गणेश्वर सभ्यता (नीम का थाना )

  • गणेश्वर सभ्यता नीम का थाना जिले से लगभग 15 कि.मी. दूर ‘ रेवासा गाँव में स्थित ‘ खण्डेला की पहाड़ी ‘ में कान्तली नदी के मुहाने से प्राप्त हुई है |
  • इस सभ्यता की सर्वप्रथम खोज 1972 ई. में रतन चन्द्र अग्रवाल ने राजस्थान विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के सहयोग से की तथा 1977 ई. में रतन चन्द्र अग्रवाल व श्री विजय कुमार ने इसका उत्खनन किया | 
  • श्री डी. पी. अग्रवाल ने इसकी समयावधि कार्बन डेटिंग पद्धति व तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा 2800 ई. पू. मानी है |
  • यहाँ से प्राप्त तांबा ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में सबसे प्राचीनतम है | इस कारण गणेश्वर सभ्यता को निर्विवाद रूप से भारत में ‘ ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी ‘ माना जा सकता है | 
  • सम्पूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता क्षेत्र में तांबे को आपूर्ति गणेश्वर सभ्यता से ही होती थी, अत: गणेश्वर सभ्यता को  ‘ पुरातत्व का पुष्कर ‘ कहा जाता है |
  • गणेश्वर सभ्यता को ‘ पूर्व हड़प्पा कालीन या ताम्रयुगीन सभ्यता ‘ या ताम्र संचयी संस्कृति भी कहते है |  
  • यहाँ के मकानों का निर्माण पत्थरों से करवाया गया | ईंटों का प्रयोग यहाँ बिल्कुल नहीं किया गया | 
  • यह एकमात्र स्थान है, जहाँ पत्थर के बाँध प्राप्त हुए | 
  • यहाँ से जो मृदभाण्ड प्राप्त हुए है वे ‘ कृषि मृदपात्र ‘ कहलाते है | 
  • यहाँ से सैकड़ों ताम्र आयुध व ताम्बे के उपकरण तथा विविध ताम्र आभूषण प्राप्त हुए है | 
  • यहाँ से हमें ताम्बे का बाण व मछली पकड़ने का कांटा तथा फरशा आदि प्राप्त हुए है, जिससे यह पता चलता है कि उस समय यहाँ कान्तली नदी नित्यवाही नदी थी तथा जल जन्तुओं का शिकार भी प्रमुखता से होता था | 
  • गणेश्वर सभ्यता में कान्तली नदी के वरदान स्वरूप ‘ खेतड़ी कॉपर (नीम का थाना) व अलवर के ‘ खो – दरीबा ‘ नामक प्रसिद्ध तांबे की खानों का निर्माण हुआ | 
  • मिट्टी के छल्लेदार बर्तन सिर्फ गणेश्वर सभ्यता में ही प्राप्त हुए है | 

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