फैराडे एवं हेनरी के प्रयोग (The Experiments of Faraday and Henry)

जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस आधार पर वैज्ञानिक फैराडे ने ज्ञात किया कि जिस प्रकार विद्युत धारा से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकते हैं, उसी प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र से विद्युत धारा भी उत्पन्न होनी चाहिये। इसके लिये फैराडे और हेनरी के प्रयोग निम्न हैं-
 
प्रयोग संख्या 1. सामने चित्र में एक धारामापी G से जुड़ी हुई एक कुण्डली C1 को दिखाया गया है। जब दण्ड चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को इस कुण्डली की ओर लाया जाता है, तो धारामापी का संकेतक विक्षेपित होता है जो कि कुण्डली में धारा की उपस्थिति को दर्शाता है। यह विक्षेप तभी तक रहता है जब तक कि दण्ड चुम्बक गति में रहता है। जब चुम्बक स्थिर होता है, तो धारामापी में कोई भी विक्षेप नहीं होता है। जब चुम्बक को कुण्डली से दूर ले जाया जाता है, तो धारामापी विपरीत दिशा में विक्षेप बताता है, जो धारा प्रवाह की दिशा के विपरीत होने को बताता है।
 
इसके अतिरिक्त “जब दण्ड चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव को कुण्डली की ओर या इससे दूर ले जाते हैं तो धारामापी में विक्षेप की दिशाएँ उत्तरी ध्रुव की इसी प्रकार की गति की अपेक्षा विपरीत हो जाती हैं। इसके अलावा जब चुम्बक को कुण्डली की ओर या इससे दूर तेजी से गतिमान किया जाता है, तो विक्षेप और अधिक आता है। इस कारण से धारा का मान अधिक प्राप्त हो जाता है। इसमें यह भी देखा गया है कि यदि दण्ड चुम्बक को स्थिर रखा जाए तथा इसके बजाय कुण्डली C को चुम्बक की ओर या इससे दूर गतिमान किया जाए, तो भी इसी प्रकार का प्रभाव उत्पन्न होता है। इससे हमें यह पता चलता है कि “कुण्डली में विद्युत धारा की उत्पत्ति (प्रेरण) चुम्बक तथा कुण्डली के मध्य सापेक्ष गति का प्रतिफल है।”
 
प्रयोग संख्या 2. सामने के चित्र में दण्ड चुम्बक को बैटरी से जुड़ी हुई एक दूसरी कुण्डली C, से प्रतिस्थापित किया गया है। कुण्डली C में अपरिवर्ती धारा अपरिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। जैसे ही कुण्डली C को कुण्डली C की ओर लाते हैं, धारामापी में विक्षेप दिखाई देता है।
यह कुण्डली C में प्रेरित विद्युत धारा को निर्देशित करता है। जब C, को दूर ले जाते हैं, तो धारामापी में फिर से विक्षेप दिखाई पड़ता है, लेकिन इस बार यह विक्षेप विपरीत दिशा में होता है। यह विक्षेप तभी तक रहता है जब तक कुण्डली C2 गति में रहती है। जब कुण्डली C2 को स्थिर रखा जाता है तथा C1 गतिमान होता है, तो उन्हीं प्रभावों को फिर से देखा जा सकता है। यहाँ भी कुण्डलियों के मध्य सापेक्ष गति विद्युत धारा प्रेरित करती है।
 
प्रयोग संख्या 3. उपर्युक्त दोनों प्रयोगों में चुम्बक तथा कुण्डली के बीच तथा दो कुण्डलियों के बीच सापेक्ष गति शामिल है। एक अन्य प्रयोग के द्वारा फैराडे ने यह दिखाया है कि यह सापेक्ष गति कोई अति आवश्यक अनिवार्यता नहीं है। सामने के चित्र में दोनों कुण्डलियाँ C तथा C, दिखाई गई हैं, जो स्थिर रखी गई हैं। कुण्डली C को एक धारामापी G से जोड़ा गया है जबकि दूसरी कुण्डली C2 को एक दाब कुंजी K से होकर एक बैटरी से जोड़ा जाता है। 
यहाँ पर यह देखा गया है कि दाब कुंजी K को दबाने पर धारामापी में एक क्षणिक विक्षेप दिखाई पड़ता है और फिर इसका संकेतक तत्काल शून्य पर वापस आ जाता है। यदि कुंजी को लगातार दबाकर रखा जाए, तो धारामापी में किसी भी प्रकार का कोई विक्षेप प्राप्त नहीं होता है। जब कुंजी को छोड़ा जाता है, तो फिर से एक क्षणिक विक्षेप देखा जाता है लेकिन यह विक्षेप विपरीत दिशा में होता है। यह भी देखा गया है कि यदि कुण्डलियों में उनके अक्ष के अनुदिश एक लोहे की छड़ रख दी जाए, तो विक्षेप नाटकीय रूप से बढ़ जाता है। 
 
निष्कर्ष
उपर्युक्त प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों से निष्कर्ष निकलता है कि जब चुम्बक तथा कुण्डली के बीच आपेक्षिक गति होती है तो कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है जिसे ‘प्रेरित विद्युत वाहक बल (induced e.m.f.) कहते हैं। यदि कुण्डली एक बन्द परिपथ के रूप में है तो इस प्रेरित विद्युत वाहक बल के कारण कुण्डली में वैद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है। इस धारा को प्रेरित धारा’ (induced current) कहते हैं तथा इस घटना को ‘विद्युत चुम्बकीय प्रेरण’ कहते हैं।
 
प्रेरित विद्युत वाहक बल कुण्डली के प्रतिरोध पर निर्भर नहीं करता, जबकि प्रेरित धारा इस पर निर्भर करती है।
 
फैराडे के प्रयोगों के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु –
 
(i) यदि चुम्बक का ध्रुव प्राबल्य अधिक है तो उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल भी अधिक होगा।
 
(ii) कुण्डली और चुम्बक के मध्य की सापेक्ष गति तेज होने पर उत्पन्न प्रेरित वाहक बल तथा प्रेरित धारा का मान भी अधिक होता है।
 
(iii) कुण्डली में अधिक फेरे होने पर उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल भी अधिक होगा।
 
(iv) कुण्डली में प्रवाहित धारा की दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि कौनसा ध्रुव कुण्डली के पास लाया जा रहा है अथवा दूर ले जाया जा रहा है।
 
(v) यदि कुण्डली खुले परिपथ में हो तो प्रेरित विद्युत वाहक बल तो होगा, परन्तु विद्युत धारा नहीं होगी। इस प्रकार विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की घटना में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है न कि सीधे ही विद्युत धारा प्रेरित होती है।

पाठ्यक्रम 

फैराडे एवं हेनरी के प्रयोग, चुम्बकीय फ्लक्स, फैराडे का प्रेरण का नियम, लेंज का नियम तथा उर्जा संरक्षण, गतिक विधुत वाहक बल, प्रेरकत्व, प्रत्यावर्ती धारा जनित्र |  

  भूमिका ( Introduction )     

 

 

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