – डहेलिया, आमीहल्दी आदि |
- अधिपादपीय जड़ें – इनमें वायवीय तने से अधिपादपीय जड़ें वायु में लटकी रहती है तथा इन जड़ों में आर्द्रताग्राही ऊतक ‘वेलामेन’ पाया जाता है, जिसमे ये पौधे वायु से नमी अवशोषित करते है उदा. – वेंडा |
- परजीवी मूल / चूषण मूल – इनमे प्रकाश संश्लेषण की क्षमता तो नही पाई जाती है | अत: पोषण के लिए ये किसी अन्य पौधे / पेड़ के तने पर लिपट जाते है | और उस पादप से पोषक पदार्थों का अवशोषण करते है | जैसे :- अमरबेल / कुस्कुटा |
- मृतोपजीवी जड़ें / मायकोराइजल जड़ें :- उच्चतर पादपों व कवकों के मध्य सहजीवी संबंध पाया जाता है | ऐसी जड़ें मृतोपजीवी जड़ें कहलाती है |
- परिपाची जड़ें / प्रकाश संश्लेषी जड़ें :- सिंघाड़ा / ट्रापा / टिनियोस्पोरा व टिनियोफिल्म जैसे पौधों में अपस्थानिक मूल के वायवीय रूपांतरण प्रकाश संश्लेषण करते है | इनमें हरित लवक / क्लोरोप्लास्ट तथा आर्द्रताग्राही संरचना पाई जाती है |
यांत्रिक रूपांतरण
1. अवस्तम्भ जड़ें :- गन्ना, राइजोफोरा, ज्वार आदि में पौधे के तने / वायवीय सहारा प्रदान करने के लिए अवस्तम्भ जड़ें पाई जाती है |
2. स्तम्भ जड़ें :- बरगद में – तने एवं इसकी शाखाओं वायवीय जड़ें उत्पन्न करती है जो तने को सहारा प्रदान करती है |
3. पुस्टा जड़ें :- साल्मोनेसी के वृक्ष के तने के आधारी भाग से पतले फलकों के रूप में पुस्टा जड़ें पाई जाती है |
4. प्लावी जड़ें :- लुडविजिया में प्लावी जड़ें इसे तैरने में सहायता प्रदान करती है |
5. आरोही जड़ें :- पान / बीटल में तने के नोड एवं इंटरनोड वाले भाग से आरोही मूल उत्पन्न होती है, जो कि पौधे ऊपर की ओर गति करने तथा सहारा प्रदान करने में सहायक है |