भीनमाल (जालौर) शाखा का संस्थापक नागभट्ट प्रथम को माना जाता है, भीनमाल की इस शाखा को ‘ रघुवंशी प्रतिहार शाखा’ भी कहते है | 

ध्यान रहे – प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल (जालौर) की यात्रा की थी  | 

नागभट्ट प्रथम – ( 730 – 60 ई. ) नागभट्ट प्रथम जालौर के गुर्जर प्रतिहारों का संस्थापक कहा जाता है | इसे नागावलोक तथा इसके दरबार को नागवलोक दरबार कहते है | इसने भीनमाल को चाव्दों से जीता तथा भीनमाल को अपनी राजधानी बनाया | इसके पश्चात् इसने आबू, जालौर आदि को विजित किया तथा उज्जैन (अवन्तिका) को अपनी दूसरी राजधानी बनाया | नागभट्ट प्रथम को ‘ नारायण की मूर्ति का प्रतीक, राम का प्रतिहार, क्षत्रिय ब्राह्मण तथा इंद्र के दम्भ का नाशक ‘ भी कहते है | 

 ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम ने ग्लेच्छ (अरबी) सेना को पराजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया अत: नागभट्ट प्रथम को ‘ प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है | इसकी जानकारी हमें पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख से प्राप्त होती है | नागभट्ट प्रथम के बाद कवन्कुक और देवराज प्रतिहारों के राजा बने |इन दोनों का समय 760 – 83 ई. माना गया है | 

वत्सराज (783 – 95 ई. ) –  वत्सराज देवराज का पुत्र था जो बड़ा प्रतापी राजा था | इसे ‘ रणहस्तिन ‘ (युद्ध का हाथी) की उपाधि दी गई | वत्सराज को ‘ प्रतिहार राज्य की नीवं डालने वाला शासक ‘ कहा ज सकता है | 

वत्सराज के शासन काल में ही कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ | 

त्रिपक्षीय संघर्ष 

वत्सराज के समय कन्नौज उत्तरी भारत का प्रमुख केंद्र बनता ज रहा था | कन्नौज पर पाल वंश, दक्षिण के राष्ट्रकूट वंश व गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों की नजर थी | कन्नौज को लेकर उक्त तीनों राजवंशों में संघर्ष हुआ जिसे त्रिकोणीय / त्रिपक्षीय / त्रिदलीय संघर्ष कहते है | जिसमें राजपुताना के गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों ने भाग लिया था | 

  • इसका प्रारम्भ वत्सराज ने किया | वत्सराज प्रतिहार जालौर का शासक बना | उस समय अरबी आक्रमणकारी जालौर पर आक्रमण करके जालौर को लूट कर ले जाते थे, इसी कारण वत्सराज प्रतिहार स्वयं के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में था | 
  • 647 ई. के लगभग कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद कन्नौज का शासन लडखडा गया |
  • वत्सराज ने इसका फायदा उठाते हुए कन्नौज पर आक्रमण कर वहाँ के शासक इंद्रायुद्ध को पराजित कर कन्नौज को अपने अधिकार में कर लिया | 
  • यह बात पाल वंश के शासक धर्मपाल को पसंद नहीं आई और उसने वत्सराज को पराजित करने के लिए वत्सराज पर आक्रमण कर दिया | 
  • इस मुंगेर (मुदगगिरी) युद्ध में वत्सराज प्रतिहार विजयी हुआ | 
  • वत्सराज की बढती हुई शक्ति को देखकर दक्षिण के राष्ट्रकूट वंश के शासक ध्रुव प्रथम ने जालौर पर आक्रमण कर दिया, इस युद्ध में वत्सराज की पराजय तथा ध्रुव प्रथम की विजय हुई |  
  • वत्सराज के समय 778 ई. में उद्योतनसूरी द्वारा ‘ कुवलयमाला ग्रन्थ ‘ की तथा जिनसेन सूरी द्वारा 781 ई. में ‘ हरिवंश पुराण ‘ की रचना की गई | 
  • वत्सराज शैव मत का अनुयायी था | 
  • वत्सराज ने औसियां (जोधपुर) में एक सरोवर तथा महावीर स्वामी का एक मन्दिर बनवाया जो कि ‘ पश्चिम भारत का प्राचीनतम जैन मन्दिर माना जाता है | ‘ 

नागभट्ट द्वितीय – (795 – 833 ई.) 

  • नागभट्ट द्वितीय वत्सराज व उसकी रानी सुन्दर देवी का पुत्र था | 
  • नागभट्ट द्वितीय ने 806 ई. से 808 ई. के मध्य राष्ट्रकूट वंश के शासक गोविन्द तृतीय से युद्ध किया, जिसमें नागभट्ट द्वितीय की हार हुई | 
  • लेकिन नागभट्ट द्वितीय ने अपना साहस नही खोया | 
  • जब राष्ट्रकूट वंश का शासक गोविन्द तृतीय वृद्ध हो गया तथा वह अपनी घरेलू समस्या में फंस गया तो नागभट्ट द्वितीय ने इसका फायदा उठाते हुए कन्नौज के शासक चक्रायुद्ध को परास्त कर कन्नौज राज्य को जीतकर अपनी राजधानी बनाया | 
  • इस प्रकार नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल से प्रतिहारों की कन्नौज शाखा का आरम्भ हुआ | 
  • कन्नौज का शासक चक्रायुद्ध पालवंश का आश्रित राजा था, अत: धर्मपाल ने नागभट्ट द्वितीय पर आक्रमण कर दिया | 
  • इन दोनों के मध्य मुण्डोर नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें नागभट्ट द्वितीय की विजय हुई | 
  • युद्ध में विजय के बाद नागभट्ट द्वितीय ने ‘ परमभट्टाकर, महाराजाधिराज, परमेश्वर ‘ की उपाधि ग्रहण की | 
  • नागभट्ट द्वितीय के समय प्रतिहार राज्य उत्तरी भारत में एक शक्तिशाली राज्य बन चुका था | 
  • 833 ई. में नागभट्ट द्वितीय ने गंगा में जल समाधि ली |
  • जिसकी जानकारी चन्द्रप्रभु सूरी द्वारा लिखित प्रभावक चरित्र में मिलती है | 

रामभद्र (833 – 36 ई.)

  • नागभट्ट द्वितीय के बाद उसका पुत्र रामभद्र प्रतिहारों का शासक बना | 
  • रामभद्र के समय मंडौर के प्रतिहार स्वतंत्र हो गए तथा अन्य तथा अन्य कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हांसिल नहीं हुई | 
  • रामभद्र को पालों के विरुद्ध हार का सामना करना पड़ा | 

मिहिर भोज प्रथम (836 – 85 ई.)

  • मिहिर भोज प्रथम रामभद्र का पुत्र था | 
  • मिहिर भोज प्रथम की माता का नाम अप्पा देवी था |
  • ग्वालियर प्रशस्ति में इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती है | 
  • मिहिर भोज प्रथम अपने पिता रामभद्र की हत्या कर प्रतिहारों का शासक बना | इस कारण मिहिर भोज प्रथम को ‘ प्रतिहारों में पितृहंता ‘ कहा जाता है | 
  • इसके शासन काल में प्रतिहारों की शक्ति चरम सीमा पर थी | 
  • मिहिर भोज प्रथम उत्तरी भारत में अपने समय का सबसे महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली शासक था | 
  • मिहिर भोज प्रथम ने वैष्णव धर्म को संरक्षण प्रदान किया | 
  • यह भगवान विष्णु का उपासक था | इसलिए इसे ‘ आदिवारह ‘ (ग्वालियर प्रशस्ति में) व ‘ प्रभास पाटन ‘ (दौलतपुर अभिलेख) आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है |   

ध्यान रहे – अरब यात्री सुलेमान ने इसे ‘ अरबों का अमित्र ‘ तथा इस्लाम का शत्रु / इस्लाम की दीवार ‘ बताया है तो हिन्दुस्तान को काफिरों का देश कहा है | 

  • मिहिर भोज प्रथम ने राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय से मालवा को छीना | 
  • मिहिर भोज प्रथम ने पाल वंश के शासक देवपाल व विग्रह पाल (नारायण पाल) तथा राष्ट्रकूट वंश के कृष्ण तृतीय को हराकर अंतिम रूप से कन्नौज पर अपना अधिकार जमाया | 
  • इसकी जानकारी हमें ग्वालियर शिलालेख एवं अरबी यात्री सुलेमान के यात्रा वृतांत से प्राप्त होती है | 

 

महेन्द्रपाल प्रथम (885 – 908 ई.)

  • महेन्द्रपाल प्रथम मिहिर भोज का पुत्र था | 
  • महेन्द्रपाल प्रथम को ‘ निर्भय नरेश ‘ कहा गया | 
  • प्रतिहारों में यह प्रथम शासक था, जिसने ‘ परमभट्टाकर महाराजाधिराज परमेश्वर ‘ उपाधि धारण की थी |
  • महेन्द्रपाल प्रथम के बाद उसका पुत्र भोज द्वितीय (910 – 13 ई.) प्रतिहारों का शासक बना | 
  • इसका दरबारी साहित्यकार एवं गुरु राजशेखर था, जिसने कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, बाल रामायण, बालभारत (प्रचंड पाण्डव) तथा हरविलास नामक ग्रंथों की रचना की | 

ध्यान रहे – राजशेखर ने अपनी पत्नी अवन्ति सुन्दरी के कहने पर ही ‘ कर्पूरमंजरी ‘ कि रचना की थी | 

महिपाल प्रथम (913 – 43 ई.)

महिपाल प्रथम के शासनकाल में प्रतिहारों का पतन शुरू होता है | महिपाल के समय अरबी यात्री अलमसूदी यात्रा पर आया था | राजशेखर इसका भी राजकवि था, जिसके द्वारा इसे रघुकुलमुकुटमणि की संज्ञा दी गई | 

 

महेन्द्रपाल द्वितीय (943 – 48 ई.)

  • महिपाल प्रथम  के बाद उसका व प्रज्ञाधना का पुत्र महेन्द्रपाल द्वितीय गद्दी पर बैठा | 
  • इसके पश्चात् क्रमशः देवपाल (948 – 49 ई.), विनायकपाल द्वितीय (949 – 55 ई.), महिपाल द्वितीय (955 – 60 ई.) व विजयपाल (960 – 1019 ई. ) के समय महमूद गजनवी ने कन्नौज पर 1018 ई. में आक्रमण किया जिससे डरकर राज्यपाल / राजपाल कन्नौज छोड़कर भाग गया | 
  • राजपाल की कायरता के कारण भारतीय राजाओं ने संघ बनाकर इसे मार डाला | 
  • इसके बाद त्रिलोचनपाल (1019 – 27 ई.) प्रतिहारों का शासक बना जिसे महमूद गजनवी ने 1019 में पराजित किया | 
  • प्रतिहारों का अंतिम शासक यशपाल था | 
  • 11 वीं शताब्दी में कन्नौज पर गहडवाल वंश ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया | 
  • इस प्रकार प्रतिहारों के साम्राज्य का 1093 ई. में पतन हो गया | 

 

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