पादपों एवं जन्तुओं के आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Plants and Animals)
पादपों के आर्थिक महत्त्च (Economic Importance of Plants ):-
आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पादपों तथा अनके उत्पादों का अध्ययन आर्थिक वनस्पति विज्ञान कहलाता है। Economic Importance of Plants and Animals आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पादपो को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है –
1. खाद्य पादप – अनाज, दालें, तेल, मसाले, पेय पदार्थ सब्जियाँ, फल आदि।
2. औषधीय पादप – अश्वगंधा, अफीम, सर्पगंधा, गुग्गल, सफेद मूसली आदि।
3. इमारती काष्ठ एवं रेशे सम्बंधी पादप – सागवान, शीशम, रोहिडा, खेजड़ी, कपास, जूट, सन आदि।
अनाज (Cereals) –
सजीवों में होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है यह ऊर्जा भोजन से ही प्राप्त होती है। खद्य पदार्थों का यह सबसे महत्वपूर्ण समूह है ये घास कुल (ग्रेमिनी या पोएसी) के सदस्य है ये स्टार्च के प्रमुख स्रोत है जो मानव शरीर में श्वसन के आधारीय पदार्थ के रूप में उपयोग मे आता है कुछ प्रमुख अनाज इस प्रकार है –
(1) गेहूँ – वान्स्पतिक नाम – ट्रिटिकम एस्टाइवम (Triticum aestivum)
इसे रबी की फसल के रूप में अगाया जाता है इसकी उन्नत किस्में – सोनालिका, कल्याण सोना, शर्बती, सोनारा आदि।
(2) चावल – वानस्पतिक नाम- ओराइजा सेटाइवा (Oryza sativa)
इसे खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है। उत्पादन की दृष्टि से भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है इसकी उन्नत किस्में – बासमती, स्वर्णदाना, जया, रत्ना, सोना आदि।
(3) मक्का – वानस्पतिक नाम – जीआ मेज (Zea mays)
इसे खरीफ की फसल के रूप मे उगाया जाता है। इसकी उन्नत किस्में – विजय, शक्ति, रतन आदि।
(4) बाजरा – वानस्पतिक नाम – पेनिसिटम टाईफाइडिस (Pennisetum typhoides)
इसे भी खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है। यह महत्वपूर्ण मोटा (गोण) अनाज है।
दाले (Pulses):-
ये प्रोटीन के उत्तम स्रोत है तो लेग्यूमिनेसी कुल के सदस्य है कुछ प्रमुख दालें इस प्रकार है –
(1) चना – वानस्पतिक नाम – साइसर ऐराइटिनम (Cicer arietinum)
यह रबी की फसल है इसके उत्पादन की दृष्टि से विश्व में भारत प्रथम स्थान पर है इसे दानों का राजा कहते है।
(2) अरहर – वानस्पतिक नाम – केजेनस केजन (Cajanus cajan)
(3) मटर – वानस्पतिक नाम – पाइसम सेटाइवम (Pisum sativum)
(4) मूँगफली – वानस्पतिक नाम – ऐरेकिस हाइपोजिया (Arachis hypogea)
भारत विश्व में मूँगफली का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
(5) सोयाबीन – वानस्पतिक नाम – ग्लाईसीन मैक्स (Glycine max)
तेल उत्पादक पौधे :-
ये जटिल कार्बनिक यौगिक है जो हाइड्रोकार्बन, एस्टर, एल्कोहाल, एल्डीहाइड आदि के बने होते है –
(i) खाने योग्य तेल:- मूँगफली का तेल, तिल का तेल, नारियल का तेल, सोयाबीन का तेल, अलसी का तेल, सूरजमुखी का तेल आदि।
(ii) अखाद्य तेल – अरण्डी का तेल, तारपीन का तेल आदि।
(iii) सुगन्धित तेल – कपूर, चन्दन, लौंग, खस का तेल आदि।
महत्वपूर्ण मसाले –
काली मिर्च, जीरा, लाल मिर्च, सौंफ, धनिया, जीरा, लौंग, अजवायन, हल्दी, अदरक, दालचीनी, इलायची आदि।
पेय पदार्थ:-
चाय तथा काफी कहुतायात से उपयोग में लिये लाने वाले पेय पदार्थ है चाय – कामेलिया साइेन्सिस पौधें की पत्तियों से तथा काफी – काफिया अरेबिका पौधे के भुने हुए बीजों से तैयार की जाती है।
सब्जियाँ (Vegetables) –
अनाज व दालो की भाँति सब्जियाँ भी मानव के संतुलित आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है ये विटामिन, खनिज तत्व, रेशे, जल आदि के प्रमुख स्रोत है ये पादप के विभिन्न भागो जैसे – मूल, स्तम्भ पर्ण, पुष्प, फल बीज आदि से प्राप्त की जा सकती है। कुछ प्रमुख सब्जियाँ एवं उनके वैज्ञानिक नाम इस प्रकार है –
1. जड़ो से प्राप्त –
(a) गाजर – डाकस कैरोटा (b) मूली – रैफेनस सेटाइवम
(c) शलजम – ब्रेसिका रापा (d) शकरकन्द – आइपोमिया बटाटास
2. स्तम्भ से प्राप्त –
(a) आलू – सोलेनम टयुबरोसम (b) अरबी – कोलोकेसिया एस्कुलेन्टा
3. पर्ण से प्राप्त –
(a) पालक – स्पाइनेसिया ओलेरेसिया (b) मेथी – टाइगोनेला फोइनमग्रिकम
(c) बथुआ – चिनोपोडियम एल्बम
4. पुष्पक्रम से प्राप्त – फूल गोभी – ग्रैसिका ओलेसरेसिया
5. फल से प्राप्त –
(a) टमाटर – लाइकोपर्सिकम एस्कुलेण्टम (b) बैंगन – सोलेनम मेलोन्जिना
(c) भिण्डी – एगलमास्कस एस्कुलेण्टम (d) ग्वारफली – साइमोप्सिस टेटागोनोलोबा
फल –
पुष्प के अण्डाशय के निषेचन से बनी संाचना को फल कहते है। कुछ प्रमुख फल इस प्रकार है –
(a) आम – मैंजीफेरा इण्डिका (b) केला – म्युसा पेराडिसियेका
(c) संतरा – सिट्रस रेटिकुलेटा (d) अमरूद – सीडियम गुआजावा
(e) पपीता – केरिका पपाया (f) सीताफल – एनोना स्क्वेमोसा।
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औषधीय पादप –
पादप के विभिन्न भागों जैसे – जड़, तना, पर्ण, पुष्प, फल, बीज आदि में औषधीय महत्व के रासायनिक पदार्थ पाए जाते है। इनमें से कुछ औषधीय पादप इस प्रकार है –
स्तम्भ से प्राप्त -(a) हल्दी – कुरकुमा लौंगा (b) अदरक – जिन्जिबर आफिसिनेल
(c) लहसुन – एलियम सेटाइवम (d) गुगल – कोमिफोरा वाइटाई
(e) ग्वारपाठा – एलोय वेरा
मूल से प्राप्त -(a) सर्पगन्धा – रावल्फिया सर्पेन्टाइना (b) सफेद मूसली – क्लोरोफाइटम टयूबरोसम
(c) अश्वगंधा – विथानिया सोम्निफेरा ।
छाल से प्राप्त – (a) कुनैन – सिनकोना आफिसिनेलिस (b) अर्जुन – टर्मिनेलिया अर्जुना
पर्ण से प्राप्त – (a) तुलसी – ओसिमम सेन्कटम (b) ब्राहमी – सेन्टेला एशियाटिका
फल से प्राप्त – (a) अफीम – पेपेवर सोम्निफेरम (b) आँवला – एम्बलिेा आफिसिनेलिस
रेशे उत्पादक पादप – (a) जूट – कोरकोरस कैप्सूलेरिस (b) कपास – गोसिपियम जातियाँ
(c) सनई – क्रोटोलेरिया जुन्श्सिया (d) नारियल – कोकोस न्यूसिफेरा
इमारती काष्ठ –
(a) सागवान – टैक्टोना ग्रन्डिस
(b) साल – शेरिया रोबस्टा ,
(c) शीशम – डेल्बर्जिया सिस्सू
(d) रोहिडा या मारवाड सागवान – टेकोमेला अन्डुलेटा
(e) खेजड़ी – प्रोसोपिस सिनेरेरिया
(f) देवदार – सिडस देवदारा
जन्तुओ के आर्थिक महत्व Economic Importance of Animals
मधुमक्खी पालन (Apiculture) –
मधुमक्खी पादपों में परागण की क्रिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कीट है। इसके पालन से मनुष्य को दोहरा लाभ होता है मधुमक्खी के पालन से परागण की क्रिया आसानी से होने के कारण फसल की पैदावार में बडोत्तरी होती है। मधुमक्खी से प्राप्त शहद का उपयोग मनुष्य हजारों वर्षों से करता आया है। यह उच्च ऊर्जा युक्त भोज्य पदार्थ होने के साथ – साथ औषधी के रूप में भी उपयोग में लिया जाा है। शुद्ध शहद लम्बे समय तक नष्ट नही होने के कारण परिरक्षक के रूप में उपयोग किया जाता है। प्रचीन समय से प्रकृति में मिलने वाले मधुमक्खी के वर्तमान समय में कृत्रिम रूप सें छत्तों में मधुमक्खी को पालकर बड़ी मात्रा में शहद प्राप्त किया जा रहा है।
रेशमकीट पालन –
रेशम प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों से हम रेशमकीट का पालन करते आये है। रेशम से कपडे बनने की प्रक्रिया का प्रारम्भ सर्वप्रथम चाीन में हुआ वर्तमान से यह भारत सहित विश्व के कई देशों में कुटीर उद्योग बन चुका है। रेशम कीट शहतूत की पत्तियों पर पाया जाता है। ये बाम्बिक्स मोराई जाति के प्रमुख है। यह कीट आर्थोपोडा संघ के इन्सेक्टा वर्ग के लैपीडोप्टेरा गण का है। यह अच्छी गुणवत्ता का रेशम का उत्पादन करता है। रेशम कीट के लार्वे को कैटरपीलर कहते है। इसमें एक जोडी लार ग्रंथियाँ पायी जाती है। जिन्हें रेशम ग्रंथियाँ कहते है। रेशम कीट के पूर्ण विकसित लार्वा की लम्बाई 7.5 सेमी हो जाती है। यह भोजन करना बन्द कर देता है। इसके पश्चात कोकून बनाना प्रारम्भ कर देता है। अपने चारों ओर रेशम के धागों का स्रावण कर स्वयं को पूर्णतः बंद कर लेता है। कोकून के अन्दर बन्द निष्क्रिय लार्वा प्यूपा कहलाता है। कोकून लगभग 100 – 1200 मीटर लम्बे धागे का बना होता है। एक कोकून का भार 1.8 से 2.2 ग्राम होता है। रेशम प्रोटीन का बना होता है। इसका भीतरी भाग फाइब्रिन का एवं बाहरी सेरीसिन प्रोटीन का बना होता है। कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशम कीट पालन कहलाता है। रेशम उत्पादन का आशय बड़ी मात्रा में रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम उत्पादक जीवों का पालन करना होता है। इसने अब एक उद्योग का रूप ले लिया है। यह कृषि पर आधारित एक कुटीर उद्योग है। मुख्यतः रेशम चार प्रकार के होते है 1-मलबरी रेशम – खाद्य वृक्ष शहतूत रेशम कृमि का पालन घरो के अन्दर नियंत्रित वातावरण में किया जाता है । इसका भवन के अन्दर पालन होता है । खाद्य पत्तियाँ morus alba प्रजाति की खाद्य होती है । यह फसल मुख्यतः कृषकों द्वारा अपने निजी भूमि पर की जाती है । वर्ष में 3 से 5 फसल तक ली जा सकती है । अधिकतम आय कृषकों द्वारा म.प्र. में 1,75,000/- एकड़ रिकार्ड की गई है । 2 -टसर रेशम -खाद्य वृक्ष अर्जुन एव साजाटसर (wild silk) को सामान्य भाषा में कोसा कहते हैं। इसे “वन्या सिल्क ” भी कहते हैं । यह semi domesticated (पालित) एवं wild रूप मैं पाया जाता हैं semi domesticated (पालित) का पालन हितग्राहियों के माध्यम से साजा, अर्जुन के वृक्षों पर किया जाता हैं । प्राकृतिक रूप से जंगली टसर साल के वृक्षो पर पाया जाता हैं । पालित अथवा domesticated टसर के प्राथमिक खाध पौधे अर्जुन और साजा होते हैं । इसके अतिरिक्त लेंडिया, बेर अन्य वृक्षों पर भी इसका पालन संभव हैं । साल पर पाये जाने वाले प्राकृतिक टसर को “लोकल रैली“ कहते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक टसर होते हैं बहुभक्षी होते हैं उदा0 ”लारिया“ ।3 – इरी रेशम मुख्यतः खाद्य वृक्ष अरंडी – इरी अरंडी के पौधो पर होता हैं। इसका पालन घर में ही किया जाता है। सभी सिल्क में से इसका सबसे सस्ता धागा होता हैं । उत्तरपूर्व में इसका प्रचलन ज्यादा है । यहाँ इसका प्यूपा भी खाया जाता हैं । 4-मूंगा रेशम – मुख्यतः खाद्य वृक्ष सोलू – यह सबसे महंगा सिल्क हैं । इसका खाद पौधा Litsea polyantha तथा Machilns bombicina होता हैं । यह मुख्यतः उत्तरपूर्व में पाया जाता हैं । म.प्र. के पचमढ़ी में प्रायोगिक तौर पर इसका पालन किया जा रहा हैं ।
लाख कीट संवर्धन –
लाख कीटों की लक्ष ग्रंथियों द्वारा स्रावित रेजिनयुक्त पदार्थ को लाख कहते है। लाख के व्यापारिक उत्पादन हेतु लाख कीटों के पालन को लाख संवर्धन कहते है। विश्व में लाख के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत भाग भारत में उत्पादित होता है। जाख कीट का वैज्ञानिक नाम लैसीफर लैकका है ये छोटे आकार के रेंगने वाले शल्कीय कीट है जो स्वयं द्वारा स्रावित लाख से बने आवरण में बन्द रहता है। यह आवरण इसे सुरक्षित रखता है। नर लाख कीट मादा से आकार में छोटे तथा गुलाबी रंग के होते है ये केवल निम्फावस्था में ही लाख उत्पन्न करते है। मादा लाख कीट आकार में बड़ी होती है। तथा अधिक लाख उत्पन्न करती है।
मछली पालन (pisciculture)
मछली एक आसानी से प्राप्त होने वाली प्रोटीनयुक्त, उच्च पोषक युक्त एवं आसानी से पचने वाला भेज्य स्रोत है। अतः मछली पालन हेतु मानव द्वारा तालाबो झीलों में मछलियों का प्रजनन एवं उत्पादन किया जाता है। वर्तमान में भारत का विश्व में समुद्रीय भोज्य उत्पादन की दृष्टि से छठा स्थान है।